व्यंग्य- कचरे में उपजी दिव्य सोच
नगर के कुछ युवाओं को नया शौक लगा |शौक था साब,साफ़-सफाई समिति गठित कर
कचरा साफ़ करने का |ऐसा नहीं कि नगर में नगर पालिका नहीं है |या अपने कर्तव्य से
विमुख हो |
जरुरी नहीं कि कचरा केवल
रद्दी सामग्री का हो |कचरा समिति की नजर में कई प्रकार के कचरे थे | मसलन
महंगाई,बेरोजगारी,अपहरण,लूटमार,रिश्वतखोरी तथा बलात्कार आदि |
समिति का निर्णय था कि कचरा तो धर का भी निकलता है | मगर यह कचरा साफ़
करना तो जरुरी होता है | तभी सफाई दिखती है |और कहते यह भी हैं जहां सफाई है ,
वहीँ लक्ष्मी वास कराती है | इसलिए समिति ने भी कचरा साफ़ करने का ठान लिया |
समिति में सदस्य जोड़े जाने लगे | सदस्यता शुल्क ली जाने लगी | कारण कि
बिना धन खर्च किये समिति नहीं चलती | न कचरा साफ़ किया जा सकता | कचरा साफ़ करने के
नाम पर चन्दा देने में लोग वैसे भी कतराते हैं | चालाकी से वसूलना पड़ता है | इसके
लिए नेताओं की बांह पकड़ना पड़ता है \ ताकि उसे यहाँ भी राजनीति दिखे और वह झट से चन्दा
दे जनता की बुद्धि छोटी होती है इसलिए वह कचरा को सिर्फ कचरा समझती है | मगर नेता
और अफसर दूर की सोचते हैं | वे जानते हैं कचरा कहाँ से आता है , कैसे आता है ,
क्यों आता है | और उसे क्यों फैलाया जाता है इसलिए वे जनहित की कैमिस्ट्री को
दिखाने के लिए चन्दा दे देते हैं | समिति का गठन जारी था | बड़े-बड़े संकल्प |
संविधान | सफाई सामग्री | बैठकें | जोश , हुंकार, चाय – नाश्ता , रोज का क्रम |
समिति में सामान्य बुद्धियों के अलावा चतुर बुद्धियाँ भी
शामिल थी | इनका काम समिति के सामान्य लोगों को आदेश देकर काम करवाना होता है |
जिस समिति में यह विशेषता नहीं पायी जाती वे समितियां बरसाती नाले के हश्र को प्राप्त
कराती हैं | समिति ने अपना काम प्रारंभ कर दिया | पता क्या जा रहा है कि नगर में
किस प्रकार का कचरा सर्वाधिक है |
बैंठकें चल रही हैं | एक चतुर
बुद्धि-‘’ यार अपने यहाँ कचरा बहुत है | इतना जटिल कचरा तो खटके से साफ़ नहीं किया
जा सकता \ सरकार से लड़ना होगा कि कचरा को साफ़ करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराये |
वर्त्तमान में अपने पास उपलब्ध संसाधन पर्याप्त नहीं है |’’
समर्थकों कि तालियाँ | नारे
जिंदाबाद| कचरा मुर्दाबाद के नारे | रोजाना यूँ ही बैठकें \
एक समय के बाद | दो
बुद्धियों में विचार – विमर्श | ‘’ देख यार समिति ने जिस प्रकार के कचरे को उठाकर
फैंकने का संकल्प लिया हैं . वह कतई ख़त्म नहीं हो सकता |’’
‘’ अबे, बेवकूफ क्यों बनाता है | यह तो देश की जनता भी जानती है |
कचरा चाहे जैसा भी हो \ वह कभी ख़त्म न होने वाले चीज है | इसके लियर तनिक भी
परेशां मत हो कि कचरा स्थायी रूप से साफ़ करना है | ‘’
‘’ पर चन्दा ... जनता बिफरे
न | समिति पर अंगुली न उठाये कि चन्दा वसूलते वक्त नेताओं की तरह सब्ज बाग़ दिखाते
हो, बाद में ...|’’
‘’ यार उसका भी उपाय है | कचरा उठाओ और उस दिशा में ले जाकर फेंक दो
जिस दिशा से कचरा आ रहा है | जनता तो तात्कालिक चमत्कार की दीवानी होती है | जनता
को समझाया जा सकता है, भाई , कचरा तो उड़ने वाली , बहाने वाली चीज है \ कुछ दिन
पहले ही उठाया था | दूर ले जाकर फैंका | मगर बदलाव की हवा क्या चली कि वह पुन:
उड़कर आ गया | अब आप बताओ क्या करें | जनता भोली है यार | तभी न इस देश में
लोकतंत्र , राजनीति, अफसरशाही व् कचरा कायम है |’’
‘’ यार तू ठीक कहता है \ पर अपन महंगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार जैसा
कचरा कैसे साफ़ करेंगे |’’
‘’ बड़ा आसान तरिका है | सत्तारूढ़ से लोगों को पटाया जाए \ उनसे
आशीर्वाद लेकर दिखावटी सफाई का तरिका अपनाने हेतु जनता के सामने आश्वासन फेंका जाए
| ठीक वैसे ही जैसे सरकार भ्रष्टाचार मिटाने का दंभ भरने के लिए सरकारी
कर्मचारियों के घर लोकायुक्त/सी.बी.आई से
छापे डलवाती है | ताकि जनता को लगे कि राज्य में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान जारी है
| मगर सता के गुरु घंटाल इस अभियान के चपेट में नहीं आते | हम भी सफाई अभियान का
यही हश्र करेंगे | यानी नेताओं के सहयोग से कचरा तो साफ़ साफ करने का दिखावटी
चलाएंगे | मगर उसी दिशा में ले जाकर फैकेंगे जहां से वह उड़कर आता है | बस इसी तरह
राजनीति वालों व् अपने लिए कचरा सफाई अभियान का मतलब बरकरार बना रहेगा |
दूसरी बुद्धि को बात समझ
में आ गयी \ आज राजनीति संगठन का भरपूर सहयोग कर रही है | संगठन विस्तार की दिशा
में बढ़ रहा है | धर्म व्यवसायी , समाज जगत की स्थानीय हस्तियाँ भी संगठन में आ गए हैं | कचरा हटाया जा रहा है
|
श्रमदान ,धनदान,बरकरार है |
फिर भी कचरा समाप्त नहीं हो रहा है | बदबू वातावरण में व्याप्त है | मगर जनता
निश्चिन्त है | कहती है – ‘’संगठन की पहल प्रशंसनीय है एक न एक दिन वह कचरा साफ़
करके रहेगी | आस पर तो दुनिया टिकी है |
सुनील कुमार ‘’सजल’’