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रविवार, 17 मई 2015

व्यंग्य- पशुधन पर मंथन


व्यंग्य- पशुधन पर मंथन

 कहते हैं देश में पशुधन की कमीं हो रही है | लोग आजकल दूध और मांस खाना पीना पसंद करते हैं पर पशुधन रखना नहीं हैं | सरकारसवाल तो यहां तक आ पहुंचा है किलोगों से पूछों |
‘’आपने ऊँट या गधा देखा है |’’ वे साफ़ चट्ट मूंछों पर हाथ फेर कहते हैं –‘’ वर्षों पहले देखा था | जब हमारे कस्बे के करीबी जंगल में इनके पालक इन्हें चराने लाते थे |
बड़ा चिंतनीय प्रश्न है साहब | पशुधन घाट रहे हैं , मगर दुग्ध उत्पादन बढ़ रहा है |वैज्ञानिक युग है | क्या असली या नकली | बस पीजिए और मस्त होइये |
यह तो देश की रूपरेखा रही | अब थोडा हमारे नगर की तरफ आइये | यहाँ कोई दर्शनीय स्थान या तीर्थ स्थल नहीं है और न ही किसी भी प्रकार की गोस्त मंडी | और नहीं राजनीति के बड़े घोटाले बाजों का निवास स्थान | रेलवे लाइन पर हाफंती ,खिचती दौड़ती नेरोगेज ट्रेन के सहारे तरक्की की छुक-छुक करता कस्बा |
देश में पशुधन की कमी पर चर्चा उठी है |हमारे कस्बे के पशु प्रेमी जो हाथी के दांत वाली प्रवृति के प्रेमी हैं ,ने अपने आवारा जानवरों को आवारा बनने के लिए छोड़ना शुरू कर दिया ताकि सनद रहे देश में भले ही पशुओं का अकाल आ जाए पर हमारे क़स्बे में उतने के उतने हैं | यहाँ भले ही रासायनिक या मिलावटी दूध भी उपलब्ध है | कहते हैं दूध का उत्पादन भरपूर हो रहा है |त्यौहार –पावनों में नकली मावा की सफ्लाई यहाँ से तय होती है | इतने के बाद भी यहाँ के लोग छुआरा टाइप के हैं | एकाध – दो कद्दू किस्म के कहीं दिख जाएं तो समझिए वे नगर के चहेते हैं | आज तक यहाँ के मोटापा घटाने वाले वर्जिश केन्द्रों को ग्राहकों की आक्सीजन नहीं मिली | जिससे वे जहां उगे वहीँ दम तोड़ कर दफ़न हो गए |
  भरपूर संख्या में पशुधन हमारे नगर में हैं| हो सकता है किआप प्रमाण पात्र मांग बैठे सच्चाई का | साहब इससे अच्छा प्रमाण पात्र क्या हो सकता है किवे दिन भर आवारागर्दी करते दिखाते हैं | सब्जी मंडी ,किराना व गल्ला मंडी ,दुकानों ,गली सड़क में मुंह मारते दिखाते है \ इन पशुदन की आवारगी का नजारा यह है किवे सड़क या गली में से ऐसे गुजरते हैं जैसे नारा लगाते आन्दोलनकारी | नेता की तरह हड़ताल पर बैठ जाते हैं | आप लाठीचार्ज करी या हाकागेंग बुलाइए , खुद में मस्त रहते हैं |
पसु मालिक खुश होते हैं अपने पशुधन को आवारगी कावाकर |बेचारे जानवर यहाँ-वहां मुंह मारकर पेट भर लेते हैं | सुबह –शाम दूध देते हैं |
शहर में धर्मावलम्बियों भी हैं |जो इन्हें रोज पुण्य कमाने के फेर में चारा खिलाते रहते हैं |
हमारे पड़ोस के शर्मा जी रोजाना एक-दो किलो घास इन पशुओं को खिलाते है | कहते हैं –‘’ इससे घर में धन-धान्य की वृध्दि होती है | ग्रहदोष, शांत रहते हैं |
इन पशुमालिकों पर कभी ग्रहदोष नहीं मंडराते | जो इन्हें मुफ्त के माल पर मुंह मारने हेतु आवारा बना देते हैं |
एक दिन हमने पडोश के आवारा बेटे के बाप का दुखड़ा सुनकर बोए –‘’ ‘’ यार बेटा आवारा हुआ तो परेशान हो गए | मगर तुम्हारे पालतू पशु भी तो आवारगी करने में पीछे नहीं है | कृपया उन पर भी तो ध्यान दें | जो पशुओं के बगीचे खेत बाड़ी को रोजाना तहस – नहस करते फिरते हैं ||
वे बोले –‘’ जानवर व इंसान में यही तो फर्क है साब | पशु तो पशु है और इंसान इंसान है |
हमने कहा- ‘’ बिना संस्कार दी बेटा साथ देता है न पशु ‘’ वे बुरा सा मुंह बना कर चल दी |
कई मर्तबा डेंजरस मोड़ व ठिकाने पर रोड ब्रेकर बनाने हेतु पीडब्लूडी को ज्ञापन सोंपा गया था पर पीडब्लूडी का हाल तो आपको मालूम है हर जगह कमीशनखोरी |
अंतत: लोगो ने थक हार कर ज्ञापन देना , आन्दोलन बंद कर दिया है उनका काम पशु बीच सड़क पर बैठकर कर देते हैं |हमने आवारा पशुओं की हरकतों की शिकायत उनके म्मालिक से की तो वे बोले – ‘’ जब पुलिस सर्कार पंचायत व नगर परिषद् व जनता परेशान नहीं हो रही तो आप क्यों | जानते हो मल्लू पूजन करने वालों को गोबर बेचता है जो लीपने के लिए ले जाते हैं |
पिछले हलषष्ठी पर्व पर बैंस के गोबर के चिट्ठे सड़क पर देखने को नहीं मिले थे | एक आवारा भैंस के पीछे चार –चार पांच लोग हाथ लगाए खड़े थे | इसी इन्जार में कि वह कब गोबर करे और ये झट से झेल लें
इधर लोगों का मानना है किपशुधन बढाने का सबसे अच्छा तरिका  यह है किउन्हें स्वच्छंद आवारगी करने दें |मौज करने दें ,मस्ती करने दें |
                 सुनील कुमार ‘’सजल’’