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शनिवार, 10 मार्च 2018

लघुकथा- सपना

लघुकथा- सपना
अर्धरात्रि का समय।
  दिनभर की मजदूरी से थक-मांदा रग्घू फटी-सी कथरी पर गहरी नींद में सो रहा था ।गहरी नींद के साथ स्वप्न में डूबा वह देख रहा था,सरकार द्वारा गरीबों के हित में बनायी योजनाएं का लाभ का पात्र वह भी हो गया है।
 वह इस खुशी में पत्नी-बच्चों सहित झूम-नाच गा रहा है। वास्तविकता के बिस्तर पर उसके हाथ -पाँव किसी शराबी नर्तक के तरह हिल डुल रहे थे । अचानक पास लेती पत्नी की नींद खुल गयी ।उसकी हरकत को देखा ।उसे हिलाकर जगाने का प्रयास किया । वह चौक कर जागा ।
" क्या है?"
"क्या है पूछते हो । हाथ -पाँव क्यों इधर-उधर हिलाकर पटक रहे थे । तबियत खराब लग रही है क्या?"
"नहीं,बस सपने देख रहा था ।"
"कैसा सपना ? "
" सरकार ने हमें भी अमीर बनाने के लिए सारी योजनाओं का लाभ दे दी है ।" उसने इत्मीनान के साथ जवाब दिया ।
पत्नी को पता था । गरीबों के सपनों का हश्र क्या है ।उसने मुंह बनाते हुए कहा -"पगले ! चुनाव के वक्त नेताओं के चार भाषण क्या सुन आता है , हर बारअपनी औकात से बढ़कर सपने देखने लगता है ।सो जा चुपचाप । कल तुझे सुबह की पहली बस से शहर मजदूरी के लिए जाना है ।"
 वह चुपचाप पुनः आँख मूंदकर सो गया ।
                 
