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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- सखी, प्यार और.......

व्यंग्य- सखी, प्यार और.......


इन दिनों सखी परेशान है |बेहताशा |अपनी सखी के सामने दर्द उगल नहीं पा रही है| उसकी सखी उअसे पूछ रही है |इधर से घुमाकर ,उधर सर घुमाकर |’’ बता न री , का बात है | जो तू इतनी उदास व चिंतित दिख रही है |’’ सखी चुप है |का कहे | बता नही रही | ‘’ तू इतना मुसकाती , हंसती खिलखिलाती है | मगर आज सूखे झरने की भांति खामोश है | कहीं तुझे भी प्यार का रोग तो नहीं लग गया | काहे कि तू आजकल ब्रांडेड कंपनी का फेस आइटम खूब इस्तेमाल कर रही है | ‘’ सखी ने उससे उगलाने के उद्देश्य से छेड़ा |
‘’ का पहले हम फेस आइटम इस्तेमाल नहीं करते थे |’’ वह तपाक से बोली |
‘’ वो तो तू करती थी | मगर सब लोकल मेड थर्ड क्लास |’’ सखी गंवई होते हुए भी थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेती है | वैसे ये सब शब्द कामन टाइप के हैं | सखी पुन: बोली –‘’ अच्छा तो तुझे प्यार हो गया है न |’’
वह मुस्कुरा दी | सखी समझ गयी | उम्र का असर इस पर घुमड़ रहा है | एक मुस्कान ही काफी हिती है प्यार के संकेत को स्पष्ट करने के लिए |’’ अच्छा , चल बता कौन है तेरा वो ?’’
वह खोयी –खोयी मुस्कान के साथ चुप | सखी शब्दों से झिझोंडी-‘’ बोल न री का हमसे शर्माना |’’
‘’ हैं तो वो ....पास के गाँव के |’’
‘’ कौन हैं वो ....नाम गाँव पता तो होगा उसका |’’
‘’ हम वो न बताएँगे ....|’’ वह पुन: उदास – सी खामोश बनी रही |
‘’ अच्छा.. बता तू बोलते-बोलते खामोश होकर उदास कटों हो जाती है | कहीं उसने तेरे अन्तरंग सम्बन्ध का एस.एम्.एस तो नहीं बना लिया है | और उसे सार्वजनिक करने की धमकी देकर तुझे ब्लेकमेल तो नहीं कर रहा है |’’
‘’वो ऐसा काहे करेंगे | हमें जीजान से प्यार करते हैं | पहली बात यह है कि हमारे बीच ऐसे कोई सम्बन्ध बने ही नहीं | जिसका एस.एम.एस. बनाया जा सके |’’ वह बोली |
‘’ फिर तू काहे उदास हो जाती है | कुछ छिपा रही है तू | कहीं ऐसा तो नहीं तेरा लवलेटर ...|’’
‘’ आजकल कोई लवलेटर लिखता है | फोन से काम चल जाता है जब |’’
‘’ क्या वि तुझे त्याग देने की धमकी दे रहा है ? ‘’
‘’ नहीं री , तू अपशगुन की बातें कराती है | काहे त्यागें |’’
‘’ देख री, आजकल के प्रेमी बड़े हरामी टाइप के होते हैं | इधर भी मुंह मारते हैं | उधर भी | प्रेमी यानी कुत्ता की जात |’’
‘’ नहीं , वे न कुत्ता हैं न हरामी |’’
‘’ फिर तू काहे उदास दिखाती है |’’
‘’ सच बताऊँ |’’
‘’ बता न ,,,कब से तुझसे पूछ रही हूँ | अपना प्राइवेट एफ.एम्. स्टेशन चालू कर | ‘’
‘’ ‘’ जब से हमने गाना सूना है रंग शर्बतों का तू मीठे घाट  का पानी ... वाला | तब से हमारा मन खराब हो गया है |’’
‘’ इसमें मन खराब होने वाली कौन सी बात है | वो तो गाना है |’’
‘’ तू का जाने प्यार में घाट  कित्ता महत्त्व होता है | हमें दु:ख है कि हम मीठे घाट  का पानी काहे नहीं बने | वो तो रंग शर्बतों का बनने को तैयार थे | आजकल खूब गाते हैं ये वाला गाना वो |’’
‘’अरी पगली घाट -पानी तो निर्जीव चीज है तू तो जीवित है | फिर वो शरवत बनाकर बोतल में पैक हो जायेंगे क्या ?’’
‘’ निर्जीव हुआ तो क्या हुआ | पुराने जमाने में प्रेमी लोग प्यार का इजहार करने घाट  ही जाते थे | दोनों साथ डुबकी लगाते थे | दांत साफ़ करने के बहाने नशीला मंजन दांतों पर रगड़ते हुए गप्पे मारते | प्यार की बातें करते | मुस्कराते | प्रेमिका इसी बात को पूरा करने कपडे धोने के बहाने घाट  पर जाती | कितना नेचुरल था | उस वक्त का प्यार | आजकल तो प्यार का सारा माहौल बनावटी हो गया , आधुनिकता के मध्य जीकर | हर काम जल्द्वाजी में |’’ इन सब बातों को गोली मार | असली समस्या  बता अपने प्यार की|’’
‘’ भगवान् हमें मीठे घाट  का पानी बना दे और उन्हें रंग शर्बतों का |’’
‘’ क्या पगली बोतल में पैक होकर बाजार में बिकोगे |’’
‘’ तू का जाने | प्यार में क्या- क्या नहीं बनाना पड़ता |’’
‘’ देख री तू गाने के बोल पर मत जा | आजकल ऐसे ही बिना सेंस वाले उलटे – सीधे गाने चल रहे हैं | गीतकार पानी को नानी, नानी को कानी कहकर गीत लिख देते हैं | तुकबंदी का ज़माना है | इसलिए तू रंग पानी का चक्कर छोड़ | जैसा प्यार होता है , वैसा कर | न तो तू कभी मीठे घाट का पानी बन पाएगी और वो न रंग शर्बतों का | और दोनों ख्याब देखते हुए कहीं ब्याह दिए जाओगे | फिर गाते रहना – दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुस्कुराते चल दिए |’’

                सुनील कुमार ‘’सजल’’