व्यंग्य --शराब
‘ तू इतनी दारू क्यों पीता है ?’’
‘ गम भूलाने के लिए |’’
‘’ कैसा गम ?
‘ जिंदगी के हजार गम होते हैं साब क्या बताएं
|
‘’जानता है दारू कितनी नुक्सानदेह चीज है फिर
भी दारू पीता है |’
‘ गम तो उससे भी ज्यादा नुकसानदेह है |
‘’यार तू लम्बी मत खींच पीना छोड़ दे |’’
‘ काहे
साब | वह जिद्द पर अड़ा है | मैं उसे समझा रहा हों |
‘’मंगलू के लिए गम गलत की दवा है दारू|’’
‘
दारू गम को गलत करती है या गम दारू को गलत करता है यह मंगलू ही जाने |
एक दिन मैंने मंगलू से कहा –‘’ यार तू मजदूर
होकर भी इतनी दारू की व्यवस्था कैसे कर लेता है |वह हंसा – ‘’साब का बड़े लोग ही
दारू पीना जानते हैं |हम भी दारू का मजा लेते | इसका बंदोबस्त सरकार ने हमारे लिए
कर रखा है |’’
“वह कैसे?’’
‘’पांच लीटर दारू रखने की की छूट | और पेट के लिए एक रूपये किलो अनाज की
व्यवस्था | जब एक रूपये किलो अनाज मिलेगा तो दारू की व्यवस्था तो होनी ही है |
काहे की चिन्ता |सौ रुपया की मजदूरी करो
पचास की पियो |’’
‘’कुछ बचत भी किया कर कल बीमारी लाचारी में
काम आएँगे |’’
‘’काहे की बीमारी साब | सरकार बीस हजार रूपये
तक का इलाज खुद करवाती है अब तो हम भी आप लोगों तरह प्राइवेट अस्पताल में इलाज करा
सकते हैं वह भी सरकार की तरफ से | ‘’
मंगलू निश्चिन्त है दारू में डूब कर | उसे नहीं
मालूम राजनीति के प्यादे कैसे व किसतरह चलते हैं|राजनीती के लोग | सरकार की हर
सुविधा के पीछे एक राजनैतिक हकीकत होती है |’
सरकार
जानती आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी उसका नशा है | उसका पेट है | इसलिए उसी के आधारपर
नीतियाँ बनाती है |
एक बार
अखबार में पढ़ा था सरकार चाहती पीने वालों के लिए आरामदायक स्थिति हो | ताकि वे दारू की दूकान में मजे से पी सके
पीने पूरा लुफ्त उठायें |
सरकार को पता है | पीने वाले को पता है| अधिकांश हादसों की जड़ शराब है | पर वह उस पर रोक नही लगा सकती | सरकार का अधिकाँश बजट शराबियों के दम
पर आता है | शराबी न हों तो ....?
एक
बार कुछ कर्मचारी संघठन सरकार से वेतन बढ़ोतरी का मुद्दा रखा था |सरकार ने बजट के अभाव में देने से इनकार कर दिया था |
संघ ने प्रस्ताव रखा नशीली चीजें जैसे शराब में टेक्स बढ़ा दीजिए | मंत्री जी बोले आपके हित
के लिए क्या हम नशेड़ियों को पीने से वंचित कर दें | सरकार को पता है जब तक उसके राज्य
में शराबी हैं| उनके अनुकूल स्कीमें निकाल सत्ता के आलिशान कक्ष में जम कर बैठ कर
रहा जा सकता है |
मंहगाई तो बढती रहती है | यह बात तो मजदूर को भी पता है | इसलिए उसकी कमजोरियों को गरीबी
रेखा से नीचे लाकर उसे खुश करना जानती है सरकार | मजदूर खुश है तो सरकार खुश है
|मजदूर इस खुशी को गम माने या ख़ुशी | इसे
सही गलत करने के लिए मार्केट में दारू उपलब्ध है |
अब
तो गाँव-गाँव में देशी विदेशी शराब की दुकानें खुल गयी | हो सकता सरकार की सोच हो
मिलावटी ठर्रा से बेहतर दारू उसे मिले | माफिया क्यों लाभ उठायें | जब जनता सरकार
की है और सरकार जनता की है |
सुनील कुमार सजल
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