व्यंग्य – पति यानि ‘’ श्रीमान पालतू’
लम्बे समय से जेल में कैद घोटालेबाज नेता को कोर्ट से जमानत मिलने पर
जनता व चमचे ,नवयुवती को सुयोग्य वर मिलने पर परिजन व रिश्तेदार ,किसी लेखक की नवप्रकाशित
कृति बिक जाए तो मित्र व पाठक गण खुशी से फूले नहीं समाते | मगर पति नामक प्राणी
को कभी कहीं से ख़ुशी मिल जाए तो उसे खुश देखकर पत्नी का मुंह फूल जाता है | पति का
खुश होना गृहस्थ जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी है | वह अनेक शंकाओं के कटघरे से घिर
जाता है | आखिर वह खुश हुआ तो क्यों हुआ ? कहीं बाहर वाली से कोई चक्कर तो नहीं ? पत्नी
ऐसे ही अनेक आधारहीन प्रश्नों की गर्म रेत पर छटपटाती है |
गृहस्थी के संविधान में पति
का खुश होना क्या अपराधिक घटना है ? क्या वह हमेशा रुआंसा मुंह लिए बैठा बेचारा
बना रहे ? पति खुद नहीं समझ पाता कि वह
क्या करे ?
पति के खुश चहरे को देखकर
पत्नी का व्यंग्यबाण यूँ चलता है –‘’ क्यों जी , पहले तो तुम्हारा चेहरा गुड आटे के
बने बाबरा जैसा फूला-फूला रहता था | भौहें सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रहती, आवाज मिमियाती |घर
में आकर दुम हिलाने वाले मरियल कुत्ते की भाँती रहते थे | पर चंद रोज से देख रही
हूँ आप हद से ज्यादा खुश दिख रहे हैं |
अपनी ख़ुशी की हद पार करने
वाला पति उसे बड़े धैर्यपूर्वक समझता है –‘’ नहीं डार्लिंग , मुझे प्रमोशन मिलने
वाला है | (अन्य प्रकार के लाभ भी हो सकते
हैं )’’
‘’इत्ती सी बात पर इतने
ज्यादा खुश दिखो, मुझे तो शंका है | ऐसे लाभ तो तुम्हे पहले भी मिल चुके हैं |
पहले ऐसे नहीं दिखे जैसा कि आज दिख रहे हों |’ पत्नी पुन: प्रश्नों व शंकाओं की
अँगुलियां नचाती है इस पर पति बेचारे या तो चिडचिडाहट से भर जाते हैं या फिर कौन
अपना माथा चटवाये की सोच पर खामोश हो जाते
हैं | उनकी चिडचिडाहट या खामोशी उसे और शंकाओं की भंवर की ओर ले जाती है |
एक दिन हमारी पत्नी ने हमसे
कहा-‘’ तुम्हारा चेहरा घर में घुसने के साथ गुस्से में क्यों दिखाई देता है | शादी
के बाद से अब तक तुम्हें खुशनुमा सहारे के शाथ नहीं देखा |’’
‘’ तो क्या करूँ .....रावण
जैसे ठहाके लगाते हुए घर में प्रवेश करूँ |’’हमारा जवाब था |
‘’ ठहाके लगाओ न लगाओ पर
मुसकाते हुए तो घर आओ |’’ पत्नी बोली |
‘’ मेरी मुस्कराहट भी तो
तुम्हारे लिए शक की दीवार है |’’
‘’ न ... अब नहीं करूंगी
शक?’’ पत्नी ने कहा |
पत्नी के वायदे पर हमने विश्वास किया | पति के नजर में पत्नी भले ही
विश्वसनीय होती है | पर पत्नी कि नजर में पति कभी विश्वसनीय नहीं हो सकता |
आखिरकार उसका शक चंद रोज बाद
पुन: जागृत हुआ | उसने एक दिन हमारे सामने शक का बेलन घुमाते हुए कह दिया | ‘’
मैंने आपको इतना भी खुश दिखने को नहीं कहा था कि ख़ुशी की मर्यादा ही टूट जाए |’’
‘’ मतलब ? ‘’ हम चौकें |
