दो लघुकथाएं -
1.
ऊब
‘’ तुम्हें वेश्यावृति
के धंधे से जुड़े कितने साल हो गये?’’
‘’ पूरे पांच साल |’’
‘’ फिर भी तुम्हें इस
घृणित कार्य से ऊब नहीं आयी ?’’
‘’ जिससे पेट का जुगाड़
चले, उससे किसी को ऊब आती है भला ?’’
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2.
आयोजन
नगर में ‘’शील भंग एवं
क़ानून ’’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया जा
रहा था | आज भूले-भटके नारायण भी वहां पहुँच गए
थे | विचार सुन कर वे पास खड़े सज्जन से
बोले – कित्ते अच्छे हैं इस लोकतांत्रिक धरती के लोग | बहुत सुंदर | वरना
हम तो लोकतांत्रिक मीडिया में यहाँ की खबरें पढ़ -सुनकर सोचते थे ,जितने पाप इस
लोकतंत्र की धरती पर होते उतने कहीं नहीं |
सज्जन ने उनकी बातों पर
कहा- प्रभु ,आप भ्रमित हैं | ये जो विचारक मंच पर मौजूद हैं ,उनमें से कई दबे छिपे
अबलाओं के शीलभंग करने के आरोपों में घिर
चुके हैं , कुछ पर न्यायालय में मामला लंबित हैं |’’
‘’ फिर पापियों को मंच
में जगह दी गयी ? ‘’
‘’ विचार व्यक्त करने के
लिए |’’
सुनील कुमार ''सजल''
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