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रविवार, 24 मई 2015

व्यंग्य _मौक़ा


व्यंग्य _मौक़ा


पास के शहर में साहब की साली का विवाह संपन्न होने जा रहा था | साहब ने दफ्तर के सभी कर्मचारियों को निमंत्रण –पत्र बंटवाए थे |विवाह में शामिल होने  को लेकर कर्मचारयों में दो तरह के विचार उभरे थे | एक वर्ग कह रहा था- ‘’ क्या करेंगे शामिल होकर | दुनिया का नियम है वह सामने चमक रहे सूर्य को प्रणाम कराती है ,उसके प्रकाश से जो तारे चमक रहे हैं उन्हें कौन सर झुकाता है |’’दूसरा वर्ग जो पिछलग्गू था | विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के मामले में पूर्णत: सहमत था | उपहार देने लेकर तरह-तरह की योजना बना रहा था |
दफ्तर का एक चापलूस कर्मचारी स्वाभिमानी वर्मा को समझाते हुए कह रहा था – ‘’ कार्यक्रम में हो जा शामिल .. वरना पछताएगा यार...यही मौक़ा होता है जब साहब लोग अपने कर्मचारियों में से विशवास पात्र लोगों का चयन करते हैं |’’ वह आगे बोला – सूना है तुमने ‘’ वाटर रिसोर्स स्कीम के तहत लाखों रुपये आने वाले हैं | उपहार बतौर चार-पांच हजार का पिंजरा साहब के सामने रख देने से यदि योजना क्षेत्र की एकाध बटेर हाथ लग जाती है तो क्या बुरा है ... सब कुछ उसी में एडजस्ट हो जाएगा | चल तैयार हो जा ... ज्यादा मत सोच यार....| भई, कोई शादी में शामिल हो या न हो अपन तो चले ...|’’वर्मा अभी सहमत नहीं हो पा रहा था | उधर वह कर्मचारी जाने की तैयारी के लिए दफ्तर से  घर की और निकल पड़ा था |