‘’ पड़ोस में चर्चा बनें हो |
आजकल तुम अपनी उम्र से आधी उम्र की लड़कियों से खूब हंस-हंस कर बातें करते हो |
नजरें गडाते हो | शायरी इत्यादि भी छेड़ते हो | हमारी छूट से तुममें पुन: प्रेम कवित्व के गुण अंकुरित होने लगे
क्या ?’’ पत्नी तीखे स्वर में बोली |
‘’ अरी पगली ... तुम्ही कहती हो खुश दिखो.. खुश दिखने के लिए हंसी
बोलचाल कर लिया तो फिर ...?’’ हम बोले |
‘’ तुम पतिजात में यही बुराई होती है |ज़रा –सी भी राहत स्वरूप आजादी
की हरी झंडी मिली नहीं कि अपने चरित्र की औकात भूल जाते हो | कुत्तेगिरी में उतर
जाते हो | कुत्ते भी भी वफादार होते हैं | मगर तुम लोग |’’ तेजतर्रार पत्नी का
आक्रोश शब्दों में स्पष्ट था |
एक सीधे सादे पति के नाते
मैंने उसे समझाने का प्रयास किया |
‘ डार्लिंग, बात ऐसी नहीं है
....|’’
‘’ तो कैसी बात है |’’ पत्नी का स्वर बिजली चमकने जैसा था |
वैसे ईश्वर यहाँ अन्याय
करता है | तेज तर्रार पत्नी के साथ सीधे सादे पति को भिडाता है
| जैसे कि हम | हमने कहा –‘’ दरअसल इन दिनों सहकर्मियों के बीच
एस.एम्.एस. चुटकुले खूब कहे जा रहे हैं | वे अक्सर याद आते हैंतो मुस्कुरा लेते हैं
|
‘’ चुटकुले सुनते होगें न ... मगर तुम तो शायरी सुनाने में फ़िदा हो |
जानती हूँ अच्छे-अच्छे शायरों को जानती हूँ , वे शायर कैसे बने ?’
अंतत: निर्णय कर हमने अपना
रुख बदल दिया | पुरानी औकात में आ गए | तब कहीं जाकर पत्नी को रहत मिली | बोली-‘
आजकल के मर्दों में वह प्राचीन मर्यादा
नहीं रही कि औरत या लड़की इस तरफ से गुजरे तो मुंह उस तरफ फेर लें | अब तो ऐसे घूरकर
देखते हैं जैसे सॉस लगाकर चट कर जायेंगे |”मैं चुप रहा |
मैं ऐसे अनेक लेखकों की
किताबें पढ़ चुका हूँ सफल पति बनाने के चक्कर मैं , जो खुद निजी जिंदगी में असफल
पति रहे हैं |
शादी के पूर्व पति जितना
आजाद होता है दाम्पत्य जीवन में आते ही उतनी गुलामी से घिर जाता है | गुलामी
दाम्पत्य जीवन की पहली सजा है | गुलाम पति ही पत्नी की नजर में शरीफ इंसान होता है
| मेरी दोस्त की तरह सहकर्मी लड़की ने विवाह के सम्बन्ध में कहा –‘’ मैं ऐसे लडके
से शादी करूँगीं जो नौकरी होने के साथ विकलांग हो |’’
मैंने कहा –‘’ नौकरी पेशा
वाली बात तो पाच रही पर साथ में विकलांगता ....?आजकल की लड़कियां तो सबकुछ ठीक-ठाक
होते हुए भी रंग को लेकर लड़कों को अस्वीकृत कर देती हैं | मगर तुम्हारी सोच तो
सबसे परे समझ में आती है |’’ मैंने कहा |
वह बोली –‘’ देखो यार मैं
पूरी आजादी से रहना चाहती हूँ विकलांग पति मुझ पर आश्रित रहेगा | वह यहाँ-वहां ऐसी
वैसी हरकत करने से भी कतरायेगा | कतरायेगा क्या महिलायें उसे वैसे भी चारा नहीं
डालेंगी | और मैं पूरी तरह पति की खैर खबर लेने से निश्चिन्त रहूँगी | वह उलटा
मेरा गुलाम बनाकर जीएगा |’’
उसकी सोच ने मुझे खामोश
रहने को मजबूर कर दिया |
सुनील
कुमार ‘सजल’