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रविवार, 21 जून 2015

तीन लघुकथाएं


                   तीन लघुकथाएं 

                लघुकथा – कर्मफल


बुढ़ापे के दौर में उसे बेटे ने लतियाकर घर से निकाल दिया |उसकी पीड़ा देख साथी ने कहा-‘ भैया जी कर्मफल यहीं भोगना पड़ता है | सब ईश्वर की माया है |’’
वह बोला-‘’ तुम ठीक कहते हो | मैंने दो कन्या भ्रूण का गर्भपात कराकर इसे पैदा किया था |यह उसी का कर्मफल है |’’

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                     लघुकथा- समझौता


‘’तुम्हारी पत्नी नौकरी करती है और तुम निकम्मे बने घूमते रहते हो |ऊपर से नशे का ऐब भी पाल रखा है खुद में |वह तुम्हारे इन सब ऐब को झेलकर कैसे खुश रहती होगी |’ एक ने उससे कहा |
‘’  शादी से पहले उसमें भी कई ऐसे ऐब थे जिसे लोग विवाह के मामलों में स्वीकारने से कतरा रहे थे |मैंने उन सबको अनदेखा कर उससे शादी की |इसलिए वह भी मेरे ऐब को देखकर भी मेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी जीवन जी रही है |’
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                      लघुकथा-न सही


वे चुनाव जीत गए | जीत की ख़ुशी में उन्होंने कैलेण्डर बंटवाये |कैलेण्डर में भगवान् राम के साथ उनका भी चित्र भी सन्देश सहित छापा था | किसी ने प्रति कार्यकर्ता से पूछा –‘भगवान् राम तो अपने कर्म-धर्म से मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए |मगर  क्या ये सत्ता में रहकर बन पाएंगे |’’
‘’ वह बोला-‘’ मर्यादा पुरुषोत्तम न सहीं | नेताओं में उत्तम तो बन जाएंगे |’’