मंगलवार, 22 सितंबर 2015

लघुकथा – सोच

लघुकथा – सोच

बाबू श्याम लाल अपने बड़े लडके प्रमोद की करतूतों से काफी परेशां रहते |वह हमेशा झगड़े – फसाद , लड़कियों से छेड़छाड़ आदि में ही मशगूल रहता था | खेत्र के तमाम आवारा लड़कों के साथ उसकी संगति थी |
 एक दिन वह किसी गंभीर मामलें में पुलिस द्वारा धर-दबोचा गया \ घर में बैठे शर्मा जी श्याम  बाबू को  को समझा रहे थे | -‘’ ‘’ श्याम भाई , जाओ कुछ ले- देकर प्रमोद को छुडा लाओ \ आखिर बेटा तो आपका ही है \ कल खबर जहाँ – तहां फैलेगी तो उसमें तुम्हारी ही बदनामी होगी न | ‘’
   पर श्याम लाल टस से मस  नहीं हुए | वे प्रमोद की ओर से पूरी तरह बेफिक्र थे | मानो कुछ हुआ ही न हो | शर्माजी के बार-बार उकसाने पर वे खीझते हुए बोले- ‘’ अरे जाने दो यार | ऐसे पुत्र से तो उसका न होना ही बेहतर है | हराम खोर ने मुझे कहीं का का न छोड़ा है |
    अगले दिन पूरे गाँव में यह खबर फ़ैल गयी कि प्रमोद पुलिस हिरासत में मारा गया | शायद रात में पुलिस ने उसे बुरी तरह टार्चर किया था | 
     इधर श्याम लाल जी बेटे की मृत्यु की खबर पाकर खाट पर बेहोश पड़े थे \ उन्हें जब भी होश आता, बस यही दोहराते –‘’ मेरा एक हाथ चला गया \ अब मेरा जीना बेकार है |’’

       सुनील कुमार सजल 

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