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मंगलवार, 19 मई 2015

व्यंग्य –ये गांधी को रास्ता दिखाने वाले


व्यंग्य –ये गांधी को रास्ता दिखाने वाले



महापुरुषों की भांति रास्ता दिखाने वाले लोग कहाँ रहे ,अब तो रास्ते में आने वाले जरुर मिल जाते हैं, गली , चौराहे, गांव , शहक्र कहीं भी |
पहले वक्त अलग था , लोग भटके जनों को रास्ता दिखाने में धर्म कर्म भी समझते थे | लेकिन वक्त बदला उल्टी रीत चली | राह दिखाना महज धंधा बनाकर रह गया | जो राह दिखाते हैं वे भी विश्वसनीय नहीं रहे | असली चहरे पर मुखौटा लड़ा है | धंधे का चन्दा उन्हें न  मिले तो वे राह पर हाथ फैलाकर या रोड़े बनाकर खड़े हो जाते हैं | देखते हैं साला कैसे आगे बढ़ता हैं | टांग खीचों, इत्ते के बाद भी न माने तो हाथ पाँव तोड़ दो और ज्यादा साहस दिखाए तो स्ट्रेचर पर लाड कर अस्पताल पहुचाओं और वहां डाक्टर को घूस देकर उलटा –सीधा इलाज करवाकर लकवा ग्रस्त रोगी बनवा दो | ताकि जी सके,न मर सके | बस , टुकुर –टुकुर देखकर अपनी जिन्दगी की उलटी गिनती गिनता रहे |
गांधी जी थे, वही महात्मा गांधी जी ,  जो भारतीय जनता को स्वतंत्रता पूर्वक सुखी जीवन जीने की राह दिखाते थे|लोग स्वतंत्रता पूर्वक जी सके , इसलिए उन्होंने संघर्ष किया अंग्रेजों से | पर वे नहीं रहे , अब तो वे स्टेचू के रूप में खुद चौराहे पर खड़े हैं |  वे कूद दिग्भ्रमित हैं , किधर जाएँ , कौन –सी दिशा में जाएँ, कौन –सी दिशा ठीक रहेगी, कौन-सी नहीं, स्टेचू के स्वरूप में सोच नहीं पा रहे हैं | उनके नाम से अपना धंधा चमकाने वाले , राजनीति का चरखा चलाने वाले स्वतन्त्र भारत के राजनीतिज्ञ उन्हें दिशा ज्ञान देते हैं | कभी कहते हैं –‘’ इधर मुंह करके खड़े होओ  बापू , ये रास्ता हमारी पार्टी के दफ्तर की ओर जाता है , कभी खाते हैं उधर मुंह करके खड़े होओ  बापू वो रास्ता दारू फैक्टरी और कसईखानों के तरफ जाता है | आपके जमाने से भी बेहतरीन स्वादिष्ट दारू पकती है , हाइब्रिड जानवरों का स्वादिष्ट मांस भी पैक होता है उसी तरफ | दोनों का स्वाद मिलकर जिन्दगी जीने का स्वाद ही बदल देता है |
कुछ राजनीतिज्ञ  उन्हें जबरन तीसरी दिशा की ओर मोड़ कर कहते हैं-‘’ बापू आप तो अहिंसा का नारा लगाते-लगाते मर गए क्योंकि आपके पास हिंसा के आधुनिक किस्म के हथियार नहीं थे , हम जो आपको रास्ता दिखा रहे हैं वो माफिया तस्करों के पनाहगाह की ओर ले जाता है...सस्ते में देस्शी-विदेशी अस्त्र-शास्त्र उपलब्ध करा देते हैं ... आपको जब भी जरुरत पड़े आर्डर देकर पुख्तामाल प्राप्त कर सकते हैं |
चौथे किस्म के राजनीतिज्ञ बापू की धोती खीचते हुए अपने दिशा – ज्ञान का ज्ञान बापू को देते हुए कहते-‘’ बापू इन बहकाने वालों की बातों में मत आओ , हम जो रास्ता दिखाते हैं उधर जाओ | उस तरफ देश – विदेश से मानव तस्करी के माध्यम से लायी गयी सुंदर-सुंदर लड़कियों के अड्डे हैं | जो सीटी बजाकर यौवन की नुमाइश कर बूढ़े बदन में भी जवानी की तरंग दौड़ा देती हैं \ इसलिए फालतू लोगों के बहकावे न आकर जीवन आनंद का जो सार है उसी का मजा लूटो | यही रास्ता सबसे बेहतरीन रास्ता है |
  अब बापू का करें ? किधर जाएँ ? किसकी सुने किसकी नहीं सुने ? जिन लोगो के बताये मार्ग पर नहीं जाने की सोचते हैं | वे दुखी होकर निराहार उपवास पर बैठ जाते हैं ...