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रविवार, 25 अक्तूबर 2015

लघुकथा – आधुनिक पत्नी

लघुकथा – आधुनिक पत्नी


उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थी | महीनों से बिस्तर पर पड़े-पड़े बस अपनी जिंदगी के दिन गुजार रहा था | एक दिन बड़ा निराश और चिन्ता ग्रस्त होकर पलंग पर बैठी पत्नी के सर पर हाथ फेरते हुए बोला-‘’ शीला , मेरी जिंदगी के दिन अब ज्यादा नहीं बचे हैं | मेरे जाने के बाद तुम इन दो मासूम बच्चों के साथ अपना शेष जीवन कैसे काटोगी ? ‘’ पूछते ही उसकी आँखों में आंसुओं का समंदर उमड़ पडा | ‘’
‘’ तुम इसकी तनिक भी चिन्ता मत करो | मैं वही करूँगीं , जो एक आधुनिक पत्नी करती है |’’ पति का इलाज कराते-कराते ऊब चुकी पत्नी ने कर्कश आवाज में कहा|
‘’ मतलब ?’’
‘’ ‘’ मतलब क्या .... तुम्हारे इलाज के चलते इस घर में बचा ही क्या है ...इसलिए मैंने फैसला कर लिया है ... अपनी जवानी और बच्चों के संरक्षण के लिए दूसरा विवाह करूँगीं |’’
‘’ क्या? ‘’ पति की आवाज में पीड़ा और बढ़ गयी , ‘’ इसका मतलब मेरी इस हालत का ....|’’’
‘’हाँ, मुझे ज़रा भी गम नहीं है...|’’ बीच में ही पति की बात काटकर वह वहां से उठकर चली गई |
पति को एक पल के लिए लगा जैसे पत्नी के पीछे-पीछे देह छोड़कर उसकी धड़कनें भी जा रही हैं |

            सुनील कुमार ‘’ सजल’’ 

