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शनिवार, 30 मई 2015

व्यंग्य- कचरे में उपजी दिव्य सोच


व्यंग्य- कचरे में उपजी दिव्य सोच


नगर के कुछ युवाओं को नया शौक लगा |शौक था साब,साफ़-सफाई समिति गठित कर कचरा साफ़ करने का |ऐसा नहीं कि नगर में नगर पालिका नहीं है |या अपने कर्तव्य से विमुख हो |
  जरुरी नहीं कि कचरा केवल रद्दी सामग्री का हो |कचरा समिति की नजर में कई प्रकार के कचरे थे | मसलन महंगाई,बेरोजगारी,अपहरण,लूटमार,रिश्वतखोरी तथा बलात्कार आदि |
समिति का निर्णय था कि कचरा तो धर का भी निकलता है | मगर यह कचरा साफ़ करना तो जरुरी होता है | तभी सफाई दिखती है |और कहते यह भी हैं जहां सफाई है , वहीँ लक्ष्मी वास कराती है | इसलिए समिति ने भी कचरा साफ़ करने का ठान लिया |
   समिति में सदस्य जोड़े  जाने लगे | सदस्यता शुल्क ली जाने लगी | कारण कि बिना धन खर्च किये समिति नहीं चलती | न कचरा साफ़ किया जा सकता | कचरा साफ़ करने के नाम पर चन्दा देने में लोग वैसे भी कतराते हैं | चालाकी से वसूलना पड़ता है | इसके लिए नेताओं की बांह पकड़ना पड़ता है \ ताकि उसे यहाँ भी राजनीति दिखे और वह झट से चन्दा दे जनता की बुद्धि छोटी होती है इसलिए वह कचरा को सिर्फ कचरा समझती है | मगर नेता और अफसर दूर की सोचते हैं | वे जानते हैं कचरा कहाँ से आता है , कैसे आता है , क्यों आता है | और उसे क्यों फैलाया जाता है इसलिए वे जनहित की कैमिस्ट्री को दिखाने के लिए चन्दा दे देते हैं | समिति का गठन जारी था | बड़े-बड़े संकल्प | संविधान | सफाई सामग्री | बैठकें | जोश , हुंकार, चाय – नाश्ता , रोज का क्रम |
  समिति में  सामान्य बुद्धियों के अलावा चतुर बुद्धियाँ भी शामिल थी | इनका काम समिति के सामान्य लोगों को आदेश देकर काम करवाना होता है | जिस समिति में यह विशेषता नहीं पायी जाती वे समितियां बरसाती नाले के हश्र को प्राप्त कराती हैं | समिति ने अपना काम प्रारंभ कर दिया | पता क्या जा रहा है कि नगर में किस प्रकार का कचरा सर्वाधिक है |
  बैंठकें चल रही हैं | एक चतुर बुद्धि-‘’ यार अपने यहाँ कचरा बहुत है | इतना जटिल कचरा तो खटके से साफ़ नहीं किया जा सकता \ सरकार से लड़ना होगा कि कचरा को साफ़ करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराये | वर्त्तमान में अपने पास उपलब्ध संसाधन पर्याप्त नहीं है |’’
   समर्थकों कि तालियाँ | नारे जिंदाबाद| कचरा मुर्दाबाद के नारे | रोजाना यूँ ही बैठकें \
  एक समय के बाद | दो बुद्धियों में विचार – विमर्श | ‘’ देख यार समिति ने जिस प्रकार के कचरे को उठाकर फैंकने का संकल्प लिया हैं . वह कतई ख़त्म नहीं हो सकता |’’
‘’ अबे, बेवकूफ क्यों बनाता है | यह तो देश की जनता भी जानती है | कचरा चाहे जैसा भी हो \ वह कभी ख़त्म न होने वाले चीज है | इसके लियर तनिक भी परेशां मत हो कि कचरा स्थायी रूप से साफ़ करना है | ‘’
  ‘’ पर चन्दा ... जनता बिफरे न | समिति पर अंगुली न उठाये कि चन्दा वसूलते वक्त नेताओं की तरह सब्ज बाग़ दिखाते हो, बाद में ...|’’
‘’ यार उसका भी उपाय है | कचरा उठाओ और उस दिशा में ले जाकर फेंक दो जिस दिशा से कचरा आ रहा है | जनता तो तात्कालिक चमत्कार की दीवानी होती है | जनता को समझाया जा सकता है, भाई , कचरा तो उड़ने वाली , बहाने वाली चीज है \ कुछ दिन पहले ही उठाया था | दूर ले जाकर फैंका | मगर बदलाव की हवा क्या चली कि वह पुन: उड़कर आ गया | अब आप बताओ क्या करें | जनता भोली है यार | तभी न इस देश में लोकतंत्र , राजनीति, अफसरशाही व् कचरा कायम है |’’
‘’ यार तू ठीक कहता है \ पर अपन महंगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार जैसा कचरा कैसे साफ़ करेंगे |’’
‘’ बड़ा आसान तरिका है | सत्तारूढ़ से लोगों को पटाया जाए \ उनसे आशीर्वाद लेकर दिखावटी सफाई का तरिका अपनाने हेतु जनता के सामने आश्वासन फेंका जाए | ठीक वैसे ही जैसे सरकार भ्रष्टाचार मिटाने का दंभ भरने के लिए सरकारी कर्मचारियों के घर लोकायुक्त/सी.बी.आई  से छापे डलवाती है | ताकि जनता को लगे कि राज्य में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान जारी है | मगर सता के गुरु घंटाल इस अभियान के चपेट में नहीं आते | हम भी सफाई अभियान का यही हश्र करेंगे | यानी नेताओं के सहयोग से कचरा तो साफ़ साफ करने का दिखावटी चलाएंगे | मगर उसी दिशा में ले जाकर फैकेंगे जहां से वह उड़कर आता है | बस इसी तरह राजनीति वालों व् अपने लिए कचरा सफाई अभियान का मतलब बरकरार बना रहेगा |
   दूसरी बुद्धि को बात समझ में आ गयी \ आज राजनीति संगठन का भरपूर सहयोग कर रही है | संगठन विस्तार की दिशा में बढ़ रहा है | धर्म व्यवसायी , समाज जगत की स्थानीय हस्तियाँ  भी संगठन में आ गए हैं | कचरा हटाया जा रहा है | 
  श्रमदान ,धनदान,बरकरार है | फिर भी कचरा समाप्त नहीं हो रहा है | बदबू वातावरण में व्याप्त है | मगर जनता निश्चिन्त है | कहती है – ‘’संगठन की पहल प्रशंसनीय है एक न एक दिन वह कचरा साफ़ करके रहेगी | आस पर तो दुनिया टिकी है |
                          सुनील कुमार ‘’सजल’’