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बुधवार, 20 मई 2015

दो लघुकथाएं -


दो लघुकथाएं - 
                                      1.     ऊब
       
           ‘’ तुम्हें वेश्यावृति के धंधे से जुड़े कितने साल हो गये?’’
           ‘’ पूरे पांच साल |’’
           ‘’ फिर भी तुम्हें इस घृणित कार्य से ऊब नहीं आयी ?’’
           ‘’ जिससे पेट का जुगाड़ चले, उससे किसी को ऊब आती है भला ?’’




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                           2.     आयोजन

नगर में ‘’शील भंग एवं क़ानून ’’ विषय पर गोष्ठी  का आयोजन किया जा रहा था | आज भूले-भटके नारायण भी वहां पहुँच गए  थे | विचार सुन कर वे पास खड़े सज्जन से  बोले – कित्ते अच्छे हैं इस लोकतांत्रिक धरती के लोग | बहुत सुंदर | वरना हम तो लोकतांत्रिक मीडिया में यहाँ की खबरें पढ़ -सुनकर सोचते थे ,जितने पाप इस लोकतंत्र की धरती पर होते उतने कहीं नहीं |
सज्जन ने उनकी बातों पर कहा- प्रभु ,आप भ्रमित हैं | ये जो विचारक मंच पर मौजूद हैं ,उनमें से कई दबे छिपे अबलाओं के  शीलभंग करने के आरोपों में घिर चुके हैं , कुछ पर न्यायालय में मामला लंबित हैं |’’
‘’ फिर पापियों को मंच में जगह दी गयी ? ‘’
‘’ विचार व्यक्त करने के लिए |’’

          सुनील कुमार ''सजल''

मंगलवार, 19 मई 2015

लघुकथा – फटी कथरी


लघुकथा – फटी कथरी


कल रात गांव में ठाकुर रामदीन के बंधुआ नौकर समारू की इकलौती बिटिया कल्लो को पडोसी कस्बे के कुछ बदमाश खेत से  उठाकर ले गए
रात भर मां –बाप की आंसू बहाती आँखे व बेचैनी  के बीच जब वह सुबह तक नहीं लौटी तो क्या करें कैसा करें ? की मन: स्थिति से जूझता ठाकुर रामदीन के घर में सर क्झुकाए आंसू बहाता समारू चिंता में कुछ सोच भी नहीं पा रहा था |
ठाकुर रामदीन कह रहे थे –‘’ देख समारू ,मैं पहले ही कह रहा था न किकल्लो को मेरे घर में ही काम में लगा दे पर साला माना नहीं और भेजता रहा दूसरों के घर काम में | हो गई लोगों की नीयत खराब | आज वो अगर मेरे घर होती तो यह दुर्दशा न होती उसकी |
बेचारा समारू क्या कहता | उसे तो ठाकुर साब की नीयत में भी खत नजर आ रहा था | अपने यहाँ काम करने वाली न जाने कितनी बेबस व मजबूर लड़कियों की अस्मत लूट चुके थे |
ठाकुर साब के खोजबीन व सहयोग के आश्वासन के बाद समारू घर लौट आया | इधर देखा तो पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था | जैसे तैसे ठाकुर साब के दी आश्वासन को सुनकर ढाढस बंधा था पर अंदर का उफान लेता सैलाब कहाँ खामोश रहता |वह उसे ताने कसते कह रही थी – ‘’ काश ! मेरी माने होते तो अपनी बिटिया लुटेरों के हाथ लुटाने से बाख जाती | अगर नियत ख़राब होने पर ठाकुर जी उसकी अस्मत से खेल भी लेते तो कौन जानता | इज्जत तो बनी रहती हम गरीबों की और बिटिया के हाथों रकम....| उन बदमाशों का क्या है | ओढ़ बिछाकर कल फेंक जाएंगे अपने द्वार पर फटी कथरी की तरह | कोई काम की नहीं रह जाएगी , न ब्याहने की न मुंह दिखाने की |

रविवार, 3 मई 2015

लघुकथा -मुआवजा

                                                              लघुकथा -मुआवजा
   पडोसी गरीब शेखू संतान पक्ष कोलेकर काफी  दुखी है । पिछले ही माह उसका इकलौता बेटा बस दुर्घटना में मारा गया । अब बची है इकलौती बेटी शांति ,जो ससुराल में 'दहेज़' के लिए प्रताड़ित की जा रही है ।
    शेखू को सरकार की ओर  से मृत बेटे का मुआवजा मिलने वाला है मगर हो रही देरी से वह परेशान हो उठा है । मुआवजा पाने की लालसा में शेखू की बेचैनी देखकर क्रोधित होती पत्नी ने कहा -'' तुम भी कितने निर्दयी हो.…इधर बेटा मर गया ,उसका ज़रा भी गम नहीं मुआवजा राशि घोषित होते ही दफ्तर के चक्कर काटने लगे  । कैसे बाप हो तुम  ? बेटे से ज्यादा पैसों  प्यार… । ''
  '' सुमिता , तुम मुझे गलत समझ रही हो । '' कहते हुए उसकी आँखों से आंसू छलक उठे ,''मैं ससुराल में सताई जा रही बिटिया की जिंदगीं बचाने के लिए परेशान हूँ ताकि इसी मुआवजे से उसकी दहेज़ की पूर्ति  कर सकूँ । बेटे को तो बस ने दुनिया  दूर कर दिया। ........ और अब ससुराल वाले बिटिया को भी। .... । '' कहते हुए वह फफककर रो पड़ा ।
    पति का मंतव्य सुनते ही पत्नी सन्न भाव से उसकी ओर देखती रह गई । 
  
 सुनील कुमार '' 'सजल'






















 

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

लघुकथा - मूल्य


लघुकथा  - मूल्य

गरीब सुखिया का लड़का बोर्ड परीक्षा में फर्स्ट – डिविजन में पास हुआ तो पूरे मोहल्ले में हाय तौबा मच गई |

‘’ये क्या सुखिया का लड़का फर्स्ट-डिविजन...|न ट्यूशन, न कोचिंग की...| अब देखो न अपनी औलादों को , इतने कोचिंग, ट्यूशन, गाइड पढ़ने के बावजूद सेकेण्ड या थर्ड डिविजन में पास हो रहे हैं... साले सुखिया के लडके ने परीक्षा मरण जरूर नक़ल की होगी ...|’’

  मोहल्ले की महिलाओं में ‘’ परीक्षा परिणाम ‘’ परिचर्चा पर सुखिया के लडके की प्रगती का कोई मूल्य नहीं दिख रहा था |

    सुनील कुमार ‘’सजल’’

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

लघुकथा – दया

लघुकथा – दया
नयी फसल आ गयी थी | मैंने उनसे कहा – क्यों, भाई इस बार घर के लिए नया गेहूं नहीं खरीद रहे हैं? अभी सस्ते भाव में मिल रहा है |’
वे मुस्कुराते हुए बोले –‘नहीं भई साब |जब से आटा-चक्की लगवाई है, आप लोगों की दया से घर की जरुरत के लायक आटा, अपनी चक्की से निकल जाता है|

सुनील कुमार ‘’सजल’’