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सोमवार, 25 मई 2015

व्यंग्य –बे-मौसम बरसात पर विमर्श


व्यंग्य –बे-मौसम बरसात पर विमर्श

इस बार गरमी का अजीब नजारा है | नजारा यह है किगरमी पिछले सालों का रिकार्ड नहीं तोड़ पा रही है | वे परेशान हैं | गरमी न पड़ने को लेकर | वे कोई खेती किसानी वाले नहीं हैं कि गरमी न पड़े तो वर्षा की स्थिति खराब रहेगी , और ठण्ड की भी | इस पर चिंता करें | वे आइसक्रीम ,कुल्फी कोल्डड्रिंक्स बेचने वाले कोल्ड स्पॉट के मालिक भी नहीं हैं |जिससे दुकानदारी पर असर पड़े | दरअसल वे सरकारी अधिकारी हैं | कई मामलों में सरकारी अधिकारीयों की चिंता का विषय मौसम ही होता है | उनके कारनामों की जड़ व् रहस्य मौसम ही होता है | मौसम ही उनकी जेब का थर्मामीटर होता है | उनकी जेब का तापमान का बढ़ना , न बढ़ना मौसम की हरकत पर निर्भर करता है | मौसम जितना अनुकूल होता है, उनकी जेब का तापमान व् दाब भी अनुकूल होता है |
  अधिकारी यानी हमारे साहब गरमी न पड़ने को लेकर चिंतित हैं | दफ्तर में साड़ी योजनायें शुष्क सीजन की ही आती हैं | वर्षाकालीन योजनायें हमारे सहयोगी विभाग के पास है हमारे साब को वर्षा से सख्त नफ़रत है | खासकर बे-मौसम बरसात से | जो उनके खायाबों व् योजनाओं पर पानी फेर देती है |
इन दिनों का मौसम भी बे- मौसम बरसात का ही है | वे ऐसी बरसात को तबियत से गाली बकते हैं | एक दिन तो क्रोध में ग्रीष्म की तरह तपकर यहाँ तक कह दिया | फंसाओ किसी भी मामले में इन्द्रदेव को | और भेज दो जेल | ताकि वह बरसात कराने के मामले में जेल में सड़ते हुए हाथ मलते रहें |
  जब गुस्से का पारा डाउन हुआ तो एहसास हुआ | यही काम उनके बस में नहीं है | और शर्मिन्दा भी हुए |
 साहब हमारे शुष्क एवं ग्र्रीश्मकालीन राहत योजनाओं के प्रभारी हैं | शुष्कता के दौर में आम जनता को रहत पहुंचाने हेतु उनके पा भारी-भरकम एलाटमेंट आ जाता है कभी-कभी तो इअतना आ जाता है किसाहब को पूरी रात जागकर सोचना पड़ता है | आखिर इतनी राशि कहाँ और कैसे खर्च करें |
तो साब | गरमी कुछ इस तरह पद रही है किइधर तापमान बढ़ा और बरसात हो जाती है | गरमी अपनी जवानी का एहसास नहीं कर पा रही है इधर ग्रीष्म का ठंडा होना और उधर साहब के दिमाग का गरम होना , एक सामान घटनाक्रम है | कभी-कभी तो आसमान में छाए बादलो को देखकर उनका दिमाग इतना गरम हो जाता है की मातहतों को उनके लिए ‘’ ठंडी बीयर ‘ की तत्काल व्यवस्था करनी पड़ती है |
उस दिन साहब का भेजा फिर गरम हो गया | मामला यह था कि बादल रात भर बरसे | मानो आषाढ़ का महीना हो | धरती पर आषाढीया  सांप दिखने लगे | और साहब की छाती पर लोटने लगे |
एक दिन साहब मीटिंग ले रहे थे | बोले-‘’ यार तुम लोग का बदरा वाले दिनों में भी आँख में काला चश्मा चढ़ाए बैठे हो |’
‘’क्या हुआ सर ! ‘’ एक मातहत का प्रश्न |
‘’ इत्ता कुछ हो रहा है | और तुम पूछते हो कि क्या हो गया ? साहब का अफसोस स्वर |
‘’हम समझे नहीं सर | ‘’ मातहत का म्याऊँ भरा स्वर |
‘ समझोगे कैसे? मुफ्त की चाय पानी व् बोतलों में ऐसे डूब जाते हो कि बाहर की दुनिया का हाल देखते नहीं |’’ साहब पुन: गुर्राये |
