लघुव्यंग्य - सस्ते का चक्कर
यूँ तो अपने यहाँ वैज्ञानिकों की कमी नहीं है
|जो तरह-तरह के आविष्कार सामने लाते हैं , इसलिए अपने देश को वज्ञानिकों का देश
कहने में बुराई नहीं हैं |
अपने यहाँ दो तरह के वैज्ञानिक पाए जाते हैं
| एक तो वे जो बड़ी अनुसंधानशालाओं में बैठकर अरबों रुपये खर्च कर आविष्कार लाकर
देश की तरक्की के मुकाम पर पहुँच रहे हैं | दूसरे वे हैं जो चाँद रुपयों में
आविष्कार करते हैं | देश को तरक्की के मुकाम पर पहुंचाए न पहुचाएं | जनता के साथ
ठगी कर अपनी आमदानी व् खुद को तरक्की के मुकाम पर अवश्य पहुंचाते हैं | पहले तौर
के वज्ञानिक को अलग रखें | दूसरे रतार के वैज्ञानिक उत्पादों को लें \ इसके
प्रचारक गली-गल सस्ते उत्पाद बेचते नजर आते हैं इनका माल चाँद घंटों में बिक जाता
है| लुभावनी बातें | दिखावे का आकर्षण | सस्ता मूल्य | जादुई मेकनिज्म| उत्पादों
की मुख्य वेशेशाताएं हैं |
पिछले दिनों ऐसे उत्पादों के प्रचारक आए \ एक
प्रचारक अपने उत्पाद का प्रचार कर विक्रय कर रहा था | ‘’ साब, अगर आप इस यंत्र को
अपनी मोटर साईकिल में लगायेंगे तो पेट्रोल की पच्चीस प्रतिशत बचत होगी | बार-बार
सर्विसिंग से बचे रहेंगे मैंने कहा – ‘’कीमत’’|
‘ प्रचार के तहत मात्र दो सौ रुपये साब | और
अगर इसे एजेंसी से खरीदेंगे तो सात रुपये का है | ‘’ उसने कहा | ‘’ तुम्हारी कंपनी
बड़ी रहम दिल है यार | प्रचार में दो सौ रुपये में और एजेंसी से सात सौ रुपये में
बिकवाती है अपना माल |’’ मैंने चुटकी ली |
‘’ साब यह प्रचार सामग्री है | एजेंसी
व्यावसायिक केंद्र है |’’
‘’ यार प्रचार सामग्री तो मुफ्त में बांटने
का नियम है |’’
मैंने इस कथन को उसे समझाने का प्रयास किया –‘’
हमार्रे इलाके में पहले लोग गुदाक्हू ( एक नहा युक्त मंजन ) नहीं जानते थे |
कंपनियों ने मुफ्त में बांटकर ऐसा प्रचार किया कि अब पचास पैसे का माल दो रुपये
में बिक रहा है |
मने
कहा – ‘’ अच्छा एक बात बताओ | किसी सस्ते व् घटिया माल इ दुगुनी आमदानी निकालना
प्रचार सामग्री के तहत बताकर धंधे का फंदा है या नहीं | ‘ वह मुस्करा कर रह गया |
मैंने आगे कहा ‘’ इस देश में बातों के मायाजाल में लपेटकर सड़क की धुल को बेचा जाए
तो वह मुलतानी मिटटी के रेट पर बिक जाती है |’’
‘’ कहो ठीक कहाँ |’’
अब
वह भी मुस्करा रहा था | मैंने कहा- ‘’ मुझे तो आपकी कम्पनी कि मजबूरी समझ में नहीं
आती है | यदि आपका उत्पाद इतनाकारागर होता तो बड़ी बाइककम्पनियां कब का अधिकार खरीद
कर अपने नाम पेटेंट करवा लेती | गली-गली भेजकर आपसे क्यों बिकवाती ‘’| ऐसे तमाम
सवालात मैंने उसके सामने रखे | वह तुरंत उठा और बढ़ लिया | गिरोह इन दिनों और
सक्रीय है | जो अपनी सामग्री को चोरी का माल बताकर जनता के बीच सस्ते में बेचने का
प्रयास करते हैं | सस्ता हर किसी को लुभाता है | बाद में रुलाता है | हम रोते हैं
| रोते हुए पुन: ऐसी ही सामग्री के लिए टूट पड़ते हैं | यह अपनी मजबूरी है या
नासमझी | खुद से पूछकर देखी साब |
सुनील कुमार सजल
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