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मंगलवार, 4 जून 2019

भाई


शनिवार, 29 अगस्त 2015

लघुव्यंग्य –विधायक जी के भाई लोग



लघुव्यंग्य –विधायक जी के भाई लोग

वे विधायक प्रतिनिधि बन गए , बड़े जलवे खीच रहे हैं |उनके ठाठ देखते बनते हैं |धमकाते रहते हैं अधिकारियों और कर्मचारियों को | जैसे खुद विधायक हैं | विधानसभा में जैसे इनकी बपौती चल रही हो  कल ही मार्केटिंग सोसायटी वाले तिवारी बाबू को धमाका कर आए थे –‘’ तिवारी जी हमारे किसान भाईयों को तकलीफ नही होंनी चाहिए | उन्हें पर्याप्त खाद-बीज दिलवाओ | देखो खाद-बीज बांटकर कुछ ले दे रहे हो की नही | देखो चूना न लगा देना अपनी सोसायटी को | ‘’
तिवारी बाबू समझदार हैं | वे अपनी सोसायटी का व मार्केटिंग सोसायटी का मतलब अच्छी तरह समझते है | आखिर इतने साल से तो वे सोसायटी के बीच ही तो जी पल रहे हैं | सोसायटी में रहकर ही बेरोजगार बेटे के लिए फोर व्हीलर खरीद लाए | फिर काहे न समझेंगे सोसायटी का मतलब |
साब, विधायक प्रतिनिधि ठाकुर जी बड़े चुस्त – चालाक जीव हैं |ठकुराई के पूरे गुण उनमें भरे हैं , वाही माल गुजारी के जमाने वाले | आज इनकी मालगुजारी नहीं रही तो क्या हुआ | आनुवांशिक गुण तो हैं उनमें | सो वे विधायक प्रतिनिधि बन बैठे | अभी वे इस दफ्तर से उस दफ्तर में कूद रहें हैं | ताकि लोग पहचाने | अभी तक वे डॉक्टर साहब के नाम से जाने जाते थे | दसवीं पास डॉक्टर हैं | दबी जुबान में कहें तो झोला छाप डॉक्टर | लेकिन वे झोला छाप डॉक्टर की तरह कभी नहीं पूजे गए | बल्कि शिक्षित डॉक्टर की तरह पूजे जाते रहे हैं | क्षेत्र में वे ही तो ऐसे डॉक्टर हैं जिसने जीतता रुपया इलाज के लिए दिया रख लिए | डाक्टरी के साथ राजनीति भी कर रहे हैं |
   जहां डाक्टरी के साथ राजनीति हाथ मिला ले | फिर काहे किसी का डर रहे |इलाज वे चाहे जैसा करें |
         वे  जनता को पुटियाते बहुत अच्छे से हैं –‘’ देखोप कक्का खीसा (जेब) में पैसा नई है तो नई रहने दो | हम तो इलाज करंगे | ठेका कर लो | फसल आए या मजदूरी मिले तो दे देना | दवा-दारू सब अपनी तरफ से लगाए देते हैं | आप ठीक हो ओ | स्वस्थ रहो यही हमारी अंतिम इच्छा है |’’ कक्का लोग खुश हो जाते हैं | और ठाकुर जी की कठौती में गंगा आ जाती है |
    विधायक साब को पता है ठाकुर साब ने उन्हें चुनाव में जीत दिलायी है | इसलिए वे उन्हें अपना प्रतिनिधी बनाने से नहीं चुके | ताकि उनके साथ ठाकुर जी भी बैंक में एकाध गुप्त खाता खुलवा लें |
  ठाकुर साब को इन दिनों डाक्टरी करने की फुर्सत नही है | मरीजों की भीड़ उन्हें ढूँढती रहती | फोन लगाती है | वे सही जगह , सही समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते | कहते है९न –‘’ दादा इत्ते काम हैं , अपने साथ कि कहीं खाते हैं , कहीं सोते  हैं | ये दफ्तर से वो दफ्तर | इस पंचायत से उस पंचायत देखना पड़ता है | कहाँ कैसा काम चल रहा है | विधायक साहब तो ख़ास – ख़ास जगह जाते हैं | बाक़ी सब हम प्रतिनिधियों को देखना पड़ता है |
   जो काम उनके वश के बाहर का होता है | वह कार्य अपने विधायक साहब को सौंप देते हैं | विधायक साहब उन्हें देख लेते हैं | कई जगह ठाकुर साहब ने अपने नाम के प्रचार में कसबे में साइन बोर्ड लगा रखे हैं | साइन बोर्ड इसलिए लगा रखे हैं ताकि जनता को मालूम हो सके वे सिर्फ बीमारी के डॉक्टर ही नहीं है बल्कि समाज की हर बीमारी के डॉक्टर यानी डॉक्टरों के बाप हैं | ठाकुर साहब का एक फैशन है | वे हर समय गले में स्टेथोस्कोप लटकाए रखते हैं | जब वे मंच पर खड़े होकर गले में लटकते स्टेथोस्कोप के साथ माइक पकड़कर भाषण देते हैं , तब लगता है कि वे सचमुच में लोकतंत्र में व्याप्त हर बीमारी का इलाज करने को तैयार खड़े हैं |
  यूं तो डॉक्टर साहब ने अपनी डाक्टरी के सहारे गलत इलाज करके दो-चार मरीजों को निपटाया है | पर राजनीति के कफ़न ने मुर्दे को प्राकृतिक मौत से मरना सिद्ध किया | कौन उल्लू है जो उनसे पंगा लेगा | आजकल ठाकुर साहब के जलवे विधायक से ज्यादा है | आखिर विधायक जी कहते ही हैं –‘’ हम जितना नहीं कमाते उससे ज्यादा तो हमारे भाईई लोग कमा लेते हैं
                           सुनील कुमार ‘’ सजल’’