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- आधुनिक गुरु के तर्क

व्यंग्य- आधुनिक गुरु के तर्क


पिछले दिनों सरकार ने शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए सख्त आदेश जारी किए | कारण , गिरते परीक्षा परिणाम , बदहाल शाली व्यवस्थाएं ,,लापरवाह शिक्षकों को सुधारना था | अत: दखल देने का अधिकार जनता , सरकारी अधिकारी व जनप्रतिनिधि  के हाथ में सौप दिया |
 अपने दीनदयाल मास्साब ने मास्टरी के बीस साल गुजार दिए पर ऐसी स्थिति नहीं देखि किशिक्षकों को कोल्हू का बैल बना दिया गया हो , इसलिए वे आदेश पाकर कुढ़ उठे | बोले-‘’ यार, सरकार व जनता शिक्षकों के पीछे क्यों पड़ी रहती है |
‘’ वह देश के भविष्य  का निर्माता है |’’ मित्र ने कहा |
‘’ ये तो अब पुराना नारा हो गया |’ वे बोले |
‘’ऐसे कैसे पुराना हो गया |’ मित्र का कहना था |
‘’ सही तो कह रहा हूँ | अब देश का भविष्य शिक्षक नहीं, राजनैतिक पार्टियां बनाती है | असेम्बली में अपने आदमी पहुचाती है जिसके लिए शिक्षा का कोई औचित्य नहीं है|बस बोलना व चतुर चालाकी आणि चाहिए |’’
मास्साब बोले |
‘’ फिर भी मेरा  मानना है कि शिक्षक ही देश को सुधार सकता है |’’ मित्र  बोले |
‘’ जब देश शिक्षकों से उम्मीद रखता है , फिर उसे अपना काम क्यों नहीं करने देता | उसके पीछे लाल आँख कर खडा रहता है | ‘’ मास्साब का जवाब था |
 ‘’ दरअसल , आधुनिक शिक्षक की लीलाएं अपरंपार हैं | वह आधुनिक गुरु है | उसके कारनामें भी आधुनिक हैं | मित्र बोला |
‘’ आप ठीक कहते हैं | वह भी किसी वैज्ञानिक से कम नहीं होता |’’ मास्साब ने अपने मुंह मुत्ठुबनाने की कोशिश की|
‘’ मैं यहाँ आपकी वग्यानिकता का प्रमाण नहीं देना चाहता |
‘’ तो फिर |’’
‘’ आजकल वह ऐसी करामत करता है कि देश का सर शर्म से झुक जाता है | मसलन, छात्राओं के साथ प्रेमलीला , प्रेमविवाह, रेप, अपहरण , अश्लील वीडियो क्लिपिंग का निर्माण कर अपनों को एस.एम्.एस. करता है | साईकिल , पुस्तकें , ड्रेस , नि: शुल्क वितरित की जाने वाली सामग्री में घोटाला उसका चरित्र बन गया है | आजकल वह स्कूल मास्टर न रहकर ‘’ कोचिंग मास्टर कहलाना पसंद करता है |इन सब के अलावा एक काम और करता है |’
‘’ अब उसे भी कह दो ,,.. ताकि सुन लें |’’
’’कुधन भरे स्वर में मास्साब बोले |
‘’ राजनीति|’’
‘’ काहे को बदनाम करते हो यार |
राजनीति करता तो क्या टीचर फटीचर कहलाता ? आम राजनीतिज्ञों की तरह मालामाल होकर ऐश करता ...ऐश | ‘’ मास्साब का भड़ास भरा जवाब था | तमाम प्रकार के शिक्षक संघ बनाकर राजनैतिक पार्टियों का वरदहस्त प्राप्त करता है कि नहीं | सालभर वेतन भट्टी के लिए हड़तालें , अनशन , नारेबाजी करता है कि नहीं | और इन सब से फुर्सत में रहा तो अपने शिष्यों को ‘’ एकलव्य’ आरुनी  बनाने के लिए ठुकाई |’’ मित्र ने मुस्कुराकर मास्साब को छेड़ा |
‘’ सच तो है पर | पर वह क्या करे सरकारी कर्मचारी जो ठहरा , मगर सरकार का भी दोष देखो | मास्साब ने अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश की | ‘’ उससे गैर शिक्षकीय कार्य करवाती है |’’
‘’ आपकी बात सच है | पर वह भी चालू चीज है | चार दिन के काम को दस दिन में निपटाता है, ताकि स्कूल में सर खपाना न पड़े |’’ मित्र बोले |
‘’ आप लोग हमेशा आदमी का बुरा पक्ष देखते हो | कभी अच्छाईयों पर भी विचार करो |’’
‘’ आखिर परीक्षाओं में अच्छा रिजल्ट देता है कि नहीं |’’
‘’ नक़ल कराकर |’
‘’ भाई, देश में भी तो यही यही चल रहा है | फैशन से लेकर राजनीति , भ्रष्टाचार , गिरोहबाजी है , हम आखिर दूसरे मुल्कों  की नक़ल कर सीख रहे है |’’
‘’ इसक्का मतलब नक़ल कराने के बहाने नक़ल करना सीख रहे हैं |’’
‘’ भई गुरु तो गुरु होता है | उसका फर्ज है , किस्म-किस्म का ज्ञान देकर शिष्य को हर क्षेत्र में परिपक्व बनाए | आप आप ही देखो | हमारे उद्योगों में डुपलीकेट सामग्री बनाने की चाहत कहा से पैदा हुई , नकलची चरित्र से | इसी बहाने जाने कितने को रोजगार मिला है |  हमारे अनुसार नक़ल करना बुरा नहीं है | आखिर नन्हा शिशु नक़ल कर बोलना , चलना व एनी क्रियाएं सीखता है | ‘’ मास्साब ने वजनदार तर्क दिया | मित्र महोदय चुप रहे |
मास्साब बोले –‘’ ‘’ अब बताइये साब | हमक कहाँ गलत हैं | ‘ मित्र महोदय अब चुप थे |

                           सुनील कुमार ‘’ सजल’’