लघुव्यंग्य- शहर की सड़क
शहर की सड़क पर महीनों से काम चल रहा था |काम में ठेकेदार
की लापरवाही से हफ़्तों का काम महीनों में संपन्न नहीं हो सका | जगह-जगह गड्डे ,
उबड़-खाबड़ तल |इस दौरान कई एक्सीडेंट भी हुए | पर प्रशासन के कान में जूं तक नहीं
रेंगी | उस दिन पी.डब्लू. डी के बड़े साब
उसी सड़क से गुजरे | उनकी वेन सड़क के गड्डे
में फंस गयी | साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर |विभाग सकते में आकर पूरी सहानुभूति
जताने में लग गया |पर साब गुस्सा यूं नहीं उतरा |उतारा तब जब उस क्षेत्र का
उपयंत्री निलंबित हुआ | आधुनिक परिभाषा में इसी को कहते प्रशासन का जागना |
सुनील
कुमार ‘’सजल’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें