शुक्रवार, 5 जून 2015

व्यंग्य – पति यानि ‘’ श्रीमान पालतू’


व्यंग्य – पति यानि  ‘’ श्रीमान पालतू’


लम्बे समय से जेल में कैद घोटालेबाज नेता को कोर्ट से जमानत मिलने पर जनता व चमचे ,नवयुवती को सुयोग्य वर मिलने पर परिजन व रिश्तेदार ,किसी लेखक की नवप्रकाशित कृति बिक जाए तो मित्र व पाठक गण खुशी से फूले नहीं समाते | मगर पति नामक प्राणी को कभी कहीं से ख़ुशी मिल जाए तो उसे खुश देखकर पत्नी का मुंह फूल जाता है | पति का खुश होना गृहस्थ जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी है | वह अनेक शंकाओं के कटघरे से घिर जाता है | आखिर वह खुश हुआ तो क्यों हुआ ? कहीं बाहर वाली से कोई चक्कर तो नहीं ? पत्नी ऐसे ही अनेक आधारहीन प्रश्नों की गर्म रेत पर छटपटाती है |
  गृहस्थी के संविधान में पति का खुश होना क्या अपराधिक घटना है ? क्या वह हमेशा रुआंसा मुंह लिए बैठा बेचारा बना रहे ? पति खुद नहीं समझ पाता  कि वह क्या करे ?
   पति के खुश चहरे को देखकर पत्नी का व्यंग्यबाण यूँ चलता है –‘’ क्यों जी , पहले तो तुम्हारा चेहरा गुड आटे के बने बाबरा जैसा फूला-फूला रहता था | भौहें सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रहती, आवाज मिमियाती |घर में आकर दुम हिलाने वाले मरियल कुत्ते की भाँती रहते थे | पर चंद रोज से देख रही हूँ आप हद से ज्यादा खुश दिख रहे हैं |
    अपनी ख़ुशी की हद पार करने वाला पति उसे बड़े धैर्यपूर्वक समझता है –‘’ नहीं डार्लिंग , मुझे प्रमोशन मिलने वाला है  | (अन्य प्रकार के लाभ भी हो सकते हैं )’’
    ‘’इत्ती सी बात पर इतने ज्यादा खुश दिखो, मुझे तो शंका है | ऐसे लाभ तो तुम्हे पहले भी मिल चुके हैं | पहले ऐसे नहीं दिखे जैसा कि आज दिख रहे हों |’ पत्नी पुन: प्रश्नों व शंकाओं की अँगुलियां नचाती है इस पर पति बेचारे या तो चिडचिडाहट से भर जाते हैं या फिर कौन अपना माथा चटवाये  की सोच पर खामोश हो जाते हैं | उनकी चिडचिडाहट या खामोशी उसे और शंकाओं की भंवर की ओर ले जाती है |
  एक दिन हमारी पत्नी ने हमसे कहा-‘’ तुम्हारा चेहरा घर में घुसने के साथ गुस्से में क्यों दिखाई देता है | शादी के बाद से अब तक तुम्हें खुशनुमा सहारे के शाथ नहीं देखा |’’
 ‘’ तो क्या करूँ .....रावण जैसे ठहाके लगाते हुए घर में प्रवेश करूँ |’’हमारा जवाब था |
  ‘’ ठहाके लगाओ न लगाओ पर मुसकाते हुए तो घर आओ |’’ पत्नी बोली |
   ‘’ मेरी मुस्कराहट भी तो तुम्हारे लिए शक की दीवार है |’’
   ‘’ न ... अब नहीं करूंगी शक?’’ पत्नी ने कहा |
पत्नी के वायदे पर हमने विश्वास किया | पति के नजर में पत्नी भले ही विश्वसनीय होती है | पर पत्नी कि नजर में पति कभी विश्वसनीय नहीं हो सकता |
आखिरकार उसका शक चंद  रोज बाद पुन: जागृत हुआ | उसने एक दिन हमारे सामने शक का बेलन घुमाते हुए कह दिया | ‘’ मैंने आपको इतना भी खुश दिखने को नहीं कहा था कि ख़ुशी की मर्यादा ही टूट जाए |’’
‘’ मतलब ? ‘’ हम चौकें |
