व्यंग्य –आतंकवाद
देश में बढ़ रहे आतंकवाद को लेकर गांव की ग्राम पंचायत में आतंकवाद के
विरुद्ध देश वासियों की भूमिका विषय को लेकर एक सामान्य विचार विमर्श गोष्ठी का
आयोजन किया गया था |
गोष्ठी में भाग लेने हेतु सामान्य जनों के अलावा प्रतिष्ठित नागरिक
एवं समाज सेवी सेठ राम पुकार जी को भी आमंत्रित किया गया था |
गोष्ठी चल रही थी | सेठ जी अपने विचार प्रकट कर रहे थे | तभी उनकी नजर
अपने ही नौकर अखरू पर पड़ी | वह बोलते हुए अंदर ही अंदर उबल पड़े | पर अपने आप को उन्होंने नियंत्रित कर लिया
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उनका वक्तव्य समाप्त हुआ | वह कक्ष से बाहर आये | नौकर अखरूको पास
बुलाया| उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जमाते हुए धीरे से चीखा- साले, तुम्हे खेत
भेजा था या यहाँ सुनाने के लिए बुलाया था | तुम्हारा बाप करेगा खेत का काम ...साले
कर्ज लेने से कभी चूकते नहीं | चुकाने की बारी में मुंह छिपाते हो और ऊपर से कहते
हो काम करके चुकता कर देंगे ...चलो फूटो वरना हाथ-पैर तोड़ दूंगा ‘’ गाल पर दूसरा
थप्पड़ की झनझनाहट और उनकी गुर्राहट के भय से अखरू आतंकवाद के सामने आम जनों की तरह
टूट सा गया था |शायद उसके लिए यह आतंकवाद का साक्षात दर्शन था