व्यंग्य –नकली बनाम असली
विगत दिवस सुनने को मिला कि किसी पार्टी का नकली नेता पकड़ा गया |
ताज्जुब हुआ, अभी तक तो यह सुनता रहा हूँ कि नकली अफसर पकडाते रहे हैं | अब नेता
भी नकली |खैर छोडिये |
वैसे यह ज़माना नकली का है | आजकल असली से ज्यादा नकली चल रहा है |
असली को असली कहने में भले ही लोग सकुचाएं पर नकली को असली कहने में नहीं सकुचाते
| सच कहूं अगर नकली न हो तो असली की क़द्र भी न हो |
आज देखें तो नकली ही हमारी अर्थव्यवस्था सुधारने में अहम् भूमिका
निभाता है | शायद यहाँ आपका दिमाग प्रश्नों से गूँज सकता है कि नकली व
अर्थव्यवस्था ? अरे भई , सस्ते में असली छाप मिल जाती है | सोने के जेवरातों को ले
लो | आज तोला दो तोला सोने में अच्छे-अच्छे की हैसियत जवाब दे रही है | ऐसे में
नकली स्वर्ण के जेवरात असली स्वर्ण का मजा दे रहे हैं | ऊपर से चमक जाने पर आधी
कीमत में वापसी की गारंटी भी | और क्या चाहिए आपको | नक़ल संस्कृति ने असल संस्कृति
को यूं लताड़ा जैसे दगाबाज नेता को पार्टी | आज आदमी नकली के पीछे भाग रहा है |
क्योंकि नक़ल का रास्ता सीधा , सरल व सहज होता है |
एक बार मैं कपड़ा खरीदने एक
प्रतिष्ठित दुकान में पहुंचा | दुकानदार के कर्मचारी ने पूछा – ‘ ‘ साब, आप
व्यवहार में देने के लिए खरीदना चाहते हैं या खुद के लिए |’’
‘’ व्यवहार में देने के लिए |’’ मैंने कहा |
उसने ब्रांडेड कंपनी के
नामवाला कपड़ा मेरे सामने फैला दिया |
‘’ इतना महँगा कपड़ा मत दिखाओ
मेरे भाई , मुझे सामाजिक कार्य में व्यवहार करना है | अपनी लुटिया नहीं डुबोनी है
| ‘’ मैंने कप[अदा छूकर देखते ही कहा |
वह हंसा | ‘’ ‘’ आप घबराइये नहीं साब , सस्ता है दिखने में ब्रांडेड
लग रहा है मगर....|’’
‘’ मगर....?’’
‘’ डुप्लीकेट है !’’ जब उसके
मुख से कीमत सुनी तो आश्चर्य में पद गया | इतनी कम अविश्वनीय कीमत | झट से
हमने कपड़ा पैक करवाया निकल पड़े घर की तरफ | अब व्यवहार में लेने वाला पहली धुलाई
के बाद अपना माथा पीते तो हम क्या करें | फैशन के इस दौर में गारंटी कौन देता है |
इधर हमारे मित्र चोंगालाल जी को नकली से बेहद मोह है | इसका कारण यह
है कि जमाने के चलन के साथ घाघ व्यापारी हैं | एक बार पत्नी से झगड़े पत्नी द्वारा
दिए गए धक्के से वे औंधे मुंह ऐसे गिरे कि
उनके दर्जन भर दांत झड गए | आजकल वे नकली दांत से अपने पोपले मुंह को फुलाए हुए
हैं , जो असली माफिक लगते हैं | हमने उनसे कहा- ‘’ आखिर आपका जी नहीं माना और नकली
दांत लगवा ही आए | बिलकुल असली जैसे | महंगे होंगे |’’
‘’ अरे कहाँ यार , अपनी व्यापारी बुद्धि महंगे को इजाजत कहाँ देती है
...|’ मैं उनके जवाब के बाद चुप हो गया |
अपना तो यही कहना है भाईसाब
कि यदि असली खरीदने की हैसियत न हो तो नकली सामग्री से ही काम चलाइये | आजकल असली
व नकली में फर्क करने वाले दृष्टि पारखी कहाँ रहे | आकर्षण का ज़माना है सो आप भी
आकर्षण पर टूट पड़ें |
सुनील कुमार ‘’सजल’’