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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

व्यंग्य – उसका रावण अपुन के रावण से भयंकर क्यों......

व्यंग्य – उसका रावण अपुन के रावण से भयंकर क्यों......


लो साब नवरात्र भी जाने को है | दशहरा आ गया | वाही दशहरा जिसमें रावण जैसा पुतला जलाया जाता है | तथाकथित राम वेशधारी के हाथों | रावण भी खुश होता होगा | हर वर्ष इसी तरह देखता होगा | सोचता होगा ‘’ कितने मूर्ख टाइप के यार, धरती के लोग | मेरी अनुकृति को जलाकर ताली पीटते हैं | बिलकुल बबुआ टाइप की हरकत....| सरोजनी प्रीतम की कविता ‘’ इंसान गलतियों का पुतला है ‘’ इसलिए पुतले जला दिए | मूर्ख टाइप लोग |रावण तो मारा गया | युग परिवर्तन के साथ कित्ते रावण मारे जाते रहे | मगर पुतला तो उसी का जलाया है जो राम युग में था |
 साब, दशहरा करीब है |तैयारी जोरो पर है | जगाधर दुर्गा समिति , मार्डन दुर्गा समिति व तिराहा रामलीला समिति में बड़ा काम्पिटिशन सा मचा है इस बार | तीनो गुट के लोग एक-दूसरे की जासूसी में लगे हैं | गुपचुप तरीके से |
‘’ देखो उन हरामखोरों के रावण में क्या नया जुदा है | तनिक पता करना बे ...| बेवकूफ अबकी बार अपना रावण शहर की शान होना चाहिए ... समझे | स्साले पिछले बार वो लोग बाजी मार गए थे | अबकी बार अपन को जंग जीतनी है | यह जरूर पता कर लेना बबुआ .... रावण के हाथ सर में कौन सी कंपनी की आतिशबाजी लगा रहे हैं वो लोग | साइज –वाइज का भी ठीक-ठाक अंदाजा कर लेना | ताकि अपना रावण उनके रावण के आगे टिंगू न लगे | साले अपन लोग पिछली बार यहीं तो चूक गए थे | अबे पैसा जीतता लगे लगाओ रावण निर्माण में | राम समर्थक पार्टी वालों ने भी दुर्गा मां के नाम से अपने को जमकर चन्दा देकर पुण्य कमाया है | हाँ , इत्ता जरूर ध्यान रखना बे .... उअनाकी पार्टी –वार्टी का बैनर जरूर लगा देना | दहन स्थल पर | ताकि कहने को न हो कि हमने चन्दा दिया और हमें ही भूल गए चुनाव के वक्त ..... सबके लिए सोचना पड़ता है |’’ दादा टाइप लोग ऐसे ही तो समझाते हैं अधीनस्थों को | 
  दूसरी समिति में भी कुछ ऐसी ही बातें चल रही है –
‘’ अबे मल्लू , तू देखते रहना | बनते रावण पर नजर रखना | तू तो साले इंजीनियरिंग की पढाई किया है न | हर पैमाने से देखते रहना | कहीं रावण का ‘’ सेपवा’’ बिगड़ न जाए | किए कराए पर पानी फिर जाएगा बे |’’ दादा टाइप व्यक्ति अपने अधीनस्थ को समझा रहा है |
‘’ पर दादा , बरसात  होने के लक्षण वैसे भी दिख रहे हैं |’’
‘’ अबे चुप , सयाना मत बन | जीतता कहता हूँ उत्ता कर, नाप-जोख ठीक-ठाक रखना | ‘’
‘’ एक बात कहूं |’’
‘’ कह न बे ....| रावण के नाम पर सबकुछ सुनने को तैयार हैं अपन |’’
‘’ अगर मेरी बजाय हल्लू को यह काम सौपते तो बेहतर होता | काहे की ... वो मेडिकल की पढाई कर रखा है |’’
‘’ अबे का उसमें जान फूंकना है जो हल्लू को सौंप दूं |’’
‘’दादा .....|’ अभी वह कुछ कहता कि......|
‘’ चुप.... काम चोरी मुझे पसंद नहीं |’’ मल्लू खामोश हो गया |
आजकल दबंग टाइप लोगों के भरोसे रावण बनते  हैं और समिति चलती है |लल्लू टाइप लोग दूसरे काम जैसे प्रसाद वितरण , मुहल्ले की लड़कियां किस तरफ बैठी हैं ... उन्हें दादा की तरफ से ठंडा , चाय पिलाना जैसी व्यवस्था रामलीला में देखते हैं |
साब, समितियां हैं | समिति के अन्दर समिति है | मुझे इसलिए ऐसा कहना पड़ा रहा है | एक समिति जो पूरे समय दुर्गा जी की सेवा में व्यस्त रहती है भक्त टाइप लोगों की | दूसरी वसूली में लगी रहती है जो जेब खर्च का जुगाड़ कर लेती है चन्दा राशि से | तीसरी होती है दादा टाइप लोगों की | जिनका काम सिर्फ दादागिरी से लोगों से काम निकलना रहता है | इनका दिमाग वैसे भी अत: शाम होते ही चन्दा की राशि से दारू पानी के जुगाड़ में लग जाते हैं | इन दिनों मुर्गा चबाने से भी कोई परहेज नहीं होता इन्हें | किसी ने तीसरी टाइप की समिति से प्रश्न किया – ‘’ काय , भैया नवरात्रि में भी खाते पीते हो यार....|’’
दबंग टाइप लोगों का जवाब भी दबंग टाइप होता है –‘’ कल का देखा शीतला मंदिर चार बकरा की बलि चढ़ा दी गयी | और सब प्रसाद के रूप में ले गए मटन को | अरे देवी भक्त .....पहले देवी को समझा कि वह बकरा लेना बंद करे | फिर तो हम भी सुधर जायेंगे | समझ में आया के....|’’
‘’ साब , आप नाहक खुश होते हैं रावण दहन  पर | तनिक सोचिए तो आज रावण धरती पर इत्ते हो गए हैं | रावण अगर चाहता तो भी इत्ती संतान पैदा न कर पाटा | आधुनिक रावण उस युगीन रावण की पहचान की ऎसी-तैसी करने में लगे हैं | बेचारा नाहक बदनाम हो रहा है |
 मजे की बात तो यह साब, जो खुद इन्म्सान की शक्ल में रावण है , वह रावण का पुतला दहन कर ताली बजा रहा है , खुद को राम साबित करते हुए मर्यादा का प्रवचन दे रहा है | अगर सचमुच वाला रावण होता तो शायद वो इतना कष्टकारी न होता जितने आज के रावण हैं | तुलनात्मक रूप से वो रावण बेहतर था या ये रावण हैं | आप ही बताएं ....साब |
      सुनील कुमार ‘’सजल’’


