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सोमवार, 18 मई 2015

व्यंग्य-आन्दोलन होते रहें


व्यंग्य-आन्दोलन  होते रहें

वह आन्दोलन के खिलाफ है |अक्सर आन्दोलनों की आलोचना करता है |देश की मीडिया में जब भी पढ़ता सुनता है , फलां जगह फलां मुद्दे पर आन्दोलन किया गया , वह परेशान हो उठाता है | कहता -‘’देश जाने कहाँ जा रहा है| ऐसे में वह ख़ाक तरक्की करेगा |’’
उसकी चिंता को देखकर मैनर समझाया –‘’ तुम व्यर्थ में आन्दोलनों के खिलाफ हो | आखिर बुराई क्या रखना आन्दोलनों से |’’
वह बोला –‘’ कैसी बातें करते हो | जानते हो आन्दोलानिं से कितना नुकसान है | राष्ट्रीय समय इ लेकर राष्ट्रिय संपत्ति तक | ‘’
‘’ अगर तुम ऐसी चिंता करोगे तो सिर्फ तुम अंदर ही अंदर घुटते रहोगे | जानते आंदोलनों के कितने फायदे हैं |’’ मैंने कहा |
‘’ क्या खाक फ़ायदा होगा |’’ वह मुंह बना कर बोला  |
‘’ कैसे नहीं? आन्दोलन उसी देश में ज्यादा होते हैं, जहां के लोग जागरूक होते हैं , जिन्हें अपने हक़ का ज्ञान होता है | जब देशी- विदेशी मीडिया के माध्यम से विदेशी हमारे देश की स्थिति देखकर सोचते होंगे किपिछड़ा व विकासशील देश इतनी जल्दी शिक्षित हो गया किहर हाथ में हक़ के प्रति जागरूकता की मशाल है| दिमाग लगा मेरे भाई आन्दोलन हमारी प्रगति का सूचक है |’’ मैंने विस्तार से समझाया |
‘’ क्या ख़ाक शिक्षित हुआ ? साक्षरता कार्यक्रम की असलियत से पूरा देश वाकिफ है | सच कहूं , देखो आप राजनेताओं के घेरे में रहते हो , इसलिए आपकी सोच भी पूरी राजनैतिक है |’ उसने उलटे मुझे आड़े हाथों लिया |
आंदोलन क्या सिर्फ नेता लोग ही करते हैं?’’

 ‘’ घाघ नेता सिर्फ जनता को बरगलाते हैं | आन्दोलनों की कमान छुटभैये संभालते हैं | चीखते हैं, चिल्लाते हैं , उपद्रव व नारे रचते हैं |’
‘’यह मत भूलो | देश के बेकार लोग इसी में एडजस्ट होते हैं | टाइम पास करते हैं |अत:देश में आन्दोलन मनोरंजन का साधन भी है |’’
वे मेरी बातों के प्रति बोले –‘’ आपका कथ्य आपको मुबारक |’’ और खिसक लिए |
यूँ तो इन दिनों देश में तरक्की ही तरक्की दिख रही है | जहां तरक्की है वहां आन्दोलन है | आन्दोलन स्वार्थ का एक रूप है  |
नगर पालिका की लापरवाही से आप भी अवगत हैं | कई बार साफ़-सफाई को लेकर जनता को उसके खिलाफ आन्दोलन करना पड़ता है | कहने का मतलब छोटी-छोटी बातों के लिए आंदोलनों की मशाल उठायी जा अकती है | यह एक तरह की छूट है | यही कारन है किलोकतांत्रिक व्यक्ति आन्दोलन करने व टांग खीचने में व्यस्त रहता है | उसके पास वक्त की कमीं होती है | पिछले दिनों से हमारे नगर में पत्नी पीड़ितों का आन्दोलन जारी है | तीन शेड एरिया में पंडाल टेल ये पीड़ित नारेबाजी करते आ रहे हैं |पत्नी पीड़ित संघ जिंदाबाद | पत्नी अत्याचार मुर्दाबाद |
इन आन्दोलनों से पीड़ित पतियों को लाभ ही लाभ है कि समय पर घर जाएँ न जाएँ | पत्नी देर से आने पर सवाल नहीं पूछती | उसे मालूम है किमुल्ला की दौड़ कहाँ तक है |
पति भी यह सोचकर आन्दोलन से जुदा रहता है | कम से कम घर की कलह से राहत है , उतने दिन ,जितने दिन आन्दोलन चालू हो |
                           सुनील कुमार ‘’सजल’’