शराब लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शराब लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

व्यंग्य --शराब


व्यंग्य  --शराब
तू इतनी दारू क्यों पीता है ?’’
‘ गम भूलाने के लिए |’’
‘’ कैसा गम ?
‘ जिंदगी के हजार गम होते हैं साब क्या बताएं |
‘’जानता है दारू कितनी नुक्सानदेह चीज है फिर भी दारू पीता  है |’
‘ गम तो उससे भी ज्यादा नुकसानदेह है |
 ‘’यार तू लम्बी मत खींच पीना छोड़ दे |’’
‘ काहे  साब | वह जिद्द पर अड़ा है | मैं उसे समझा रहा हों |
 ‘’मंगलू के लिए गम गलत की दवा है दारू|’’  ‘
दारू गम को गलत करती है या गम दारू  को गलत करता  है यह मंगलू ही जाने |
एक दिन मैंने मंगलू से कहा –‘’ यार तू मजदूर होकर भी इतनी दारू की व्यवस्था कैसे कर लेता है |वह हंसा – ‘’साब का बड़े लोग ही दारू पीना जानते हैं |हम भी दारू का मजा लेते | इसका बंदोबस्त सरकार ने हमारे लिए कर रखा है |’’
“वह कैसे?’’
‘’पांच लीटर दारू रखने की  की छूट | और पेट के लिए एक रूपये किलो अनाज की व्यवस्था | जब एक रूपये किलो अनाज मिलेगा तो दारू की व्यवस्था तो होनी ही है | काहे की चिन्ता |सौ रुपया की मजदूरी  करो पचास की पियो |’’
‘’कुछ बचत भी किया कर कल बीमारी लाचारी में काम आएँगे |’’
‘’काहे की बीमारी साब | सरकार बीस हजार रूपये तक का इलाज खुद करवाती है अब तो हम भी आप लोगों तरह प्राइवेट अस्पताल में इलाज करा सकते हैं वह भी सरकार की तरफ से | ‘’
 मंगलू निश्चिन्त है दारू में डूब कर | उसे नहीं मालूम राजनीति के प्यादे कैसे व किसतरह चलते हैं|राजनीती के लोग | सरकार की हर सुविधा के पीछे एक राजनैतिक हकीकत होती है |’
  सरकार जानती आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी उसका नशा है | उसका पेट है | इसलिए उसी के आधारपर नीतियाँ बनाती है |
  एक बार अखबार में पढ़ा था सरकार चाहती पीने वालों के लिए आरामदायक स्थिति  हो | ताकि वे दारू की दूकान में मजे से पी सके पीने पूरा लुफ्त  उठायें |
  
  सरकार को पता है | पीने वाले को पता है| अधिकांश  हादसों की जड़ शराब है  | पर वह उस पर रोक नही  लगा सकती | सरकार का अधिकाँश बजट शराबियों के दम पर आता है | शराबी न हों तो ....?
  एक बार कुछ कर्मचारी संघठन सरकार से वेतन बढ़ोतरी का मुद्दा रखा था |सरकार  ने बजट के अभाव में देने से इनकार कर दिया था | संघ ने प्रस्ताव रखा नशीली चीजें जैसे शराब  में टेक्स बढ़ा दीजिए | मंत्री जी बोले आपके हित के लिए क्या हम नशेड़ियों को पीने से वंचित  कर दें  |  सरकार को पता है जब तक उसके राज्य में शराबी हैं| उनके अनुकूल स्कीमें निकाल सत्ता के आलिशान कक्ष में जम कर बैठ कर रहा जा सकता है |
  मंहगाई तो बढती रहती है | यह बात तो मजदूर  को भी पता है | इसलिए उसकी कमजोरियों को गरीबी रेखा से नीचे लाकर उसे खुश करना जानती है सरकार | मजदूर खुश है तो सरकार खुश है |मजदूर इस खुशी  को गम माने या ख़ुशी | इसे सही गलत करने के लिए मार्केट में दारू उपलब्ध है |
  अब तो गाँव-गाँव में देशी विदेशी शराब की दुकानें खुल गयी | हो सकता सरकार की सोच हो मिलावटी ठर्रा से बेहतर दारू उसे मिले | माफिया क्यों लाभ उठायें | जब जनता सरकार की है और सरकार  जनता की है |
        सुनील कुमार सजल 

रविवार, 26 जुलाई 2015

लघुकथा –आदत


लघुकथा –आदत

रोज शाम को दफ्तर से घर लौटते वक्त वह शराब पीकर आता और अपने इकलौते तीन वर्षीय पुत्र व पत्नी पर जुल्म का अपना रुतवा दिखाकर उन्हें एक कोने से दूसरे कोने तक फुटवाल की तरह उछालता पर नशा उतरता तो अपने किए पर बहुत पछताता |
  इस तरह के क्रम में महीनों गुजर गए | एक दिन उसे जाने क्या हुआ ,उस शाम वह पीकर तो आया मगर बिलकुल शांत रहा | रात्री में भोजन करके बिना उपद्रव मचाए बिस्तर पर गहरी नींद में बेटे के बगल में चुपचाप लेट गया | रोजाना के उसके व्यवहार से अभ्यस्त पत्नी को आज उसका व्यवहार बहुत अटपटा सा लगा| जब उससे से रहा न गया तो उसने पूछ ही लिया ‘’ क्यों जी , क्या बात है बिलकुल शांत हो ....कहीं कुछ हो गया क्या ?...बताओ तो किस बात का तनाव है ?’’
‘’कुछ भी तो नहीं ...!पत्नी को बाहों में लेते हुए उसने कहा, तुम इतनी परेशान क्यों हो रही हो ?’’
‘’क्यों न होऊँ ,रोजाना के व्यवहार और आज के व्यवहार में अंतर देखकर ?’’
‘’ तो क्या मेरा इस तरह सुधर जाना तुम्हें अच्छा नहीं लगा ?’’
‘’ अच्छा तो लगा पर इस तरह तुम्हारा शांत भाव भी चुभता है |’’
‘’क्यों?’
‘’ तुम्हारे झगड़े , मारपीट को सहते-सहते ऐसी परिस्थिति में रहने की आदत सी बन गई है | अब आपका यकायक परिवर्तित होना हमारी आदत को बदलने में वक्त तो लगेगा न ! इस तरह की शान्ति .....!’’
  पत्नी के तर्क से अचंभित पति कुछ भी सोच नहीं पा रहा था ...|
   सुनील कुमार ‘’सजल’’