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रविवार, 24 मई 2015

व्यंग्य – प्याऊ में प्यास


व्यंग्य – प्याऊ में प्यास

शीतल पेय पीने के दिन चल रहे हैं | यानी गरमी के दिन | शीतल पेयों की दुकानें सज गयी हैं | गली चौराहें बाजार में | असली नकली माल खपने लगा ‘ शीतल पेयों में ‘ ‘|
मत देखो यार क्वालिटी , बस पीये जाओ | खाए जाओ ठंडा क्रीम युक्त बर्फ | बदन को ठन्डे से टार करो | लूट लो जितना चाहो ठन्डे के नाम पर | दुकानदार या विक्रेता भी हाथ झटका कर खडा है लूटने को | स्वागत में भी ‘ ठन्डे का दौर चल रहा है |
प्यास भी कुछ इस कदर बढ़ी है , जैसे सूखती नाड़ियाँ | प्यास के बढ़ाते ग्राफ को थामने के लिए पीनी आत्माएं जाग उठी हैं | चैत,बैसाख व जेठ के दिनों की गिनती शुरू हो गई है | पुन्य कमाने के मॉस | प्याऊ केंद्र खुल गए | वही ठंडा पानी वाले प्याऊ केंद्र | पुन्य आत्माओं ने बीड़ा उठाया है पुन्य कमाने का | धर्म गुरुओं ने भी आदेश दे रखा है अपने धर्म पथिकों को, ‘ जो पुन्य गंगा स्नान में नहीं है , वह पुन्य है लोगों की प्यास बुझाने में |’ पुण्य  आकांक्षी आतुर है प्यास बुझाने को | धर्म का मामला है | किसी भी कार्य की सफलता पूर्वक करवाना हो तो उसे सबसे पहले धर्म से जोड़ दिया जाए | असफलता की मुंह खाने वाला काम भी सफल हो जाएगा | खैर छोडी , विवादित विषय को |
इधर नगर सेठ शरमा जी ने भी प्याऊ केंद्र खोला है | नगर सेठ बनाना इतना आसन नहीं है, जैसे इलाके में चर्चित नेता | जाने कितने पाप करने के बाद ऐसे प्रतिष्ठित पद मिलते हैं जो बाद में पुन्य कमाने के अवसर देते हैं | जन सेवा के नाम पर |
 सेठ जी का प्याऊ केंद्र उनकी किराना दूकान की बगल में खुला है | वे वर्षों से वाही खोलते आए हैं | ऐसा नहीं है कि उनके पास जगह की कमी हो | में मार्केट में भी खाली प्लाट है उनके पास | पर वे वहां नहीं खोलते | दूकान के बगल में ही खोलते आए हैं | सो वहीँ आज भी खुला हुआ है | वैसे भी प्याऊ केंद्र कहीं भी खाली जगह पर या सड़क पर खोल दो | सरकार आप पर कब्जियाने का जुर्माना नहीं लगाएगी | वह भी जानती है राजनैतिक या धार्मिक दृष्टिकोण से पुण्य  का काम है |
तो साब , शरमासेठ जी का प्याऊ केंद्र दो उद्देश्य का केंद्र है | वह पुण्य के साथ धंधे के मकसद को भी देखता है | धर्म के आड़ में धंधा पनपे तो क्या बुरा है | जैसा कि वर्तमान राष्ट्रीय फलसफे में कीचड़ में कमल की तरह खिल रहा है | प्याऊ केंद्र में उनकी दूकान के नाम का सौजन्य बैनर लगा है |
हमने उनसे कहा –‘ सेठ जी, पुण्य हमेशा गुप्त कर्म या दान से कमाना चाहिए | अगर सौजन्य बैनर न लगाते तो क्या बुरा था |’
‘तो क्या नाम देते ?’’ वे बोले |
‘’ सिर्फ प्याऊ केंद्र |’’
‘’ तुम गुरु लोग समझते हो तुम्ही चतुर हो | अपन भी सेठ हैं एट | गुरु धर्म में विद्या दान के नाम पर वसूलना क्या पुण्य का अंग है |’ हम चुप रहे | वे बोले –‘’ अगर इस देश में पूंजीपति बनाना हो तो धर्म की अनुकूलता को देखकर लाभ उठाना सीखो | प्यारे | जेब में पूँजी अपने आप आएगी | बिन मांगे | वह भी हंसी ख़ुशी से | बटोरते रह जाओगे | इस देश में चतुर और बदमाशों के चहरे पर दो नकाब हैं | आधा धर्म का आधा धंधे का | वे ही देश में पूज्य हैं | ‘’ सेठ जी हमें धर्म की फिलासफी समझाने में व्यस्त थे | इसी बीच उनका भांजा आ गया | ‘’मामा जी , ये क्या दूकान के आसपास पानी फैलाकर कीचड़ बढाने में तुले हैं |’’
‘’ भांजे, अभी तुम धंधे के मापदंड नहीं समझोगे | ‘ फिर सेठ शकुनी अंदाज में उसे प्याऊ केंद्र व् किराना दूकान के बीच के समबन्ध को जिस ढंग से समझाया | उससे भांजे के चहरे पर दुर्योधानी मुस्कान आना स्वाभाविक था | और गीता सार की पुन्या , मोक्ष , सत्कर्म जैसी बातें केवल हम जैसे आम आदमी के हिस्से में रह गई थी |
परसों ही एक मजेदार वाकया सामने आया | पड़ोसी राज्य में घटित ‘’ टायलेट घोटाले की तरह हमारी नगर पंचायत में मटका घोटाला हो गया | जो प्याऊ केंद्र के लिए मटके खरीदे गए थे | मिटटी के घड़ों की ऊँची कीमत दी गयी थी | लोगों की प्यास बुझाने की आड़ में पालिका कर्मचारियों की जेब की प्यास बुझी थी | किसी ने ठीक कहा है –‘’ जब तक पाप प्यास जागृत नहीं होती , पुण्य के प्याऊ खुलते नहीं |’’