गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

लघुव्यंग्य - अर्थ की अर्थी

लघुव्यंग्य - अर्थ की अर्थी

आदिवासी गांव में सड़क निर्माण कार्य स्वीकृत हुआ |सड़क पूरी बन भी नहीं पायी थी कि काम बंद हो गया |पूछने पर पता चला कि धन राशी ख़त्म हो गई |लोगों को शक हुआ | गली के कुछ छुटभैयों ने उच्चाधिकारियों से शिकायत कर दी |
अधिकारी ने पूछा –‘’ तुमने कैसे मां लिया कि काम में घपला हुआ है ?’’
‘स्वीकृत राशि का विवरण तो देखिये ..उतने के अन्दर ही काम होना था |’’एक ने कहा |
‘’राशि के सामने लिखे शब्दों को पढ़ा है आपने |’’बात को आगे बढ़ातेहुए अधिकारी ने कह |
‘’क्या |’’ एक ने कह |
‘अनुमानित लागत..|आप में से कोई हिंदी का अच्छा जानकार हो तो उससे पूछिए कि इसका अर्थ क्या होता है |’’ शब्दों के चक्रव्यूह में फंसाते हुए अधिकारी ने कहा |
‘’ क्या होता है?’’ किसी ने प्रशन किया | तभी उनमें से एक व्यक्ति ने तपाक से कहा –‘’लगभग या अंदाजन|’’
‘’बस समझ गए न लगभग राशि दी गयी थी | कोई निश्चित लागत तो मिली नहीं  जो काम पूरा हो पाता |विशवास न हो रहा हो तो हमसे बड़े अधिकारी के पास जा सकते हो ..|’’अर्थ की अर्थी निकालते देख लोग एक दूसरे का मुंह ताकते हुए खामोश थे |

    सुनील कुमार ‘’सजल’’

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