शुक्रवार, 5 मई 2017

लघुव्यंग्य- शहर की सड़क

लघुव्यंग्य- शहर की सड़क
शहर की सड़क पर महीनों से काम चल रहा था |काम में ठेकेदार की लापरवाही से हफ़्तों का काम महीनों में संपन्न नहीं हो सका | जगह-जगह गड्डे , उबड़-खाबड़ तल |इस दौरान कई एक्सीडेंट भी हुए | पर प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी |  उस दिन पी.डब्लू. डी के बड़े साब उसी सड़क से गुजरे | उनकी  वेन सड़क के गड्डे में फंस गयी | साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर |विभाग सकते में आकर पूरी सहानुभूति जताने में लग गया |पर साब गुस्सा यूं नहीं उतरा |उतारा तब जब उस क्षेत्र का उपयंत्री निलंबित हुआ | आधुनिक परिभाषा में इसी को कहते प्रशासन का जागना |
     सुनील कुमार ‘’सजल’’


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