लघुकथा – दया
नयी फसल आ गयी थी |
मैंने उनसे कहा – क्यों, भाई इस बार घर के लिए नया गेहूं नहीं खरीद रहे हैं? अभी
सस्ते भाव में मिल रहा है |’
वे मुस्कुराते हुए बोले –‘नहीं
भई साब |जब से आटा-चक्की लगवाई है, आप लोगों की दया से घर की जरुरत के लायक आटा,
अपनी चक्की से निकल जाता है|
सुनील कुमार ‘’सजल’’