व्यंग्य -हमें नंगा न समझें,प्लीज !
‘कृपया हमें नंगा न समझे यह मैं नहीं कह रहा हूं। बल्कि आज का चोर समाज कहता है। जिन्हें लोग गिरा हुआ समझते हैं। वे मूंछ पर हाथ फ़ेर कर कहते हैं –‘’ चोर हुए तो क्या हुए। अपना समाज भी करोड़ों की जन संपत्ति पर हाथ साफ़ करता है। जैसे विभिन्न राष्ट्रीय संपत्तियों पर आप।
आप से उनका आशय है। आप भी चोर हैं।सिर्फ़ उन्हें चोर कहकर अपमानित न किया जाये।भले ही आप शरीफ़ चोर हैं और वे बदमाश …।
देखा जाये तो हम भी किसी से कम नही हैं। यानि धन के मामलों में हम भी करोड़पति न सही, लखपति जरूर होते हैं। आप विभिन्न प्रकार के ‘’कर’’ चोरी करते हैं, और हम आपका माल।
एक चोर ने कहा था। बात हमें उस समय बुरी लगती है भाई साहब हम चोरी करते हैं, रिस्क लेते हैं। और पुलिस हमसे धंधे मेन सेटिंग की बात करती है।वह भी बड़ा परसेण्ट का हिस्सा मांगती हैं। भाई जी, आप ही बताइये। पकड़े गए तो हमें दोनो तरफ़ से जूते पड़ते हैं।एक तरफ़ जनता से दूसरी तरफ़ पुलिस से। जो जनसामान्य में अपनी वाह-वाही लूटने के लिए ठोंकती हैं।
भाई साब, सिर्फ़ आप मात्र चतुर नहीं हैंऽपन भी बड़े घाघ सियार हैं।जैसे आप भ्रष्टाचार का गिफ़्ट देकर कानून के शसकीय या गैर शासकीय पक्ष की टेढी नजर को सीधा कर अपना ऊल्लू सीधा कर लेते हैं। वैसे ही हम भी पुलिस से ताल्लुक बढाकर अपने धन्धे में सफ़्लता हासिल कर लेते हैं। आप तो जान्ते हैं ।इस भ्रष्ट युग में ब्गैर सेटिंग के कोई भी व्यवसाय नहीं फ़लता-फ़ूलता।
कभी-कभी पुलिस जनता की नजर में हरिशचन्द बनने के अंदज में आती है। हमारे कारनामों पर हाथी के दांत की कहावत की भांति अंकुश अभियान चलाती हैं।यह सब जनता को उल्लू बनाने का फ़ंडा है।आपको राज की बात बतायें। सुनेंगे न। हमें के संबंध में पहले ही सतर्क कर दिया जाता है।‘
‘’अबे ओ कल्लू। अपने आदमियों को सतर्क कर दें। तनिक इत्ते से इत्ती तारीख तक कहीं भी अपने धंधे को अंजाम न दें।कुत्तों हमाराअभियान चालू होने वाला है। हरामी की औलादों, अगर तुम लोग पकड़ेगए तो तुम्हारी कुत्ता फ़जीयत कर देंगे। हां, सुन तेरे गिरोह में दो चार लल्लू टाइप चोर होंगे। उन्हें पच्चीस-पचास हजार के माल के साथ फ़र्जी गिरफ़्तारी करवा दे।यःआं प्रश्न नहीं करना कि सेटिंग होने के बाद भी माल पर हाथ काहे धरने जा रहे हो। बदमाशों, अभियान की सफ़लता ऐसे ही फ़र्जीवाड़े में होती है। साले, अभियान चले और फ़ाइलों पर गोदना नुमा अपराध न दिखे। विभाग की नाक थोड़ई न कटवानी है। साली इधर मीडिया भी कम हरामी नहीम हैऽबियान की सफ़लता पर सवाल करके भेजा खाती है।
एक शातिर चोर का कहना था । उनके चोर समाज में कुछ ऐसे चोर तत्व घुस आए हैं, जिन्होने धन्धे को अपनी ओछी करनी से बदनाम कर रखा है।मसलन, दफ़्तर की सामग्री, खेत- खलिहान किराना दुकान से अनाज व खाद्य सामग्री तथा बगीचे से फ़ल-फ़ूल व सब्जी तथा ऐसी ही अन्य सामग्री की चोरी।
उसका कहना था। चोरी करो तो डंके की चोट पर। जाबांज बनकर। जिस घर या प्रतिष्ठान में चोरी हो,उसका मालिक साल छः महीना बिन पानी की मीन की तरह तडपता रहे।
वह यह भी कहता है। जन समाज में कुछ धर्मवीर होते हैं। जो देवालय इत्यादि में जेवरात इत्यादि अर्पित करते हैं। जिन पर हम हम लोग हाथ मारकर दो-चार माह धंधे से फ़ुर्सत पा लेते हैं। हमने तो यह भी सुना हैं। कुछ लोग समाज में प्रतिष्ठा प्राप्ति के लिए हमसे डाका डलवाने का प्रयास करते हैं। दस की चोरी को लाख की बताकर समाज में वाह-वाही लूटते हैं। वहीं कुछ लोग लाख की चोरी को दस की बताकर धनाढ्यता की पोल छुपाते हैं। ऐसे लोग कुल मिलाकर कथरी ओढकर घी खाने वाले लोग होते हैं।
समय के बदलाव के साथ चोर समाज में भी व्यावसायिक व मानवीय एकता नहीं रही। वह भी राजनैतिक पार्टी व कर्मचारी संघों की तरह कई गुटों में बंट गए हैं। जैसे चड्डी बनियान गिरोहअथियार बंद गिरोह। जेवरात साफ़ करने वाले गिरोह। भुट्टा चोर। वाहन, मोबाइल व कम्प्यूटर चुराने वाले अन्तरराज्यीय गिरोह।
वैसे चोर समाज भी पुलिस विभाग की तरह हाइटेक हो गया हैं। जो विभिन्न वैज्ञानिक यंत्रों के माध्यम से परिस्थितियों की स्केनिंग कर धंधे को अ
जाम देता है। चोरों का अपना समाज है। जैसे ईमानदारों व बेईमानों का। चोर अपने मौसेरे भाई को अच्छी तरह से पहचानता है। उनमें आपसी भाईचारा पाया जाता है।
चोरों का एक सामाजिक उसूल है। वह एक घर छोड़कर चोरी करता है। मगर बेईमान व भ्रष्ट अपने उसूलों के पक्के नहीं होते। वे हर किसी की जेब व खजाने पर डाका डाल देते हैं। दुख इस बात का है कि तब भी वे समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। मगर चोर समाज…?
