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रविवार, 24 मई 2015

व्यंग्य- बिजली कटौती के फायदे


व्यंग्य- बिजली कटौती के फायदे

गरमी के दिन आ गए | वही पसीने वाले दिन | जब आप तन से बहते पसीने को पोंछते नहीं थकते औए ग्रीष्म को कोसते हुए भी | ऐसे वक्त पर बिजली कटौती कितनी भारी पड़ती है | सभी जानते हैं शिकायतों पर शिकायतें| बिजली विभाग व् सरकार को गालियों पर गालियाँ | यही वक्त मिला है काटने का | ठण्ड या बरसात में काटते तो क्या बिगड़ता | सरकार या बिजली विभाग क्या करे उसकी बिजली का उत्पादन भी प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर है \ जिनका दोहन करना हमने अपना अधिकार समझ रखा है |
बिजली कटौती का रोना तो बारह मासी है साब | पर चुभती गरमी हमें नानी याद दिलाती है | हम ठंडक की चाहत रखते हैं | ग्लोबल वार्मिंग के दौर में | हिम क्षेत्रों सी ठंडक की चाहत |
ग्लोबल वार्मिंग को चुनौती देने के लिए हमने कूलर , पंखे, ए.सी. , रेफ्रिजरेटर अपना रखे हैं | पेड़-पौधे की जगह पर भी अपन अंगद पाँव जमा लिए | मिटटी के घड़े या सुराही को शौकिया अपनाते हैं | अपने बड़प्पन को बढाने के लिए कहना पड़ता है –‘’ अपन ने फलां क्षेत्र की प्रसिद्ध सुराही खरीदी है | सूना है किइसमें पानी ज्यादा ठंडा होता है |
खैर, छोडी | निंदा तो कभी नहीं समाप्त होने वाला विषय है | आखिर लोगो को शिकायतों से ऊब कर हमने बिजली कर्मचारी से बिजली कटौती का कारण पूछा | वह शेर छाप बीडी सुलगा कर मुंह के कोने में दबाते हुए बोला-‘’ लोंगो को बिजली बचत व चोरी न  करने की हिदायत दो और न काहू की सुनो | पर दोस्त . चिंता करने की जरुरत नहीं |’’ जैसे उसने  हमारे चहरे पर दुविधापूर्ण विचारों को भांप लिया | फिर बोला –‘’ असरकार बिजली खरीदने जा रही है | फिर पंद्रह घंटे की कटौती का मामला खत्म हो जाएगा | आपकी गरमागरम कुढ़न ठंडी हो जाएगी |
‘’कब तक खरीदेगी | देख रहे हो गरमी सरकती जा रही है | गरमी बीतने के बाद खरीदेगी |’’
‘’ धैर्य रखो | सरकारी कामकाज है | सरकारी गति से चलता है | बनिया की दुकान से किलो भर किराना खरीदने जैसा नहीं है | बिजली करीदना | बैठकें होती हैं | रेट तय होते हैं | फिर सफ्लाई मिलती है |’’ उसने हमें सरकारी क्षेत्र का अर्थशास्त्र समझाते हुए कहा |
बिजली कटौती भले लोगो के लिए कष्टों का दौर रहे , पर हमारे पहचान के एक साहब के लिए कई-कई दिनों तक बिजली गुल रहने वाला क्षेत्र कुबेर क्षेत्र साबित हुआ |
साहब जब वहां स्थान्तरित होकर गए थे | वे भी इस ट्राइवल एरिया को नरक’ समझ रहे थे | पर चाँद दिनों के बाद उनकी धारणा बदल गयी | वे इसे स्वर्ग कहने लगे | जहां कई-कई दिनों तक बिजली आती नहीं |
उस समय साहब जब अपनी बीबी जी को वहां ले गए | वह चार दिन में रात में बिन बिजली के परेशान हो उठी | उनकी नाराजगी को भांपते हुए साहब ने उसे समझाया –‘’ देखो,प्रिये ! जिसे तुम भूतों का गाँव समझती हो न | वहीँ लक्ष्मी बसती है | ज़रा सोचो , शहरी जगमगाहट में रहकर मैंने कितना कमाया | इतना न  कि मकान के लिए नींव बनवाने का सामर्थ न था मेरे पास | मगर वहां आने के बाद | एक भवन बनाने की क्षमता आ गयी | ध्यान रखो | लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर अँधेरे क्षेत्र में ही भ्रमण कराती है | कारण , उल्लू को रोशनी से परहेज है | आखिर जहां उल्लू जाएगा उस पर सवार लक्ष्मी भी वहीँ जाएगी |’
बीबीजी ने भले ही मुंह बिचकाकर दिखावे की नाराजगी ओढ़ी थी | पर साहब द्वारा इस विकास की रोशनी से परे क्षेत्र में की जा रही काली करतूतों की सच्चाई जानकार मन ही मन खुश थी |
आफिस के कंप्यूटर चलाने के लिए तीन लाख रुपये का जेनरेटर खरीदने का प्रस्ताव साहब ने हैड आफिस भेज दिया था | जेनरेटर आने के बाद हर रोज उसे चलता दिखाकर डीजल के पैसे बचाने का तरिका भी सुलभ हो गया था |
साहब तो चाहते थे | इस क्षेत्र में बिजली न आये तो भला है | आखिर लोगों को उल्लू बनाए रखने के लिए अन्धेरा आवश्यक है |