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रविवार, 10 मई 2015

लघुकथा – कमाई


लघुकथा – कमाई
सोमवती अमावस्या का दिन | सेठ जी हाथ में थैली लिए बस स्टैंड की ओर जा रहे थे |
‘’ अरे सेठ जी कहांजा रहे हैं ...वह भी सुबह –सुबह |’’ मैं उन्हें देखते ही बोला | वे खड़े हो गये|
‘’नर्मदा करने अमरकंटक |’’
‘’ ऐसी कडकडातीसर्दी में क्यों प्राण दे रहें हैं |’’
क्या करें तो ...आज मार्केट भी सूना है ... धंधा – पानी सब ठंडा है ...सोचा आज पुण्य ही कमा आएं ...| फिर अन्य दिनों में धंधे की कमाई से फुर्सत कहां मिलती है ?’’
‘’ यानी सिर्फ कमाई की ही चिंता ... सेठ जी |’’ मैंने हंसते हुए कहा |
‘’ भई अपन ठहरे व्यापारी ... हर क्षेत्र में मुनाफ़ा ही देखते हैं ..फिर वह धर्म हो धंधा ...|’’
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’