गुरुवार, 4 जून 2015

व्यंग्य – भाई से भाई जी तक


व्यंग्य – भाई से भाई जी तक

इन दिनों हमारे नगर में अनोखा फैशन उबाल मार रहा है फैशन से आप यह अंदाज न लगायें | छोकरों का अर्ध कूल्हा दिखाता जींस, खुली पीठ दिखाते ब्लाउज में महिलायें , टाइट सलवार कुर्ती,टी शर्ट में बदन झलकाती युवतियां ,खुले बदन में घूमते युवा जैसा फैशन |
 नगर में फैशन जो चलन में है वह है भाईजी नामक सम्मानीय शब्द का |पहले कभी लोग भाईजी कहते कहते नहीं पाए जाते थे लोग | बल्कि बॉस ,भाई साब, बड़े भैया , बड़े दादा ,बड़े कक्का, बड़े भाई ,बड़े इत्यादि |
फैशन तो फैशन है | बाजार में उतार दिए जाने के बाद वह भी चलन में आ जाता है | सो इन दिनों चलन में है सम्मानीय शब्द  का फैशन ‘’भाई जी ‘’| यूँ तो भाई साब अभी कहा जाता अपनों  को | पर पुराने टाइप के लोग कहते हैं | या फिर इस नए शब्द फैशन से स्वयं  को जोड़ नहीं पायें वे लोग |
 बॉस से भाई जी तक का सफ़र कर चुका है हमारा नगर | भाई अकेले शब्द को कहने में कहने कतराते है लोग | कहते हैं – मुंबई नहीं है हमारा नगर जो किसी को भी भाई कहकर मवाली बना दें |
  पहले कभी ‘भाई’ कहने पर कुछ शरीफ लोग बदमाशों के हाथ पिट चुके हैं |कुछ ने तो इस शब्द सम्मान के मामले को थाने तक पहुंचा दिया |इसलिए भाई के आगे ‘ जी’ जोड़कर सारे विवाद को ख़त्म कर दिया गया | ताकि शरीफ व् बदमाश एक हो जाएँ इस शब्द फैशन के दौर में |
आम आदमी भी अब अपने बीच के आम आदमी को भाईजी कहता है | भाईजी कहने के बाद वह पुन: विचार करता है | भाई के साथ उसने जी लगाया या नहीं | अगर शंका बनी रही तो वह सामने वाले का चेहरा भांपता है | प्रतिक्रया के लिए |
इन दिनों युवाओं में खूब चल रहा ही ‘’भाईजी’’| नए ब्रांड की दारू, गुटखे की तरह | लोग अपनों के नाम या सरनेम लेने की बजाय भाईजी कहना पसंद करते हैं | बिना भेदभाव,जात-पांत ,छोटे-बड़े का अंतर के |
 हर फैशन के पीछे शौक के साथ स्वार्थ भी पनपता है | मसलन फिल्म में नायक-नायिकाएं जितना ज्यादा बदन उघाराते हैं उनका मार्किट उतना ही तगड़ा होता हैं |
    दूसरा उदाहरण यह भी हो सकता है | मैं आपसे कहूं भाईजी सुपर मार्केट का रास्ता किधर है ? आप खुश होकर बताएँगे | रिक्शा वाले हो या दूकानदार सब अपने ग्राहकों को ‘’आइये भाईजी ‘’ से स्वागत कर बुलाते हैं |
 नगर के राजनैतिक कार्यालयों में जितने भाई हैं ,वे सब इन दिनों भाईजी से नवाजे जा रहे हैं | पार्टी में शालीनता बनाएं रखने के लिए पदाधिकारियों ने तो  एक आदेश के साथ  भाईजी जैसे शालीन शब्दों को नियमित अभ्यास के साथ इस्तेमाल करने हेतु शब्दों की सूची चस्पा कर दी है सूचना पटल पर |
  भाईसाब ? क्षमा करें | भाईजी ,हम तो बॉस से भाईजी तक का सफ़र कर चुके और आप ? बताइयेगा |
      सुनील कुमार ‘सजल’’