मंगलवार, 26 मई 2015

लघुव्यंग्य- सस्ते का चक्कर


लघुव्यंग्य - सस्ते का चक्कर

यूँ तो अपने यहाँ वैज्ञानिकों की कमी नहीं है |जो तरह-तरह के आविष्कार सामने लाते हैं , इसलिए अपने देश को वज्ञानिकों का देश कहने में बुराई नहीं हैं |
अपने यहाँ दो तरह के वैज्ञानिक पाए जाते हैं | एक तो वे जो बड़ी अनुसंधानशालाओं में बैठकर अरबों रुपये खर्च कर आविष्कार लाकर देश की तरक्की के मुकाम पर पहुँच रहे हैं | दूसरे वे हैं जो चाँद रुपयों में आविष्कार करते हैं | देश को तरक्की के मुकाम पर पहुंचाए न पहुचाएं | जनता के साथ ठगी कर अपनी आमदानी व् खुद को तरक्की के मुकाम पर अवश्य पहुंचाते हैं | पहले तौर के वज्ञानिक को अलग रखें | दूसरे रतार के वैज्ञानिक उत्पादों को लें \ इसके प्रचारक गली-गल सस्ते उत्पाद बेचते नजर आते हैं इनका माल चाँद घंटों में बिक जाता है| लुभावनी बातें | दिखावे का आकर्षण | सस्ता मूल्य | जादुई मेकनिज्म| उत्पादों की मुख्य वेशेशाताएं हैं |
 पिछले दिनों ऐसे उत्पादों के प्रचारक आए \ एक प्रचारक अपने उत्पाद का प्रचार कर विक्रय कर रहा था | ‘’ साब, अगर आप इस यंत्र को अपनी मोटर साईकिल में लगायेंगे तो पेट्रोल की पच्चीस प्रतिशत बचत होगी | बार-बार सर्विसिंग से बचे रहेंगे मैंने कहा – ‘’कीमत’’|
‘ प्रचार के तहत मात्र दो सौ रुपये साब | और अगर इसे एजेंसी से खरीदेंगे तो सात रुपये का है | ‘’ उसने कहा | ‘’ तुम्हारी कंपनी बड़ी रहम दिल है यार | प्रचार में दो सौ रुपये में और एजेंसी से सात सौ रुपये में बिकवाती है अपना माल |’’ मैंने चुटकी ली |
‘’ साब यह प्रचार सामग्री है | एजेंसी व्यावसायिक केंद्र है |’’
‘’ यार प्रचार सामग्री तो मुफ्त में बांटने का नियम है |’’
 मैंने इस कथन को उसे समझाने का प्रयास किया –‘’ हमार्रे इलाके में पहले लोग गुदाक्हू ( एक नहा युक्त मंजन ) नहीं जानते थे | कंपनियों ने मुफ्त में बांटकर ऐसा प्रचार किया कि अब पचास पैसे का माल दो रुपये में बिक रहा है |
 मने कहा – ‘’ अच्छा एक बात बताओ | किसी सस्ते व् घटिया माल इ दुगुनी आमदानी निकालना प्रचार सामग्री के तहत बताकर धंधे का फंदा है या नहीं | ‘ वह मुस्करा कर रह गया | मैंने आगे कहा ‘’ इस देश में बातों के मायाजाल में लपेटकर सड़क की धुल को बेचा जाए तो वह मुलतानी मिटटी के रेट पर बिक जाती है |’’
‘’ कहो ठीक कहाँ |’’
 अब वह भी मुस्करा रहा था | मैंने कहा- ‘’ मुझे तो आपकी कम्पनी कि मजबूरी समझ में नहीं आती है | यदि आपका उत्पाद इतनाकारागर होता तो बड़ी बाइककम्पनियां कब का अधिकार खरीद कर अपने नाम पेटेंट करवा लेती | गली-गली भेजकर आपसे क्यों बिकवाती ‘’| ऐसे तमाम सवालात मैंने उसके सामने रखे | वह तुरंत उठा और बढ़ लिया | गिरोह इन दिनों और सक्रीय है | जो अपनी सामग्री को चोरी का माल बताकर जनता के बीच सस्ते में बेचने का प्रयास करते हैं | सस्ता हर किसी को लुभाता है | बाद में रुलाता है | हम रोते हैं | रोते हुए पुन: ऐसी ही सामग्री के लिए टूट पड़ते हैं | यह अपनी मजबूरी है या नासमझी | खुद से पूछकर देखी साब |
     सुनील कुमार सजल 

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