व्यंग्य आओ चिड़िया बचाएं
बात बीते ग्रीष्म की है |बात कुछ ऎसी है |
शहर में चिड़िया बचाओ अभियान की शुरुवात ही |जगह –जगह बैनर, पोस्टर ,पम्पलेट चस्पा
किये गए थे | यह अभियान था अभियान की तरह |हिस्सेदारी निभाने वालों में ज्यादातर
कालोनी के महिलाएं व पुरुष ,बच्चे शामिल थे | आम आदमी रूचि ले रहा था मगर गंभीरता
से नहीं | मजदूर वर्ग तो पेट की चिन्ता में लगा था | ‘’ ऐसा अभियान तो बड़े लोगों
के चोचले हैं ‘ ऐसा कहकर |
अभियान अच्छा था | आखिर पक्षी भी तो हमारे बीच के सदस्य हैं | प्रकृति के
श्रृंगार हैं |
अभियान की शुरुवात यूं हुई साब | अखबारों में
विज्ञापन छपे –‘आओ चिड़िया बचाएं | गम होते प्रकृति के सौन्दर्य को बचाएं |
विज्ञापन का प्रभाव | लोगो में उत्साह जागा|
बैठकें हुई | लोग मिलते तो एक ही चर्चा –
आओ चिड़ियाँ बचाएं पर |
कुम्हारों के पास मिट्टी के टकोरे ( कटोरानुमा पात्र ) के आर्डर दिए जाने
लगे | कुम्हार भाइयों की चटक आयी | दस के टकोरे पंद्रह रुपये में बिकने लगे |
टकोरों में पक्षियों के लिए इस भीषण गरमी के दौर में पानी और अनाज रखना था | यह
अभियान तो अभियान था | वह भी जेब से खर्च करने वाला अभियान | कितना सफल होता है
वक्त बताएगा |
वे
हमेशा की तरह सुबह-सुबह मिले | बोले – भाई जी टकोरे ले आए | हमने हाँ में सहमति दी
|
‘’ फिर आज रख रहे हों टकोरे |’’वो तो रखेंगे
साब |’
‘बड़ा
पुण्य मिलेगा साब |’’
‘ यार तुम हर काम को पुण्य -पाप के नजरिए से
क्यों देखते हो |’
‘’ भाई , अपन सुबह से शाम तक में न जाने
कितने पाप करते हैं | कम से कम इसी बहाने कट जाएँ बस इसीलिए...|’’
‘ खैर छोडिये इन बातों को | मगर एक काम जरूर करिए |’’
‘’ क्या?’’
‘’अपने घर में पिंजरे में जो पक्षी कैद कर
रखे हैं न, उन्हें उड़ा दीजिए |’
‘ आप भी गजब करते हो | हमने पालने के लिए
लाया है | इससे घर की शोभा बदती है |’’
‘शोभा बढानी है तो कृत्रिम पक्षी ले आईये |
उनसे सजाईये घर को | रही बात चिड़िया पालने की | चिड़िया बचाओ अभियान तो सम्पूर्ण
पृथ्वी जगत के पक्षियों के पालने का अभियान ही तो है | ‘’
वे खीझ उठे | बोले – आपसे कौन बहस करे |’ और
वे बढ़ लिए ....|
हमने देखा चिड़ीमार भी जो चिड़िया जैसे बटेर,
तीतर का मांस शौक से खाते हैं | इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे |
हमने
कहा-‘’ चलो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को तो जा रही है | ‘
वे
चिढ गए – यार तुम्हारी आदत है क्या औरों पर व्यंग्य करने की |
‘’ भाई बुरा न माने | अगर अगर आप जैसे लोग
अपनी बन्दूक से निकली छर्रे नुमा गोली सेपक्षियों को मारकर इनके मांस का रस्वादन न
करते तो आज जो इतनी कम संख्या में पक्षी दिख रहे हैं ,इससे कहीं ज्यादा दिखते |’’
हमने कहा |
वे बोले-‘’ दुनिया मांस की शौक़ीन है | लोग
मुर्गियां पालते हैं तो क्या उसकी पूजा करते हैं | उसको भी तो भोजन बनाते हैं |’’
‘’ यानी आप इस अभियान से इसलिए जुड़े हैं |
ताकि इनकी संख्या बची रहे | आपका स्वाद बरकरार रहे |’
अबकी बार उनके अन्दर खीझ ज्यादा थी |बोले-‘’
‘’ तुम जो पंडित बनाते हो खुद वैसे नहीं हो | चुपके-चुपके अंडे का आमलेट खाते हो |
यानी चित भी मेरा पट भी मेरा | ‘’
पिछले साल पितृ पक्ष में लोग कौए के दर्शन के लिए तरस गए थे |एक ने तो यहाँ
तक कह दिया था – अब तो ऐसा लगता हैऊ पिटर भी न तर पाएंगे |’’
‘’
काहे?’’