| बापू कहते हैं-‘’ भैया हमें चौराहे पर ही टिके रहने दो | तो उनको दिशा ज्ञान देने वाले अड़ जाते हैं | आप हमारे बताये रास्ते की तरफ मुख करो | गांधीजी परेशां हैं .. इस दिशा में अब इतनी भी स्वतंत्रता नहीं रही क्योंकि हम जिधर जाएँ न जाएँ , हमारी मर्जी | फिर काहे की स्वतंत्रता इन्हें सौपी थी | अंतत: उन्होंने एक उपाय निकाल लिया वे बताए जा रहे रास्ते को नहीं देखेंगे बल्कि जमीन की तरफ देखेंगे | तब से हमारे शहर में चौराहे पर खड़े होकर धरती की तरफ टाक रहे हैं | अब कोई राजनीतिज्ञ उन्हें राह दिखाने नहीं जाता औए न ही हालचाल पूछता | बेचारे अकेले ही खड़े हैं और न जाने कब तक खड़े रहेंगे ? उस दिन हम नगर के एक राजनैतिक पार्टी के के सामने गुजर रहे थे | तभी देखा दफ्तर में घमासान मचा हुआ था | सब एक दूसरे की दाई माई टांग खिचाई कर रहे थे | अंदर की उठापटक ने हमें उस ओर आकर्षित किया | हम दफ्तर के द्वार तक पहुंचे | द्वार पर दुबके खड़े एक नेताजी अंदर के नज़ारे से भयभीत थे, ग़मगीन भी | सच कहें संसद या विधानसभाओं में प्रश्नकाल के दौरान जो सता पक्ष व विपक्षियों के मध्य जो मार –फुतैवल मचाती है, वही सीन यहाँ दृश्यमान हो रहा था | बूढ़े , जवान , महिला पुरुष ,सब एक दूसरे पर हाथापाई , झोंटा-खिचाई करते हुए चढ़े बैठ रहे थे | इज्जत कहें या मर्यादा , उसकी तो ऐसी- तैसी ही रही थी | सब बेफिक्री के साथ मस्त थे | हमने दुबके खड़े नेता जी को इशारे से दफ्तर के लान की ओर चलने को कहा , वे हमारे साथ इसलिए भी आ गए थे क्योंकि पड़ोसी हैं..| लान पर बिछी सीमेंट की कुरसी पर बैठते हुए पूछा-‘’ अंदर काहे का धूम धडाका मचा है , कहीं आगामी सत्र में सत्ता पक्ष को मजा चखाने का अभ्यास का क्रम तो नहीं है ताकि नौसिखिए विधायक सांसद अभ्यास से परिपूर्ण रहें | ‘’
‘’ आप भी बेवकूफों जैसी बातें करते हैं ... राजनीतिग्य इतना तो पहले से ही जानते हैं |’ उनहोंने हमारे प्रश्न पर चोट की |
‘’ अरे भई , हमारा कहने का मतलब घमासान मचा है तो उसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो होगा |’’ हमने कहा |
‘’ बिना कारण के यह सब होता है क्या ? बात  यह है किहमारे पार्टी के चार दिग्गजों ने पार्टी के उद्देश्यों के साथ गद्दारी की है | इसलिए उन्हें रास्ता दिखाने का क्रम चल रहा है |’’
रास्ता दिखाने का सही काम महापुरुषों ने किया और रास्ता दिखाते-दिखाते वे खुद रास्ते पर आ गए , तब भी देश रास्ते पर नहीं आया | औए तुम एक जात के लोग अपनी ही जात के लोगों को रास्ता दिखाने का बीड़ा उठाये बैठे हो ... जबकि सबके एक से सिध्दांत हैं और सब की रगों में एक ही प्रकार की काली करतूतों का रक्त बह रहा है |’’ हमने कुछ कड़वा कहा तो वे खीझ गए –‘’ देखो, जले पर नमक मत छिड़को यार... जानते नहीं हो पार्टी को कितना बड़ा झटका लगा है |’’ ‘’
‘’ सुनामी की हलचल जैसा |’’
‘’ मजाक मत करो .. पड़ोसी के नाते हम तुम्हें कुछ नहीं कह पा रहे हैं |’’
‘’ तो बताओ न भैया .. वोटर और दोस्त के नाते क्या हमें इत्ती सी बात जानने का हक़ नहीं है |’’
‘’ हक़ है... गद्दारों के बारे में जानने का हक़ है ... बात ऐसी है कि इन सालों ने प्रचार सभाओं में पार्टी की नीति का ही टांका उधेड़ कर हमारे विपक्षियों का गुणगान किया है और जब पार्टी के लोगों ने उनकी करतूतों पर उंगली उठाया तो फुल रंगदारी करने में उतर आये | इसलिए इन्हें पार्टी से रास्ता दिखाने का प्रस्ताव है |’’ उन्होंने बताया |
‘’ यानी पार्टी से खदेड़ने का |’’ हमने कहा |
‘’ और नहीं तो क्या , हमारी पार्टी को कोई इंसान बनाने वाला ठेकेदारी केंद्र समझ रखा है |’’
‘’ मगर गांधी जी जैसे महापुरुष देश को रास्ता दिखाने का मतलब बहके देश को सुधारना बताते थे | और आप लोग |’’
‘’ देखो यार , गांधी जी लोग दूसरों को सुधारने के फेर में खुद धक्का मुक्की खाते हुए चलते बने ,,और अपन वो हैं जो नापसंद हो उसे धक्का मारकर चलता करते हैं |’’
‘’ यानी, यह है आपका रास्ता दिखाने का अर्थ..|’’
वे टेंशन में थे हमारी बातें उन्हें चुभ-सी गयी | भड़क कर बोले- ‘’ देखो, जनाब तुम्हारा रास्ता वो है .... चुपचाप चले जाओ ....|’’  हम उनके समझाइश को गहरे अर्थ में लेकर निकल पड़े यह जानते हुए किनेता चाहे जितना शालीन हो कब मर्यादा खो दे पता नहीं |
    सुनील कुमार ‘’सजल’’