मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

लघुव्यंग्य- जैसा अन्न

लघुव्यंग्य- जैसा अन्न

बेटे की आवारागर्दी व फिजूल कर्च गतिविधियों पर क्रुद्ध पिटा ने बेटे पर चिल्लाते हुए कहा- ‘’ सूअर मैंने यह धन यूँ ही इकट्ठा नहीं किया है तेरे लिए..कितनो से झपटा कितनो का दिल दुखाया कितने पाप किए तब कहीं जाकर तेरी जिंदगी बनाने के लिए धन जोड़ा और तू हाथ पर लगे मेल की तरह धो-धो कर लुटा रहा है ... तुझे ज़रा भी कसक नहीं ... कमीने अब तो सुधर जा...|’’
‘’ आप क्या समझते हैं , सुधर जाउंगा ... कदापि नहीं क्योंकि मेरी रगों में आपके भ्रष्ट कृत्यों का रक्त जो बह रहा है ... जैसा आपने मुझे अन्न खिलाया है... वाही माकन व कर्म होंगे ... काश | आपने मुझे इमानदारी का अन्न खिलायाका होता तो ...?
 बेटे का दो टूक जवाब सुनकर यूँ लगा मानो उनकी छाती पर किसी ने कील ठोंक दी हो |


सुनील कुमार ‘’ सजल’’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें