लघु व्यंग्य- व्यवसाय
वह
सूदखोर था | ब्याज पर उधार देना उसका व्यवसाय |
‘’ यार तुम मजबूरों के साथ ज्यादती नहीं करते | यह क्या, सैकड़ा पर पचास रुपया ब्याज ?’’
‘’कौन – सा ज्यादा है | किसी धंधे में यही रकम लगाते उतने ही समय में दुगुना कमाते |
‘’ ब्याज के नाम पर दस – पंद्रह प्रतिशत पर्याप्त है | कुछ तो मजबूरों पर रहम करो | इंसानियत ज़िंदा रहेगी |’’
‘’ घोडा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या ? किसी को वक्त में रकम उपलब्ध करा देते हैं यही बहुत है |’’
“ पर
कुछ भी कहो ,तुम्हारा काम लूट का...|’ अभी उसकी बात पूरी भी न हुई थी कि वह बाच
में बोल पड़ा – ‘’चलो हम यह काम बंद कर देते है , तुम बांटोगे लोगो को खैरात
..बोलो|’
वह खामोश था |