रविवार, 1 मई 2016

लघुव्यंग्य - भ्रष्ट क्यों ?

लघुव्यंग्य 01-   भ्रष्ट क्यों ?

कसबे की किसी शासकीय शाला में शिक्षकों द्वारा अवैध वसूली की जा रही थी |जो चर्चा का विषय बनी हुई थी |
  एक शाम चाय की दूकान में बैठा एक पालक उसी शाला के शिक्षक से कटु शब्दों में कहा –आज के शिक्षक ,शिक्षक नहीं रहे नंबर एक के भ्रष्ट |जब चाहा कभी इस बात के लिए चन्दा कभी उस बात के लिए चंदा  वसूली कर ली |कहीं से कुछ नहीं मिलता तो अभिभावकों के जेब में हाथ डालते हैं |जबकि ईश्वर तुल्य है |परन्तु उसने भ्रष्ट आकांक्षा में डूबकर पद की गरिमा कि नारकीय गर्तों में पहुंचा दिया | क्या होगा इस देश का और जाने क्या देते होंगे छात्रों को | जब स्वयं भ्रष्ट हैं |शिक्षक बहुत देर से उसकी बात सुन रहा था |अत: प्रश्नात्मक अंदाज में बोला | ‘’ जब साड़ी दुनिया ब्रष्ट है तो सिर्फ शिक्षक कि तरफ ही अंगुलिया क्यों उठायी जाती हैं | लोग अपने गिरेबां में झांककर क्यों नहीं देखते ?और उन्हें भ्रष्ट बनाने वाले कौन हैं कभी सोचा आपने ? इसी युग के लोग | ज़रा उच्च कार्यालयों में जाकर देखो तो वस्तुस्थिति का पता चले |हर छोटे से छोटे , बड़े से बड़े क्लेम को पास कराने के लिए वहां के कर्मचारी किस तरह शिक्षक कि जेब कि तरफ गिद्ध दृष्टि जमाये रहते हैं ?अपनी गिनी –चुनीतनख्वाह के भरोसे जीविका चलाने वाला शिक्षक कहाँ से  करे इन गिद्धों की भूख की व्यवस्था ? ऐसे में वह भ्रष्ट नहीं बनेगा तो करेगा क्या ? उस वह पद की गरिमा देखे या पेट की ज्वाला ? कोई उसके पास अलाउद्दीन का जिन्न तो है नहीं जिससे वह व्यवस्था कराता फिरे | वह तो वाही कर रहा है जो युग चाह रहा है | फिर वह कहाँ से भ्रष्ट हुआ ....? शिक्षक कहे जा रहा था | और वह अभिभावक खामोशी ओढ़े निरुत्तर ..........|

सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

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