लघु व्यंग्य –मौके
पडोसी प्रदेश में
बसे राजनैतिक मित्र ने नेताजी को फोन किया |
‘’ सूना है, आपका
क्षेत्र सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित हो गया है |’’
‘’ जी ,हां !’’
‘’राहत कार्यक्रम भी
आवंटित हुए होंगे
‘’जी,हां!’’
‘’काम के बदले अनाज,
राहत धन राशि कुल मिलाकर आप लोग चांदी काट रहे होंगे |’’
‘’ कहाँ यार ...सब
गुड़गोबर है |’’
‘’क्यों?’’
‘’आजकल जिसकी सत्ता
,लाठी भी उसी के हाथ में होती है और दुधारू भैंस हकालने काम भी वही संभालता है ,
बाकी सब तो भैंस के बदन पर चर्बी से आयी चमक को ताकते हैं |’’
‘’ लेकिन हमारे यहाँ
ऐसा नहीं है सभी को बराबरी से मुंह मारने
के मौके मिल रहे हैं |’’
‘’दरअसल आपके यहाँ
जागरूक जनता के रहते के रहते सत्ता में एक ही पार्टी का वर्चस्व नहीं है जबकि
हमारे यहाँ की जनता भेड चाल चलती है | जिस तरफ से बनावटी घास की मोहक सुगंध आयी
उसी तरफ एक के पीछे एक चलने लगाती है | भले ही आगे साजिश की गहरी खाइयां हों ,नहीं
देखती कभी | ‘’
स्थानीय नेता ने
अपने सूखते गले से पीड़ा भरी आवाज में मन की भड़ास उगलते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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