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बुधवार, 27 मई 2015

व्यंग्य- गिरोह का समाजवाद


व्यंग्य- गिरोह का समाजवाद

हम पहले ही कह चुके हैं कि गिरोहों के पीछे मत पदों , पर पुलिस वाले मानते कहाँ हैं ? गिरोह तो गिरोह हैं , साब ! सरेआम थाणे के सामने वारदात कर जाते है | पुलिस है कि अपनी पीठ थपथपाती रहती है , ‘’ इलाके में शांति है ..|’’ हम लोकतांत्रिक शैली में पहले भी कहते थे , अब भी कहते हैं और भविष्य में भी कहते रहेंगे कि गिरोहों को फलने-फूलने दो | हर दो नंबर के काम के लिए पुलिस का सहयोग जरुरी है | ऐसे सहयोगियों का भ अपना एक गिरोह है, जो गिरोहों  को असामाजिक से सामाजिक हिने का प्रमाण- पात्र देता है | साहब, गिरोह चलाना बिलकुल फैक्टरी चलाने जैसा है | आपके पास साहस और क़ानून को खरीदने के लिए धन-बल , आंतक मचाने के लिए हथियार और टार्गेट को स्कैन करने की क्षमता होनी चाहिए | इनमें भी प्रमोशन कि व्यवस्था होती है | खास बात यह है कि इनमें सामाजिक मतभेद प्रदाता आरक्षण लागू नहीं होता , जिसके लिए संसद में पक्ष और विपक्ष में घमासान मचा है |
  गिरोहबाजी बड़ा रिकी व्यवसाय है, किराने व् गल्ले का धंधा नहीं है | माल नहीं बिका तो औने- पौन किसी को भी थमा दो | साब! गिरोहों का केवल आंतक पक्ष मत देखी | आपकी औलाद परीक्षाओं में कई वर्षों तक लुढ़कती जाए , तो आप क्या करेंगे ? या तो औलाद का जीना हराम कर देंगे या सर पर हाथ रखकर बैठेंगे \ पर, आप चिंता मत कीजिए | आपकी औलाद परिखा में सफलता हासिल करके रहेगी | बस आप परीक्षा में सफलता दिलाने वाले गिरोह से मधुर सम्बन्ध बनाइये | सम्बन्ध तब बनेंगे , जब कुछ खर्च करेंगे | साब! आपको कैसी सफलता चाहिए ? फर्जी अंकसूची वाली या मुन्नाभाइयों कि सहायता से वास्तविक  अंकसूची |आजकल ऐसी ही अंकसूची , जाती प्रमाण पात्र व् एनी प्रमाण- पात्र का बोलबाला है | आप तो इतना भी जानते हैं , ऐसे प्रमाण-पत्रधारी सरकारी व् गैर सरकारी क्षेत्रों में कैसे मजे लूट रहे हैं ? इसी तरह एक गिरोह लाइसेंस व् परमिट बनाने वाला होता है | आप सरकारी दफ्तरों में दरजनों चप्पलें घिस चुके होते हैं | तब भी वहां के अधिकारी कर्मचारी आपको शक कि नजर से देखते हैं |
  अआप बेवजह के पचड़े में न पड़े | लाइसेंस परमिट निर्माता दलाल से संपर्क साधी |  हम गिरोहबाजों को समाज सेवक कहेंगे | भेदभाव व् उंच-नीच कि दीवार यहीं गिरती नजर आती है | वे समाजवाद लाने का प्रयास करते है | पिछले सालों में चड्डी – बनियान गिरोह काफी सक्रीय रहा , पर हो सकता है आधुनिकता आने से इनके ड्रेस कोड बदल गए हों | जींस – टी शर्ट गिरोह हो गए है | आखिर देश की अर्थव्यवस्था ,शिक्षा , चिकित्सा जैसे सभी खेत्रों में तो पाश्चात्य रंग बिखर रहा है | हम तो यही कहेंगे कि इन्हें कटु निगाहों से न निहारी , बल्कि सम्मान दीजिए | अगर ये न होते तो आप अपनी तरक्की के पथ पर बिखरे कांटे किससे हटवाते .. बताइये ?
    सुनील कुमार सजल