व्यंग्य- सखी, प्यार और.......
इन दिनों सखी परेशान है |बेहताशा |अपनी सखी के सामने दर्द उगल नहीं पा
रही है| उसकी सखी उअसे पूछ रही है |इधर से घुमाकर ,उधर सर घुमाकर |’’ बता न री ,
का बात है | जो तू इतनी उदास व चिंतित दिख रही है |’’ सखी चुप है |का कहे | बता
नही रही | ‘’ तू इतना मुसकाती , हंसती खिलखिलाती है | मगर आज सूखे झरने की भांति
खामोश है | कहीं तुझे भी प्यार का रोग तो नहीं लग गया | काहे कि तू आजकल ब्रांडेड
कंपनी का फेस आइटम खूब इस्तेमाल कर रही है | ‘’ सखी ने उससे उगलाने के उद्देश्य से
छेड़ा |
‘’ का पहले हम फेस आइटम इस्तेमाल नहीं करते थे |’’ वह तपाक से बोली |
‘’ वो तो तू करती थी | मगर सब लोकल मेड थर्ड क्लास |’’ सखी गंवई होते
हुए भी थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेती है | वैसे ये सब शब्द कामन टाइप के हैं | सखी
पुन: बोली –‘’ अच्छा तो तुझे प्यार हो गया है न |’’
वह मुस्कुरा दी | सखी समझ गयी | उम्र का असर इस पर घुमड़ रहा है | एक
मुस्कान ही काफी हिती है प्यार के संकेत को स्पष्ट करने के लिए |’’ अच्छा , चल बता
कौन है तेरा वो ?’’
वह खोयी –खोयी मुस्कान के साथ चुप | सखी शब्दों से झिझोंडी-‘’ बोल न
री का हमसे शर्माना |’’
‘’ हैं तो वो ....पास के गाँव के |’’
‘’ कौन हैं वो ....नाम गाँव पता तो होगा उसका |’’
‘’ हम वो न बताएँगे ....|’’ वह पुन: उदास – सी खामोश बनी रही |
‘’ अच्छा.. बता तू बोलते-बोलते खामोश होकर उदास कटों हो जाती है |
कहीं उसने तेरे अन्तरंग सम्बन्ध का एस.एम्.एस तो नहीं बना लिया है | और उसे
सार्वजनिक करने की धमकी देकर तुझे ब्लेकमेल तो नहीं कर रहा है |’’
‘’वो ऐसा काहे करेंगे | हमें जीजान से प्यार करते हैं | पहली बात यह
है कि हमारे बीच ऐसे कोई सम्बन्ध बने ही नहीं | जिसका एस.एम.एस. बनाया जा सके |’’
वह बोली |
‘’ फिर तू काहे उदास हो जाती है | कुछ छिपा रही है तू | कहीं ऐसा तो
नहीं तेरा लवलेटर ...|’’
‘’ आजकल कोई लवलेटर लिखता है | फोन से काम चल जाता है जब |’’
‘’ क्या वि तुझे त्याग देने की धमकी दे रहा है ? ‘’
‘’ नहीं री , तू अपशगुन की बातें कराती है | काहे त्यागें |’’
‘’ देख री, आजकल के प्रेमी बड़े हरामी टाइप के होते हैं | इधर भी मुंह
मारते हैं | उधर भी | प्रेमी यानी कुत्ता की जात |’’
‘’ नहीं , वे न कुत्ता हैं न हरामी |’’
‘’ फिर तू काहे उदास दिखाती है |’’
‘’ सच बताऊँ |’’
‘’ बता न ,,,कब से तुझसे पूछ रही हूँ | अपना प्राइवेट एफ.एम्. स्टेशन
चालू कर | ‘’
‘’ ‘’ जब से हमने गाना सूना है रंग शर्बतों का तू मीठे घाट का पानी ... वाला | तब से हमारा मन खराब हो गया
है |’’
‘’ इसमें मन खराब होने वाली कौन सी बात है | वो तो गाना है |’’
‘’ तू का जाने प्यार में घाट कित्ता महत्त्व होता है | हमें दु:ख है कि हम
मीठे घाट का पानी काहे नहीं बने | वो तो
रंग शर्बतों का बनने को तैयार थे | आजकल खूब गाते हैं ये वाला गाना वो |’’
‘’अरी पगली घाट -पानी तो निर्जीव चीज है तू तो जीवित है | फिर वो शरवत
बनाकर बोतल में पैक हो जायेंगे क्या ?’’
‘’ निर्जीव हुआ तो क्या हुआ | पुराने जमाने में प्रेमी लोग प्यार का
इजहार करने घाट ही जाते थे | दोनों साथ
डुबकी लगाते थे | दांत साफ़ करने के बहाने नशीला मंजन दांतों पर रगड़ते हुए गप्पे
मारते | प्यार की बातें करते | मुस्कराते | प्रेमिका इसी बात को पूरा करने कपडे
धोने के बहाने घाट पर जाती | कितना नेचुरल
था | उस वक्त का प्यार | आजकल तो प्यार का सारा माहौल बनावटी हो गया , आधुनिकता के
मध्य जीकर | हर काम जल्द्वाजी में |’’ इन सब बातों को गोली मार | असली समस्या बता अपने प्यार की|’’
‘’ भगवान् हमें मीठे घाट का
पानी बना दे और उन्हें रंग शर्बतों का |’’
‘’ क्या पगली बोतल में पैक होकर बाजार में बिकोगे |’’
‘’ तू का जाने | प्यार में क्या- क्या नहीं बनाना पड़ता |’’
‘’ देख री तू गाने के बोल पर मत जा | आजकल ऐसे ही बिना सेंस वाले उलटे
– सीधे गाने चल रहे हैं | गीतकार पानी को नानी, नानी को कानी कहकर गीत लिख देते
हैं | तुकबंदी का ज़माना है | इसलिए तू रंग पानी का चक्कर छोड़ | जैसा प्यार होता है
, वैसा कर | न तो तू कभी मीठे घाट का पानी बन पाएगी और वो न रंग शर्बतों का | और
दोनों ख्याब देखते हुए कहीं ब्याह दिए जाओगे | फिर गाते रहना – दिल के टुकड़े-टुकड़े
करके मुस्कुराते चल दिए |’’
सुनील कुमार ‘’सजल’’