लघुव्यंग्य –दान – पुण्य
मैं उनके साथ सड़क किनारे खडा था |तभी एक कमजोर दृष्टिवाला भिखारी हमारे
करीब आया ,भिक्षा माँगने लगा |उन्होंने झट से जेब में हाथ डाला, कहीं न चलने वाला
कई जोड़ का दो नोट निकाला | उसके कटोरे में डाला | बोले- ‘’लो बाबा जी , दो का नोट
है |’’
भिखारी खुश होकर उन्हें आशीर्वाद
देते हुए आगे बढ़ गया |
अब वे मेरी ओर देखते हुए बोले- ‘’
आज उपवास है सोचा ऐसे दिन में तो दान कर दूं |’’ आगे कह रहे थे –‘’ फिर हम बाबू
लोग तो रोज ही लोगो की गर्दन मरोड़ते रहते हैं कम से कम उपवास के दिन ही सही दान
करके कुछ पुण्य कमा लें | इसी बहाने पाप कटते रहेंगे ...|’’
मैं उनके चहरे को देखते हुए सोच
रहा था,’’ जिसकी आदत ही गर्दन मरोड़ने की पद गई हो वह भला उपवास रहे या यज्ञ करवाए
अपनी बदनीयत का पंजा दफ्तर ही क्यों कहीं भी फैलाने से नहीं चूकते जैसा कि आज
भिखारी की भावना को भी ....|’’
सुनील कुमार ‘’सजल’
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