व्यंग्य-आओ बेरोजगारों ,संत बनें
व्यंग्य-आओ बेरोजगारों ,संत बनें
बाबा बनने का धंधा सौ बड़े धंधों से बेहतर है |हींग लगे न फिटकरी | बस
जरुरत है जुबान से जादू भरी बातें फेंकने के गुण की ,तन पर गेरुआ वस्त्र , पाँव
में खड़ाऊ, गले में असली या नकली रत्न या रुद्राक्ष माला , लम्बी दाढ़ी व सर पर लम्बे
बालों की | जुगाड़ हो तो माथे पर चंदन का टीका पोटते ही बन गए बाबा ,कहलाने लगे संत
|
करने लगे आध्यात्मिक राजनीति| सब जगह पूज्य | हर स्थान पर
प्रतिष्ठा |शिष्यों की भीड़ ,अकूत धन भंडार ,सुंदर-सुंदर सेविकायें, आरामदायक
सुसज्जित आश्रम ,भक्त व जनता की ओर से दिए गए चंदे से, अनगिनत एकड़ खेतिहर जमीन
,विदेश यात्रायें और क्या चाहिए एक बाबा को |
साथ पढ़े लिखे हमारे एक
मित्र हैं | नाम बता दूं रंजन जी | आजकल वे भी बाबा बन गए हैं ,घर घर धूमकर भिक्षा
मांगनेवाले बाबा नहीं बल्कि आधुनिक ऐशो-आराम के बीच लोगों को उल्लू बनाकर अपने चरण
चटवाने वाले बाबा | चरणों को धुलकर चरणामृत पिलाने वाले बाबा |कभी-कभी मन करता है
उनकी आलोचना न करूं पर नातिक मन सब कुछ कर बैठता है |
हालांकि एक बात पक्के तौर
पर कहूँ |बाबा बनाना भी गॉडगिफ्ट है | हर किसी में यह शख्सियत या साहस नहीं होता
की जनता या भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर सके |जैसे ऊंचाई प्राप्त नेता बनाना आसान
नहीं हैं |छुटभैये नेताओं की बात छोड़ो जो नेतागिरी में उदयकाल से अस्तकाल तक
छुटभैये बने रहकर सिर्फ अपना खर्चा पानी चलाते हैं |
अरे यार, अपन तो भूल गए
रंजनानंद जी की बात करते करते |
एक दिन रंजनानंद जी हमारे
गांव पधारे | गांव के लोगों ने उनका बड़ा स्वागत-सत्कार किया | जैसा कि गांव के लोग
आमतौर पर दूध , दही,घी, मेवा, धन-दौलत, पूजा पाठ भजन कीर्तन आदि के द्वारा करते
हैं, हमारी पुजारिन पत्नी भी उनके चरण स्पर्श करने से पीछे नहीं रही | लाख मना किए
पर वह न मानी |आखिर दो सौ फल-फूल उन्हें अर्पित कर आयीं |
हमने उसे समझाया –‘’ देखो,
वह हमारा मित्र रंजन हैं | नंबर एक का बदमाश | अध्धयन काल में हम दोनों खूब मस्ती
करते थे | लड़कियों को छेड़ते थे | कई बार तो छेड़छाड़ के चक्कर में पिटकर ‘’एक तरफा’ प्रेमी
होने की शोहरत भी पाए थे | आज साला न जाने कैसे बाबागिरी के धंधे में कूद गया ?’’
‘’ देखो जी, किसी की निंदा
करना सबसे बड़ा पाप है | अपनी जुबान से व्यंग्य व निंदा के कड़वे शब्दों को न निकालो
| तभी तो तुम्हारी व हमारी पटरी नहीं बैठती |’’ वह तेज स्वर में बोली और हमें धर्म
उपदेश भी दे गयी |
‘’ अच्छा यह बताओ ,तुमने
अपने पवित्र हाथों व माथे से उस बेवकूफ के चरण स्पर्श किए , कभी हमारे चरण स्पर्श
किए ? मुझे आज भी याद है शादी के दिन के अलावा तुमने कभी मेरे चरण स्पर्श नहीं किए
होंगे |
‘’ उस लायक बनो |’’ तपाक
से उसने एक धारदार शब्द हमारी ओर फेंका |
उस दिन हमने पत्नी की जिद
पर मित्रवत रंजनानंद जी को घर पर बुलाया | पत्नी ने हमसे आगे बढ़ –चढ़ कर उसका
स्वागत किया जैसा किआमतौर पर पूजा – पाठ में मग्न घर द्वार , पत्नी – बच्चों की
जरूरतों को घर के किसी कोने में कचरे की ढेर की तरह फेंककर आधुनिक पुजारिन
पत्नियां कराती हैं | हमारा दिल बढ़ते बजट व लड़खड़ाती घरेलू व्यवस्था के समक्ष दीये
की भांति जलता है |
स्वागत सत्कार उपरांत हम
दोनों यानी स्वामी रंजनानंद के साथ एक शांत कमरे में बैठे थे |जीवन के दौर में आए
मुसीबतों की झंझावातों की चर्चा के साथ हमने उससे कहा-‘’ अबे , मेरी एक बात समझ
में नहीं आई कि तू पढ़ा – लिखा मेरी तरह नास्तिक इंसान था, अचानक बाबागिरी का
रास्ता कैसे पकड़ लिया |’’
‘’ तुम अब भी वहीँ हो | अब
