लघुव्यंग्य
- मजबूरी
शादी के
दो साल बाद से पति-पत्नी के बीच ज़रा भी नहीं बन रही थी | रोजाना कुछ न कुछ खटपट
होती रहती | एक दिन परेशान पत्नी ने कह दिया – ‘’ सुहागरात में तो बड़ी-बड़ी कसमें
खाए थे ... जिंदगी भर तुम्हें प्यार करूंगा कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे
तुम्हारे दिलो-दिमाग को ठेस पहुंचे ... अब सालभर से क्या हो गया है ..जो व्यवहार
में तीखापन आ गया है |’
‘’ यह सब
तेरे मायके वालों के कारण है ... जिन्होंने वायदा किया था ... शेष एक लाख का दहेज़
सालभर के अन्दर देकर पूरा कर देंगे .. तेरे मेरे बीच आती कटुता की जड़ दहेज़ ही न
..|’’पति ने तीखे स्वर में कहा |
‘’ जब
इतना मालूम है कि दहेज़ ही घृणा पैदा कर रहा है तो इसे मन में क्यों जमाए बै९थे हो
|’
‘ मेरी
मजबूरी है... क्योंकि वे अपने वायदे से मुकर रहे हैं |’’ पत्नी चुप होकर रह गयी थी
क्योंकि अब वह भी मजबूर थी
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