लघुव्यंग्य
– गारंटी
‘’ तुम भी
शीला किस बुद्धि की हो ...छोटी-सी नौकरी में लगे लडके को अपनी फूल-सी बिटिया का
हाथ थमाकर ढेर सारा दहेज़ दे बैठी .... और दूसरे लडके नहीं मिल रहे थे क्या |’’
सुनीति ने कहा तो वह बोली –‘’ लडके तो बहुत मिल रहे थे .... पर इसमें बात कुछ और है |’’
‘’ क्या
बात है हमें भी तो बताओ ?’’’
‘’ दामाद
सरकारी नौकर है ... कम से कम रश्मि की रोजगार की गारंटी तो सुरक्षित है |’
‘’ मतलब
|’’
‘’ बात
सीधी-सी है कल दामाद की जिंदगी रही न रही तो रश्मि को अनुकम्पा नौकरी तो मिल जाएगी
...किसी के भरोसे तो जिंदगी नहीं काटनी पड़ेगी उसे ....अब शान्ति बहन की बिटिया
पुनीता के हाल तो मालूम है न पति व्यवसायी था | देहांत हो गया | अब पुनीता के हाल
देख रही हो न ....बच्चे मारे मारे फिर रहे हैं ... और खुद नौकर की भाँती ... कम से
कम अपनी रश्मी तो ....| शीला ने उदाहरण
सहित समझाते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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