‘’का कोई राजनैतिक प्रपंच सामने आया है या फिर शो काज नोटिश सर |’
‘’ नहीं यार ....| देखते नहीं बे-मौसम बरसात को | सारे सपनों को पानी में डूबाने पर तुली है | पेय जल व्यवस्था पर खर्च करने हेतु एलोटमेंट आया है उसे कहाँ डुबाओगे| वाटर शेड स्टॉप डेम . जल रोको अभियान –वभियान  जैसी योजनाओं का क्या होगा | जब ऐसी बरसात होगी तो |’’
‘’ सर! फिलहाल अपन शांत होकर बैठ जाते हैं | जब मौसम शुष्क होगा तब इस एलोटमेंट को खर्च करेंगे |’
‘’ तुम हो बेवकूफ | तब तक तो दूसरा एलोटमेंट आ जाएगा | इधर ऊपर से प्रेसर  अलग बन रहा है कि पूरा अलाटमेंट कर्च कर हिसाब भेजो | अगर गलत तरीके से खर्च किए तो आर.टी.आई के कार्यकर्ता मीडिया व् राजनीतिज्ञ मेंढकों की तरह टर्रा- टर्रा कर शोर मचा देंगे |’’ साहब बोले |
‘’ फिर क्या करें सर!’’ एक मातहत |
‘’ ‘सोचो और उपाय निकालो |’’
‘’ कुछ तो समझ में नहीं आ रहा है सर |’’
‘’ यार इत्ता भी दिमाग नहीं लगा सकते | जब बरसात नहीं होती तो लोग खेतों में नंगे होकर हल चलाते हैं , मेंढकों की माला पहनकर घर-घर भीख माँगते हैं | साँपों को चौराहे पर लटकाते हैं मुर्गों की बलि देते हैं | ऐसे कुछ टोटके गरमी पड़ने व् बेमौसम बरसात रोकने के लिए नहीं  हैं क्या ?””
“” किन्तु सर.....!”” असमंजस्य में डूबे मातहत |
‘’ देखो यार , किसी तांत्रिक बाबा पंडा पुजारी से मिलकर एकात टोटका पूछो और अमल में  लाओ |’’
‘’ सर टोटका हमने देहातों में देखा है | कहते हैं उससे बरसात रुक जाती है |’’ एक मातहत ने थोड़ा प्रसन्न होकर बोला |
‘’ बताओ |’’
‘’ सर, जब बारात तेज अंधड़ के साथ हो रही होती है तो गाँव के लोग आँगन में मूसल फेंक देते हैं  कहते हैं इससे बरसात रुक जाती है | ‘’
‘’ या सारे उपाय बरसात शुरू होने के बाद के हैं न |’’
‘’ जी सर |’’
हमें ऐसे उपाय नहीं चाहिए | हमें वह टोटके  चाहिए जो बादलों को छाते ही गायब कर दे |’’
‘’ साब ऐसे उपाय तो सरकार व् वैज्ञानिक के पास भी नहीं हैं | तो बाबू और तांत्रिक का घंटी बजायेंगे साब |’’ एक वरिष्ठ व् दबंग मातहत चिढ़कर बोला | इसी बीच एक चमचा किस्म का मातहत अपनी चमचागिरी के साथ उचका बोला- ‘’ सूना तो है गाँवों में ऐसे तांत्रिक होते थे | जो बादलों को मन्त्रों से बाँध देते थे | फिर वे सीमा में प्रवेश नहीं कर पाते थे |’’
‘’ उन्ही का पता को |’’ साहब बोले |

‘’ सर, अब उनका पता नहीं है | और न ही अपनी पीढी को गुरु मन्त्र देकर गए | शायद उन्हें आभास था | भविष्य में जंगल नहीं बचेंगे | इसलिए कहीं उनकी पीढी बादल कैद करने का खेल खेल बैठी तो आम आदमी पेय जल संकट से घिर कर प्यास में मर जाएगी |’’
‘’ जब तुम्हारे बस में ये टोटका आने वाला नहीं है तो फिर उसे बताकर हमें किस बात से ललचा रहे हो |’’ साब ने डपट भरे अंदाज में कहा | मातहत खामोश हो गया |
 मीटिंग अभी भी चल रही है | समस्या ज्यों की त्यों अपनी अदि पर है | विचारों का मंथन जारी है |
पुन: आसमान में बादल छाने लगे हैं | साहब का दिमाग भी गुस्से से बिजली की तरह कड़कने लगा है | मीटिंग में मातहतों को आभास हो चला |साहब बरसने के मूड में आ गए हैं | अत: वे बचाव में  सावधान हो गए हैं |
                    सुनील कुमार ‘’सजल’’