इसलिए हम चोर समाज पुनः आपसे करबध्द निवेदन करते हैं’’ कृपया हमें नंगा न समझें। हम बाकी सफ़ेदपोश चोरों की तरह नंगे नहीं, सौ में डेढ प्रतिशत ही सही हममें अभी ईमान बाकी है।
सुनील कुमार ‘’सजल’’
व्यंग्य- शिकायतों पर टिकी सत्ता
उस दिन मन्त्री जी गांव के दौरे पर थे। उन्हें शहरी दौरों, राजधानी व विदेश यात्राओं से फ़ुर्सत मिलती कब है।फ़िर भी पार्टी हित में गांव की नरक यात्रा में जाकर नारकीय जिन्दगी जीती जनता को दर्शन देना ही पड़ता है। वैसे भी इंडिया में ‘’भारत” गांवों में बसता है तो मजबूरी होती है दो- चार साल में एकाध बार गांव में पांव धरने की।वरना सोचने की फ़ुर्सत कहांहै कि गाव में क्या हो रहा है।राजनीति भी क्या चीज है, जहां बुलाती है जाना ही पड़ता है।
उस दिन मन्त्रीजी दौरे पर गांव में जबरदस्त स्वागत की तैयारी थी। छुटभैये नेता से लेकर अधिकारी – कर्मचारी तक पूरी तरह सक्रिय थे , फ़िर पार्टी के छुटभैये नेता मह्त्रीजी के आगमन का ऐसा प्रचार फ़ंडा अपनाते हैं कि मन्हुस जनता भी ‘’ मन्त्री दर्शन’ को टेलीविजन पर अपने आने वाले लाजवाब सीरियल की तरह देखने को बेताब हो उठती है।
उस दिन भारी भीड़ थी। भीड़ भी इसलिए थी कि पार्टी की ओर से बाहर के लोगों के लिए पूरी-साग के पैकेट की व्यवस्था की गयी थी।
मन्त्रीजी क आगमन हुआ। स्वागत-सत्कार, भाषन, आश्वासन और विपक्ष की खिंचाई करने का दौर चला। चतुर मन्त्री हमेशा चतुराई से काम लेता है। वह जनता की शिकायतें एक कान से सुनता है, ताकि जनता कल यह न कहे कि मन्त्रीजी उनकी नहीं सुनते।सो वे जनता को मार्केटिंग सोसायटी में आने पर बीपीएल श्रेणी के अनाज वितरण में घोटालेबाजी से लेकर स्कूल के मध्यान्ह भोजन, अपूर्ण विकास तक की शिकायत सुनें। मन्त्रीजी उन्हें सांत्वनादेते हुए बोले-‘’ हमारी गांव की जनता वाकई परेशान है। आपने शिकायत की है। कल ही मैं इअसकी जांच करवाकर दोषी अफ़सरों, कर्मचारियों पर कार्यवाही करता हूं। मुझे तो यह मालूम नहीं था कि हमारे अफ़सर व करमचारी इस हद तक गिर गए हैं।सबसे पहले तो इनका वेतन रोकता हूं… फ़िर जांचपूर्ण होने पर आगे की कार्यवाही।‘ मैं आपके साहस का आभारी हूं। मन्त्रीजी अपने आश्वासन से जनता के मन को सहला कर चले गए। जनता बेहद खुश थी।
अगले चार दिन बाद जब वे जिले में मीटिंग ले रहे थे। छोटे-बड़े अधिकारी सभी शामिल थे।
मुझे जिले के अफ़सरों से शिकायत है। मंत्रीजी बोले। सभी उपस्थित अधिकारियों को जैसे सांप सूंघ गया। चिन्ता की कोई बात नहींहै। मंत्रीजी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
सभी के चहरों पर हल्की मुस्कान तैर गयी। देखो तुम लोग शिकायतें पैदा नहीं करोगे तो मुझे सुनने का मौका कैसे मिलेगा। जब जनता मुझसे शिकायत करेगी तो मैं उन्हें शिकायत पर कार्यवाही करने का आश्वासन दूंगा। इससे जनता खुश रहेगी और जनता जब तक खुश रहेगी, अपनी सरकार सत्ता में काबिज रहेगी, इसलिए जब भी कोई काम करो, उसमें शिकायतों का अंश अवश्य उत्पन्न करो। रही बात कार्यवाही की तो वह सब शोकाज नोटिस तक सीमित रहेगी। मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ है।
मीटिंग ससमाप्त हुई। मंत्रीजी उथकर चल दिए।
शिकायतों में ही गांव की तस्वीर छिपी है और जब तक शिकायतें रहेगीं, गांव तो गांव रहेंगे। गावों में भारत बसता रहेगा।