* सुनील कुमार सजल

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

व्यंग्य –नकली बनाम असली

व्यंग्य –नकली बनाम असली

विगत दिवस सुनने को मिला कि किसी पार्टी का नकली नेता पकड़ा गया | ताज्जुब हुआ, अभी तक तो यह सुनता रहा हूँ कि नकली अफसर पकडाते रहे हैं | अब नेता भी नकली |खैर छोडिये |
वैसे यह ज़माना नकली का है | आजकल असली से ज्यादा नकली चल रहा है | असली को असली कहने में भले ही लोग सकुचाएं पर नकली को असली कहने में नहीं सकुचाते | सच कहूं अगर नकली न हो तो असली की क़द्र भी न हो |
आज देखें तो नकली ही हमारी अर्थव्यवस्था सुधारने में अहम् भूमिका निभाता है | शायद यहाँ आपका दिमाग प्रश्नों से गूँज सकता है कि नकली व अर्थव्यवस्था ? अरे भई , सस्ते में असली छाप मिल जाती है | सोने के जेवरातों को ले लो | आज तोला दो तोला सोने में अच्छे-अच्छे की हैसियत जवाब दे रही है | ऐसे में नकली स्वर्ण के जेवरात असली स्वर्ण का मजा दे रहे हैं | ऊपर से चमक जाने पर आधी कीमत में वापसी की गारंटी भी | और क्या चाहिए आपको | नक़ल संस्कृति ने असल संस्कृति को यूं लताड़ा जैसे दगाबाज नेता को पार्टी | आज आदमी नकली के पीछे भाग रहा है | क्योंकि नक़ल का रास्ता सीधा , सरल व सहज होता है |
   एक बार मैं कपड़ा खरीदने एक प्रतिष्ठित दुकान में पहुंचा | दुकानदार के कर्मचारी ने पूछा – ‘ ‘ साब, आप व्यवहार में देने के लिए खरीदना चाहते हैं या खुद के लिए |’’
‘’ व्यवहार में देने के लिए |’’ मैंने कहा |
 उसने ब्रांडेड कंपनी के नामवाला कपड़ा मेरे सामने फैला दिया |
 ‘’ इतना महँगा कपड़ा मत दिखाओ मेरे भाई , मुझे सामाजिक कार्य में व्यवहार करना है | अपनी लुटिया नहीं डुबोनी है | ‘’ मैंने कप[अदा छूकर देखते ही कहा |
वह हंसा | ‘’ ‘’ आप घबराइये नहीं साब , सस्ता है दिखने में ब्रांडेड लग रहा है मगर....|’’
‘’ मगर....?’’
‘’ डुप्लीकेट है !’’ जब उसके  मुख से कीमत सुनी तो आश्चर्य में पद गया | इतनी कम अविश्वनीय कीमत | झट से हमने कपड़ा पैक करवाया निकल पड़े घर की तरफ | अब व्यवहार में लेने वाला पहली धुलाई के बाद अपना माथा पीते तो हम क्या करें | फैशन के इस दौर में गारंटी कौन देता है |
इधर हमारे मित्र चोंगालाल जी को नकली से बेहद मोह है | इसका कारण यह है कि जमाने के चलन के साथ घाघ व्यापारी हैं | एक बार पत्नी से झगड़े पत्नी द्वारा दिए गए धक्के से वे  औंधे मुंह ऐसे गिरे कि उनके दर्जन भर दांत झड गए | आजकल वे नकली दांत से अपने पोपले मुंह को फुलाए हुए हैं , जो असली माफिक लगते हैं | हमने उनसे कहा- ‘’ आखिर आपका जी नहीं माना और नकली दांत लगवा ही आए | बिलकुल असली जैसे | महंगे होंगे |’’
‘’ अरे कहाँ यार , अपनी व्यापारी बुद्धि महंगे को इजाजत कहाँ देती है ...|’ मैं उनके जवाब के बाद चुप हो गया |
अपना तो यही कहना है  भाईसाब कि यदि असली खरीदने की हैसियत न हो तो नकली सामग्री से ही काम चलाइये | आजकल असली व नकली में फर्क करने वाले दृष्टि पारखी कहाँ रहे | आकर्षण का ज़माना है सो आप भी आकर्षण पर टूट पड़ें |

