लघुव्यंग्य –विधायक जी के भाई लोग
वे विधायक प्रतिनिधि बन गए , बड़े जलवे खीच
रहे हैं |उनके ठाठ देखते बनते हैं |धमकाते रहते हैं अधिकारियों और कर्मचारियों को
| जैसे खुद विधायक हैं | विधानसभा में जैसे इनकी बपौती चल रही हो कल ही मार्केटिंग सोसायटी वाले तिवारी बाबू को
धमाका कर आए थे –‘’ तिवारी जी हमारे किसान भाईयों को तकलीफ नही होंनी चाहिए |
उन्हें पर्याप्त खाद-बीज दिलवाओ | देखो खाद-बीज बांटकर कुछ ले दे रहे हो की नही |
देखो चूना न लगा देना अपनी सोसायटी को | ‘’
तिवारी बाबू समझदार हैं | वे अपनी सोसायटी का
व मार्केटिंग सोसायटी का मतलब अच्छी तरह समझते है | आखिर इतने साल से तो वे
सोसायटी के बीच ही तो जी पल रहे हैं | सोसायटी में रहकर ही बेरोजगार बेटे के लिए
फोर व्हीलर खरीद लाए | फिर काहे न समझेंगे सोसायटी का मतलब |
साब, विधायक प्रतिनिधि ठाकुर जी बड़े चुस्त –
चालाक जीव हैं |ठकुराई के पूरे गुण उनमें भरे हैं , वाही माल गुजारी के जमाने वाले
| आज इनकी मालगुजारी नहीं रही तो क्या हुआ | आनुवांशिक गुण तो हैं उनमें | सो वे
विधायक प्रतिनिधि बन बैठे | अभी वे इस दफ्तर से उस दफ्तर में कूद रहें हैं | ताकि
लोग पहचाने | अभी तक वे डॉक्टर साहब के नाम से जाने जाते थे | दसवीं पास डॉक्टर
हैं | दबी जुबान में कहें तो झोला छाप डॉक्टर | लेकिन वे झोला छाप डॉक्टर की तरह
कभी नहीं पूजे गए | बल्कि शिक्षित डॉक्टर की तरह पूजे जाते रहे हैं | क्षेत्र में
वे ही तो ऐसे डॉक्टर हैं जिसने जीतता रुपया इलाज के लिए दिया रख लिए | डाक्टरी के
साथ राजनीति भी कर रहे हैं |
जहां डाक्टरी के साथ राजनीति हाथ मिला ले | फिर काहे किसी का डर रहे |इलाज
वे चाहे जैसा करें |
वे जनता को पुटियाते बहुत अच्छे से
हैं –‘’ देखोप कक्का खीसा (जेब) में पैसा नई है तो नई रहने दो | हम तो इलाज करंगे
| ठेका कर लो | फसल आए या मजदूरी मिले तो दे देना | दवा-दारू सब अपनी तरफ से लगाए
देते हैं | आप ठीक हो ओ | स्वस्थ रहो यही हमारी अंतिम इच्छा है |’’ कक्का लोग खुश
हो जाते हैं | और ठाकुर जी की कठौती में गंगा आ जाती है |
विधायक साब को पता है ठाकुर साब ने उन्हें चुनाव में जीत दिलायी है | इसलिए
वे उन्हें अपना प्रतिनिधी बनाने से नहीं चुके | ताकि उनके साथ ठाकुर जी भी बैंक
में एकाध गुप्त खाता खुलवा लें |
ठाकुर साब को इन दिनों डाक्टरी करने की फुर्सत नही है | मरीजों की भीड़
उन्हें ढूँढती रहती | फोन लगाती है | वे सही जगह , सही समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते
| कहते है९न –‘’ दादा इत्ते काम हैं , अपने साथ कि कहीं खाते हैं , कहीं सोते हैं | ये दफ्तर से वो दफ्तर | इस पंचायत से उस
पंचायत देखना पड़ता है | कहाँ कैसा काम चल रहा है | विधायक साहब तो ख़ास – ख़ास जगह
जाते हैं | बाक़ी सब हम प्रतिनिधियों को देखना पड़ता है |
जो
काम उनके वश के बाहर का होता है | वह कार्य अपने विधायक साहब को सौंप देते हैं |
विधायक साहब उन्हें देख लेते हैं | कई जगह ठाकुर साहब ने अपने नाम के प्रचार में
कसबे में साइन बोर्ड लगा रखे हैं | साइन बोर्ड इसलिए लगा रखे हैं ताकि जनता को
मालूम हो सके वे सिर्फ बीमारी के डॉक्टर ही नहीं है बल्कि समाज की हर बीमारी के
डॉक्टर यानी डॉक्टरों के बाप हैं | ठाकुर साहब का एक फैशन है | वे हर समय गले में
स्टेथोस्कोप लटकाए रखते हैं | जब वे मंच पर खड़े होकर गले में लटकते स्टेथोस्कोप के
साथ माइक पकड़कर भाषण देते हैं , तब लगता है कि वे सचमुच में लोकतंत्र में व्याप्त
हर बीमारी का इलाज करने को तैयार खड़े हैं |
यूं
तो डॉक्टर साहब ने अपनी डाक्टरी के सहारे गलत इलाज करके दो-चार मरीजों को निपटाया
है | पर राजनीति के कफ़न ने मुर्दे को प्राकृतिक मौत से मरना सिद्ध किया | कौन
उल्लू है जो उनसे पंगा लेगा | आजकल ठाकुर साहब के जलवे विधायक से ज्यादा है | आखिर
विधायक जी कहते ही हैं –‘’ हम जितना नहीं कमाते उससे ज्यादा तो हमारे भाईई लोग कमा
लेते हैं
सुनील कुमार ‘’ सजल’’
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