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शुक्रवार, 29 मई 2015

लघुव्यंग्य – पहुँच


                      लघुव्यंग्य – पहुँच



दफ्तर में आज अधिकारी नहीं थे | अत: कर्मचारीगण भी फाइलों को दरकिनार कर्र बरामदा में बैठे गप्पबाजी में अपना टाइम पास कर रहे थे |अचानक उनकी चर्चा में ‘चरित्र’ आ गया | उसी विषय पर चर्चा होने लगी |
 इतने में एक भिखारी आया | भीख में उसे तो-तीन रुपये मिल गए | धुप तेज थी , इसलिए कुछ देर सुस्ताने के मकसद से वहां बैठकर वह उनकी बातें सुनाने लगा |

शर्मा जी ने विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा – ‘’ भाई !  रिया को ही देख लो | पूरे क्षेत्र के लोग जानते हैं कि नेता व् अफसरों से किस तरह के संबंध हैं उसके | अपनी देह का सब कुछ अर्पित कर देती है ...| पिछली बार बड़े कार्यालय से गाँव के लिए कितने सारे विकास कार्य लेकर आई थी .... और यह सब अपनी ‘’ त्रिया चरित्र’’ का फार्मूला अपनाकर किया था |’’ सारे  कर्मचारी हाँ में हाँ मिलाकर बातों का मजा ले रहे थे | शर्माजी आगे बोले ‘’ अभी हाल की बात है सरपंच जिस राहत कार्य की मांग को लेकर बड़े कार्यालय के दो माह से चक्कर काट रहा था , उस रिया ने उनका साथ देकर दो दिन में गाँव में राहत कार्य खुलवा दिए | जबकि सब जानते हैं उसके पास कोई राजनैतिक पद नहीं है | फिर भी इतनी पहुँच....|’’
बीच में ही मलिककह उठा- ‘’ साली बड़ी हस्तियों के बिस्तर पर....खेलती होगी |’’
 ‘’ और नहीं तो क्या..... |’’ शर्मा अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाया कि बहुत देर से सुन रहा वहीँ खडा भिखारी नुमा व्यक्ति बोल पडा –‘’ साब जी !आप भूल  रहे हैं बात छोटे स्तर कि या बड़े स्तर की हर जगह की राजनैतिक व् प्रशासनिक व्यवस्थाएं ‘’ पामेला’ व् मोनिका जैसी औरतों के इशारों पर नाच रहीं हैं | जिनके बदन से उड़ाते मधुर पसीने की नशीली गंध से मदमस्त हो चुका है ‘’पहुँच’ का पूरा वातावरण तो फिर अधिकारी कौन से खेत कि मूली हैं ? आखिर हैं तो साधारण इंसान न | सबकी प्रश्नात्मक दृष्टि अब भिकारी की ओर....थी |
 सुनील कुमार’’सजल’’