                    सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 14 जून 2015

व्यंग्य – बड़ी देर कर दी आपने



व्यंग्य  – बड़ी देर कर दी आपने 

 हुजुर को पता है कि वे हुजुर हैं |हुजुर बनने के लिए बड़े पापड बेले उन्होंने | तब कहीं जाकर हूजूर बने हैं | हूजूर बनने के बाद उन्हें यह भी अच्छी तरह पता है कि हुजुर लोग समय पर कहीं नहीं पहुचते | इसलिए वे हमेश सभा हो या पार्टी की मीटिंग देर से पहुचते हैं |चमचों को भी पता है हुजुर अपने या उनके दिए समय पर कभी नहीं आयेंगे | सो, वे निश्चिन्त रहते हैं | भीड़ इकट्ठी करने में लगे रहते हैं | उन्हें यह भी पता ऐसा वे हुजुर बनने के बाद कर रहे हैं | इसके पहले जब वे उनके जैसे थे समय के दो घंटे पहले पहुँच जाते थे | मगर अब पद बढ़ गया है |पद बढ़ने से रुतवा भी बढ़ गया है | अब वे छुटभैये  नहीं रहे हैं | इसलिए देर से आते हैं |
  हुजुर को पता है जल्दी या समय पर जाने वाले नेता की कद्र नहीं होती | लोग यह समझ बैठते हैं कि हुजुर की  जरुर इस समय मिटटी पलीद होने की स्थिति  बन रही है इसलिए हुजुर जल्दी चले आये | ताकि दूसरा उनकी जगह न ले बैठे |
 एक दिन हुजुर की पत्नी ने उनसे कहा –‘’ आप नौ बजे खा -पीकर फुर्सत बैठे पर अभी  ग्यारह बज रहें | और आप अभी तक सभा की ओर नहीं बढ़ें है | दूर शहर में बैठी जनता बेचारी आपका इंतज़ार  कर परेशान हो रही होगी |तनिक उनका भी और समय का ख्याल रखा करो |’
 देखो तुम फटे में टांग मत घुसेड़ा करो | मैं जनता का ख्याल रखकर ही देर से जा रहा हूँ | तुम भले राजनेता की पत्नी हो पर तुममें अभी राजनीति की समझ नहीं जगी है |इसलिए कहता हूँ रूचि लेकर किसी छोटे –मोटे संगठन में घुसकर एकात पद हथिया लो | ताकि तुम,में भी राजनीति  की समझ पैदा हो | घर के भीतर बैठ कर राजनीति  की बातें करने व रसोई घर में ताक-झाँक करने से राजनीति की  समझ पैदा नहीं होती |’’ नेता जी ने पत्नी को फटकारा | ‘
‘’ ठीक है | मैंने तो आपका इंतज़ार  कर रही जनता की परेशानी को भांप कर आपसे कहा था |’’
‘’ अभी तुम राजनीति के मामलों में कच्चा घडा हो |इसलिए चूल्हा चौके से बाहर कि बात नहीं सोचती | पहले हम भी अपने आकाओं को देर करने पर कोसते थे | पर आज खुद आका बनने के बाद समझ आया कि देर से गंतव्य की  ओर पहुचने का मतलब क्या है | ‘
 हुजुर जानबूझकर देर से जाते हैं, अपने जनसभाओं.में  |कहते इंतज़ार  का फल मीठा होता है | हुजुर भी अपने आपको जनता के बीच  मीठा फल साबित करने में लगे हैं |
  आज  उनकी चिलमन चौक में सभा है | जनता सभा स्थल  में बैठी उनका इंतज़ार  कर रही है | दिन के बारह बज चुके हैं |भैया जी अभी भी घर में  बैठे टी.वी. पर तमाशा देख रहें हैं | पत्नी उन्हें बारह बजने का एलर्ट देती है मगर वे खुद में मशगूल हैं |पत्नी चुप रहती है | जानती ज्यादा कुछ कहा तो सभा का सारा भाषण वे यहीं उड़ेल देंगे |

 बड़ी मुश्किल से वे एक बजे घर से  रवाना हुए | दो बजे सभा स्थल पर पहुंचे | और भाषण में बोले- ‘’आपको मेरे इंतज़ार में जो कष्ट हुआ उसके लिए क्षमा चाहता हूँ | क्या करूँ  पार्टी के कुछ ऐसे काम आ गए थे जिन्हें निपटाना जरुरी था | चमचे की तालियाँ पिटने लगी | जनता भी तालियाँ बजाने में जुट गयी | भाषण /आश्वासन /योजनायें बांटी गयी |वैसे नेताओं का सभा स्थल पर देर से  पहुँचना लोकतंत्र में एक बीमारी है  | जिसका ईलाज आज तक नहीं खोजा जा सका |
 सभा समाप्त |अब पार्टी की बैठक |अचानक पार्टी की बैठक के बीच एक चमचे ने कह उठा – भैया जी आज आप काफी लेट हो गए थे | बड़ी मुश्किल से जनता को बांधकर रखा हमने |’’
 हुजुर ने तत्काल फटकार लगायी –‘’ राजनीति  करते हो या बनिया की दुकान में चाकरी |’’ वह वहीं खामोश हो गया | वैसे भी चमचे हुजुर लोगों के आगे पालतू  कुत्ते की भाँती कुई –कुई करते दुम हिलाते नजर आते हैं | दुम हिलाना कूँ- कूँ  करना छोटे लोगों की परम्परा है |
हुजुर बड़े नेता हैं | इसलिए वे बड़ी देर से प्रत्यके कम या सभा में जाते हैं  |लोकतंत्र में सिर्फ जनता के पास फालतू समय होता ई |जब तक जनता के  पास समय है | हुजुर के पास इंतज़ार  कराने के साधन हैं |
                                 सुनील कुमार सजल