बुधवार, 11 मई 2016

लघुकथा- सूत्र

लघुकथा- सूत्र

आँगन में रखी कुर्सी में धंसे नेताजी ध्यानपूर्वक देख रहे थे कि दानों के लिए चिड़िया आपस में किस तरह लड़ रही थी | वे एक दूसरे पर चोंच व पंजों से हमला कर रही थी |
 पास खड़े चमचे ने उनकी ध्यान-तन्द्रा तोड़ते हुए कहा-‘’ दादा , इन चिड़ियों को आप बड़े गौर से देख रहे हैं ? कोई चुनावी सूत्र ढूंढ रहे है क्या ?’’
‘’ हाँ .... मिलगया ... हमें सूत्र मिल गया |’’नेताजी मुस्करा उठे |
‘’ काहे का सूत्र मिल गया दादा? हमें भी तो बताओ |’’ चमचे कि जिज्ञासा भरी नजरें उन पर टिक गई |
‘’ आवास तोला के लोग इन चिड़ियों की भाँती ही भूख से मर रहे है | पूरी बस्ती में मात्र 3 -4 बोरी चावल ही बांटने हेतु पहुँचाओ | अनाज देखकर अगर वे टूट पड़े तो उन्हें आपस में लूटपाट करने हेतु लड़ने-मरने दो | तब तुम लोग चुपचाप वहां से खिसक लेना | वैसे भी वो लोग अब हमें ‘’ भूतपूर्व ‘’ बनाने के मूड में हैं , इसलिए उन सालों को ऎसी ही सजा मिलने दो कि वो अगर अपने काम न आ सके तो विपक्षियों के भी किसी काम न आ सके | और हाँ , सुनो ! अपने इलाके में आवास तोला जैसे ही दो-चार गाँवों का और पता लगाओ ताकि वहां भी....!’’
नेताजी ने कठिन समीकरण का जो सूत्र निकाला था, वह करीब आती चुनाव तारीखों के लिए किसी पवित्र स्थल पर आंतकी बम विस्फोट से कम न था |
सुनील कुमार ‘’सजल’’

  सुनील कुमार सजल


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