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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

रविवार, 28 जनवरी 2018

लघुकथा - सोच

लघु कथा - सोच
" रमेश सुना है ,आजकल तुम गरीब बस्ती बहुत दिख रहे हो । धनाढय पिता का प्रश्न  ।
"हाँ ,मैं गरीबों की मदद करने जाता हूँ ।उन्हें मुफ्त शिक्षा दे रहा हूँ ।"
" क्या मुफ्त शिक्षा ?"पिता आश्चर्य से। "नालायक मैंने इसी काम के लिए  तुझ पर  लाखों रुपये खर्च कर डिग्रियां दिलाया । अपनी चिंता कर ।कोई विशाल कान्वेंट स्कूल खोल जहां लाखो रुपये हाथ आएंगे । उन गरीबों की चिंता सरकार करे ।उसकी जिम्मेदारी है । समझा । "

शनिवार, 30 मई 2015

व्यंग्य- कचरे में उपजी दिव्य सोच


व्यंग्य- कचरे में उपजी दिव्य सोच


नगर के कुछ युवाओं को नया शौक लगा |शौक था साब,साफ़-सफाई समिति गठित कर कचरा साफ़ करने का |ऐसा नहीं कि नगर में नगर पालिका नहीं है |या अपने कर्तव्य से विमुख हो |
  जरुरी नहीं कि कचरा केवल रद्दी सामग्री का हो |कचरा समिति की नजर में कई प्रकार के कचरे थे | मसलन महंगाई,बेरोजगारी,अपहरण,लूटमार,रिश्वतखोरी तथा बलात्कार आदि |
समिति का निर्णय था कि कचरा तो धर का भी निकलता है | मगर यह कचरा साफ़ करना तो जरुरी होता है | तभी सफाई दिखती है |और कहते यह भी हैं जहां सफाई है , वहीँ लक्ष्मी वास कराती है | इसलिए समिति ने भी कचरा साफ़ करने का ठान लिया |
   समिति में सदस्य जोड़े  जाने लगे | सदस्यता शुल्क ली जाने लगी | कारण कि बिना धन खर्च किये समिति नहीं चलती | न कचरा साफ़ किया जा सकता | कचरा साफ़ करने के नाम पर चन्दा देने में लोग वैसे भी कतराते हैं | चालाकी से वसूलना पड़ता है | इसके लिए नेताओं की बांह पकड़ना पड़ता है \ ताकि उसे यहाँ भी राजनीति दिखे और वह झट से चन्दा दे जनता की बुद्धि छोटी होती है इसलिए वह कचरा को सिर्फ कचरा समझती है | मगर नेता और अफसर दूर की सोचते हैं | वे जानते हैं कचरा कहाँ से आता है , कैसे आता है , क्यों आता है | और उसे क्यों फैलाया जाता है इसलिए वे जनहित की कैमिस्ट्री को दिखाने के लिए चन्दा दे देते हैं | समिति का गठन जारी था | बड़े-बड़े संकल्प | संविधान | सफाई सामग्री | बैठकें | जोश , हुंकार, चाय – नाश्ता , रोज का क्रम |
  समिति में  सामान्य बुद्धियों के अलावा चतुर बुद्धियाँ भी शामिल थी | इनका काम समिति के सामान्य लोगों को आदेश देकर काम करवाना होता है | जिस समिति में यह विशेषता नहीं पायी जाती वे समितियां बरसाती नाले के हश्र को प्राप्त कराती हैं | समिति ने अपना काम प्रारंभ कर दिया | पता क्या जा रहा है कि नगर में किस प्रकार का कचरा सर्वाधिक है |
  बैंठकें चल रही हैं | एक चतुर बुद्धि-‘’ यार अपने यहाँ कचरा बहुत है | इतना जटिल कचरा तो खटके से साफ़ नहीं किया जा सकता \ सरकार से लड़ना होगा कि कचरा को साफ़ करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराये | वर्त्तमान में अपने पास उपलब्ध संसाधन पर्याप्त नहीं है |’’
   समर्थकों कि तालियाँ | नारे जिंदाबाद| कचरा मुर्दाबाद के नारे | रोजाना यूँ ही बैठकें \
  एक समय के बाद | दो बुद्धियों में विचार – विमर्श | ‘’ देख यार समिति ने जिस प्रकार के कचरे को उठाकर फैंकने का संकल्प लिया हैं . वह कतई ख़त्म नहीं हो सकता |’’
‘’ अबे, बेवकूफ क्यों बनाता है | यह तो देश की जनता भी जानती है | कचरा चाहे जैसा भी हो \ वह कभी ख़त्म न होने वाले चीज है | इसके लियर तनिक भी परेशां मत हो कि कचरा स्थायी रूप से साफ़ करना है | ‘’
  ‘’ पर चन्दा ... जनता बिफरे न | समिति पर अंगुली न उठाये कि चन्दा वसूलते वक्त नेताओं की तरह सब्ज बाग़ दिखाते हो, बाद में ...|’’
‘’ यार उसका भी उपाय है | कचरा उठाओ और उस दिशा में ले जाकर फेंक दो जिस दिशा से कचरा आ रहा है | जनता तो तात्कालिक चमत्कार की दीवानी होती है | जनता को समझाया जा सकता है, भाई , कचरा तो उड़ने वाली , बहाने वाली चीज है \ कुछ दिन पहले ही उठाया था | दूर ले जाकर फैंका | मगर बदलाव की हवा क्या चली कि वह पुन: उड़कर आ गया | अब आप बताओ क्या करें | जनता भोली है यार | तभी न इस देश में लोकतंत्र , राजनीति, अफसरशाही व् कचरा कायम है |’’
‘’ यार तू ठीक कहता है \ पर अपन महंगाई , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार जैसा कचरा कैसे साफ़ करेंगे |’’
‘’ बड़ा आसान तरिका है | सत्तारूढ़ से लोगों को पटाया जाए \ उनसे आशीर्वाद लेकर दिखावटी सफाई का तरिका अपनाने हेतु जनता के सामने आश्वासन फेंका जाए | ठीक वैसे ही जैसे सरकार भ्रष्टाचार मिटाने का दंभ भरने के लिए सरकारी कर्मचारियों के घर लोकायुक्त/सी.बी.आई  से छापे डलवाती है | ताकि जनता को लगे कि राज्य में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान जारी है | मगर सता के गुरु घंटाल इस अभियान के चपेट में नहीं आते | हम भी सफाई अभियान का यही हश्र करेंगे | यानी नेताओं के सहयोग से कचरा तो साफ़ साफ करने का दिखावटी चलाएंगे | मगर उसी दिशा में ले जाकर फैकेंगे जहां से वह उड़कर आता है | बस इसी तरह राजनीति वालों व् अपने लिए कचरा सफाई अभियान का मतलब बरकरार बना रहेगा |
   दूसरी बुद्धि को बात समझ में आ गयी \ आज राजनीति संगठन का भरपूर सहयोग कर रही है | संगठन विस्तार की दिशा में बढ़ रहा है | धर्म व्यवसायी , समाज जगत की स्थानीय हस्तियाँ  भी संगठन में आ गए हैं | कचरा हटाया जा रहा है | 
  श्रमदान ,धनदान,बरकरार है | फिर भी कचरा समाप्त नहीं हो रहा है | बदबू वातावरण में व्याप्त है | मगर जनता निश्चिन्त है | कहती है – ‘’संगठन की पहल प्रशंसनीय है एक न एक दिन वह कचरा साफ़ करके रहेगी | आस पर तो दुनिया टिकी है |
                          सुनील कुमार ‘’सजल’’