मैं तुम्हारा ‘’बे’’ नहीं रहा ,संत हूंसंत
स्वामी रंजनानंद | ‘’ वह मेरे दोस्ताना तथ्य पर उंगली उठाते हुए बोला |
‘’ पर तू तो आज भी मेरे लिए
रंजन है भले ही जमाने के लिए स्वामी रंजनानंद |पर तू यह बता कि बाबा क्यों बना |’’
मैंने फिर उसे छेदा |
‘’ बेरोजगारी ने मुझे बाबा
बनाया |’’ उसने कहा |
‘’ क्या बेरोजगारी का हल बाबागिरी
में है |’’ मैंने पुन: प्रश्न रखा |
‘’ मेरे हिसाब से मुझे मिला
‘’
‘’ मतलब क्या ? ‘’
‘’ तू जानता है मैंने रोजगार
प्राप्ति के लिए कहाँ-कहाँ नाक नहीं रगड़ी | डिग्रियों को देखकर रोता था | तब ज़माना
ने भी मुझे दुत्कारने में कसार नहीं छोड़ता था | फिर एक दिन एक पत्रिका में छपे लेख
से मुझे प्रेरणा मिली | और जब प्रेरणा मिलती है तो रास्ते अपने आप मंजिल बताते हैं
| मैंने भी सोचा क्यों न बाबागिरी का धंधा अपनाया जाए | बस बन गया स्वामी | दोस्त
इस देश में धर्म व तंत्र के नाम पर स्वादिष्ट रोटियाँ प्राप्त करना कोई ज्यादा
कठिन काम नहीं है | बस खुद में चालाकी, वाकजाल में लोगों को फंसाने की क्षमता व
थोड़ा बहुत तथाकथित मनोविज्ञान व आध्यात्मिक ज्ञान होना आवश्यक है | फिर उल्लू
दुनिया को राह दिखाने का बीड़ा उठाइये और बढ़ाते जाइए | सच कहूं, अध्यात्म धर्म व
तंत्र मन्त्र की सुरंग में इतना भयानक अन्धकार है की इसमें भूली भटकी जनता प्रकाश
पुंज स्वरूप अपने गुरु स्वामी को देखती है और उसके पीछे पीछे चलती है |’’ उसने
धर्म नामक संसार को मुझे समझाया |
‘’ मतलब किमैं भी यहीं करूं |’’ मैंने कहा |
‘’ मैं यह नहीं कह
रहा कि तू साधु बन पर एक बात कहूं, तू
जीवन भर नौकरी कर नहीं कमा सकता, उतना मैंने चाँद साल में बटोर लिया | आज मेरे पास
आधुनिक सुविधाओं से युक्त आश्रम ,वाहन, सुंदर –सुंदर सेविकायें, सेवक ,धन-धान्य
,जमीन , शिष्यों की भीड़ ,राजनैतिक आश्रम , शोहरत सब कुछ है | जिधर जुबान चलाता हूं
वही से मेरे पास धन व शिष्य स्वरूप जनता , अफसर, नेता चले आते हैं | आज मेरे आध्यात्मिक
कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देशभर में मेरे एजेंट फैले हैं जो लघु
आश्रम बनाकर मेरे नाम की लोगों से माल, जाप करा रहे हैं |
उसने अपने नकाबपोश चेहरे का
रहस्य बताया तो मैं अंदर तक दहल गया | फिर भी चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाकर मैंने
कहा- ‘’ तू तो वाकई चतुर सियार निकला | पर तुझे अपना धंधा जमाने में अड़चन तो आई
होगी |’
‘’ काहे की अड़चन | मैंने मनोविज्ञान
,दर्शनशास्त्र से एम.ए. किया है ही है | रेकी यानी स्पर्श चिकित्सा और सीख ली | बस
इसी के सहारे करने लगा बाबागिरी | आज मैं प्रवचन देता हूं, जीने की राह दिखाता हूं
| संतान से वंचित, बीमारी, धन अभावग्रस्त आदि लाचारी से लोगों को मुक्त कराने का
प्रपंच रचता हूं |अपनी धर्मभीरू जनता को और क्या चाहिए, मीठी जुबान व सहानुभूति का
स्पर्श |’’ उसने मुस्कुरा कर कहा |
‘’ मतलब तू ढोंगी है |’’
मैंने कहा |हालांकि अभी पूरी तरह से दोस्ताना अंदाज में बात कर रहे थे, इसलिए मेरी
बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा था |
‘’ असली संत को क्या आधुनिक
सुविधा युक्त आश्रम चाहिए? उसे तो हिमालय की गोदमें मजा आता है | हां, इतना ध्यान
रखना इसे धमकी समझो या दोस्ती का वचन, मेरी सच्चाई किसी से न कहना | अगर मैं फंसा
तो तेरे दर तक तो आ चुका हूं | तुझे भी अपना तथाकथित एजेंट बता तुझे भी ले डूब
मरुंगा |’’ और माफिया मुस्कान के साथ हंस
दिया |
मैं तो खैर आज भी चुप हूं,
दोस्ती का वचन देकर, पर वह.....?
-- सुनील कुमार ‘’सजल’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें