बुधवार, 6 मई 2015

लघुकथा - धंधा

लघुकथा - धंधा
चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पड़ा । धंधे में लगी पूँजी मटियामेट हो गयी । थोड़ा बहुत धन  जो पास में बचा था साहूकारों व दुकानदारों  कर्ज पटाने में  चला गया । चमन जी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें एक दिन जाने  सूझा कि यहां वहां से थोड़ा बहुत कर्ज लेकर अवैध शराब बनवाकर बेचना शुरू  कर दिया । इस पर प्रतिक्रिया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा - '' यार चमन भाई आप तो एक इज्जतदार आदमी है । अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध ठर्रा बेच रहे हैं । कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक रोटी मिलती । यह काम तो ... ?
'' क्या कहा ... ? अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही अवैध ठर्रा उड़ेलने क्यों जाते हैं ? कहिए ? 
 मोहन जी ... निरुत्तर... ।

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