‘’
इन कौए के रूप में ही तो आते वे |’’
अभियान जोरो पर था | कॉलोनी की
महिलाएं हाथ में टकोरे लिए अपने घर के छतों पर रख रही थीं | पड़ोसनों से बता रही
थीं | ‘’ हमने तो रख दिए टकोरे | बड़ी देर से इन्त्जारकर रहे हैं एकात पक्षी आकर जल
व अन्न में चोंच मार कर जाता और हम वीडियो रिकार्डिंग कर लेते | पर सौरे न जाने
कहाँ मर गए हैं |’
‘’ आते ही होंगे | हो सकता है गाँव के आसपास
के जंगल वंगल में चले गए होंगे |’’
‘’ इन नालायकों को कैसे समझाएं कियहाँ कितना
बड़ा अभियान चल रहा है उनके हित में | इधर का शुद्ध काना चाहिए न उधर कीड़े – मकोड़े
चुगने गए हैं |’’
‘’ क्या करें दीदी पक्षी हैं |
‘’ वो तो ठीक है | अब तू ही बता न अपन कॉलोनीवासियों ने कितना
खर्च कर दिया | इन पक्षियों के पीछे | कल हमने नया हेन्दीकैम भी खरीद लाया | ताकि
रिकार्डिंग कर सकें |’मीडियावालों को क्या दिखाएँगे | कल ही जलता संसार का
संवाददाता बता रहा था | टकोरे में अनाज चुगते व पानी पीते पक्षियों की फोटो
प्रतियोगिता आयोजित करने जा रहा है | इस हेतु पच्चीस हजार का इनाम रखा गया है |हम
कैसे अखबार को भेजेंगे फोटो |’’
‘’ मेरे दिमाग में एक खूबी है |’’
‘’ रश्मि दीदी के यहाँ दो चिड़िया पिंजरे में
पाली हैं |उन्हें कहते हैं टकोरे के पास लाकर छोड़गें | जैसे ही वे दाना चुगने के
लिए टकोरे में चोंच लगायेंगे अपन फोटो खींच लेंगे |’’
‘’’’ अगर वे उड़ गयीं तो .. रश्मि अपने बारह
बजा देगी | फिर वह काहे देगी , जैसा अपन दिमाग चला रहे हैं || उसका दिमाग पहले ही
चल गया होगा | वे फोटो ले चुकी होंगी |’
‘’ अच्छा एक काम और कर सकते हैं | एकात
कृत्रिम सेम टू सेम पक्षी जैसा दिखने वाला मॉडल लाते हैं | और उसके सहारे फोटो ले
लेते हैं |’’
‘’ असली व नकली में फर्क नहीं कर पाएंगे का
मीडियावाले | जो लोगो की आए दिन बखिया उधेड़ने में लगे रहते हैं |’’
‘’ अब बता न का करें | मेरी बुद्धि कम नहीं
कर है |’
‘’ धुप में बैठकर पक्षियों का
इंतज़ार.........|’’
सुनील कुमार ‘सजल’’
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