 ‘’ पड़ोस में चर्चा बनें हो | आजकल तुम अपनी उम्र से आधी उम्र की लड़कियों से खूब हंस-हंस कर बातें करते हो | नजरें गडाते हो | शायरी इत्यादि भी छेड़ते हो | हमारी छूट से तुममें  पुन: प्रेम कवित्व के गुण अंकुरित होने लगे क्या ?’’  पत्नी तीखे स्वर में बोली |
‘’ अरी पगली ... तुम्ही कहती हो खुश दिखो.. खुश दिखने के लिए हंसी बोलचाल कर लिया तो फिर ...?’’ हम बोले |
‘’ तुम पतिजात में यही बुराई होती है |ज़रा –सी भी राहत स्वरूप आजादी की हरी झंडी मिली नहीं कि अपने चरित्र की औकात भूल जाते हो | कुत्तेगिरी में उतर जाते हो | कुत्ते भी भी वफादार होते हैं | मगर तुम लोग |’’ तेजतर्रार पत्नी का आक्रोश शब्दों में स्पष्ट था |
  एक सीधे सादे पति के नाते मैंने उसे समझाने का प्रयास किया |
  ‘ डार्लिंग, बात ऐसी नहीं है ....|’’
‘’ तो कैसी बात है |’’ पत्नी का स्वर बिजली चमकने जैसा था |
   वैसे ईश्वर यहाँ अन्याय करता है | तेज तर्रार पत्नी के साथ सीधे सादे पति को भिडाता है
| जैसे कि हम | हमने कहा –‘’ दरअसल इन दिनों सहकर्मियों के बीच एस.एम्.एस. चुटकुले खूब कहे जा रहे हैं | वे अक्सर याद आते हैंतो मुस्कुरा लेते हैं |
‘’ चुटकुले सुनते होगें न ... मगर तुम तो शायरी सुनाने में फ़िदा हो | जानती हूँ अच्छे-अच्छे शायरों को जानती हूँ , वे शायर कैसे बने ?’
 अंतत: निर्णय कर हमने अपना रुख बदल दिया | पुरानी औकात में आ गए | तब कहीं जाकर पत्नी को रहत मिली | बोली-‘ आजकल  के मर्दों में वह प्राचीन मर्यादा नहीं रही कि औरत या लड़की इस तरफ से गुजरे तो मुंह उस तरफ फेर लें | अब तो ऐसे घूरकर देखते हैं जैसे सॉस लगाकर चट कर जायेंगे |”मैं चुप रहा |
  मैं ऐसे अनेक लेखकों की किताबें पढ़ चुका हूँ सफल पति बनाने के चक्कर मैं , जो खुद निजी जिंदगी में असफल पति रहे हैं |
  शादी के पूर्व पति जितना आजाद होता है दाम्पत्य जीवन में आते ही उतनी गुलामी से घिर जाता है | गुलामी दाम्पत्य जीवन की पहली सजा है | गुलाम पति ही पत्नी की नजर में शरीफ इंसान होता है | मेरी दोस्त की तरह सहकर्मी लड़की ने विवाह के सम्बन्ध में कहा –‘’ मैं ऐसे लडके से शादी करूँगीं जो नौकरी होने के साथ विकलांग हो |’’
  मैंने कहा –‘’ नौकरी पेशा वाली बात तो पाच रही पर साथ में विकलांगता ....?आजकल की लड़कियां तो सबकुछ ठीक-ठाक होते हुए भी रंग को लेकर लड़कों को अस्वीकृत कर देती हैं | मगर तुम्हारी सोच तो सबसे परे समझ में आती है |’’ मैंने कहा |
   वह बोली –‘’ देखो यार मैं पूरी आजादी से रहना चाहती हूँ विकलांग पति मुझ पर आश्रित रहेगा | वह यहाँ-वहां ऐसी वैसी हरकत करने से भी कतरायेगा | कतरायेगा क्या महिलायें उसे वैसे भी चारा नहीं डालेंगी | और मैं पूरी तरह पति की खैर खबर लेने से निश्चिन्त रहूँगी | वह उलटा मेरा गुलाम बनाकर जीएगा |’’
   उसकी सोच ने मुझे खामोश रहने को मजबूर कर दिया |
                        सुनील कुमार ‘सजल’

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