शुक्रवार, 5 जून 2015

व्यंग्य – पति यानि ‘’ श्रीमान पालतू’


व्यंग्य – पति यानि  ‘’ श्रीमान पालतू’


लम्बे समय से जेल में कैद घोटालेबाज नेता को कोर्ट से जमानत मिलने पर जनता व चमचे ,नवयुवती को सुयोग्य वर मिलने पर परिजन व रिश्तेदार ,किसी लेखक की नवप्रकाशित कृति बिक जाए तो मित्र व पाठक गण खुशी से फूले नहीं समाते | मगर पति नामक प्राणी को कभी कहीं से ख़ुशी मिल जाए तो उसे खुश देखकर पत्नी का मुंह फूल जाता है | पति का खुश होना गृहस्थ जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी है | वह अनेक शंकाओं के कटघरे से घिर जाता है | आखिर वह खुश हुआ तो क्यों हुआ ? कहीं बाहर वाली से कोई चक्कर तो नहीं ? पत्नी ऐसे ही अनेक आधारहीन प्रश्नों की गर्म रेत पर छटपटाती है |
  गृहस्थी के संविधान में पति का खुश होना क्या अपराधिक घटना है ? क्या वह हमेशा रुआंसा मुंह लिए बैठा बेचारा बना रहे ? पति खुद नहीं समझ पाता  कि वह क्या करे ?
   पति के खुश चहरे को देखकर पत्नी का व्यंग्यबाण यूँ चलता है –‘’ क्यों जी , पहले तो तुम्हारा चेहरा गुड आटे के बने बाबरा जैसा फूला-फूला रहता था | भौहें सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रहती, आवाज मिमियाती |घर में आकर दुम हिलाने वाले मरियल कुत्ते की भाँती रहते थे | पर चंद रोज से देख रही हूँ आप हद से ज्यादा खुश दिख रहे हैं |
    अपनी ख़ुशी की हद पार करने वाला पति उसे बड़े धैर्यपूर्वक समझता है –‘’ नहीं डार्लिंग , मुझे प्रमोशन मिलने वाला है  | (अन्य प्रकार के लाभ भी हो सकते हैं )’’
    ‘’इत्ती सी बात पर इतने ज्यादा खुश दिखो, मुझे तो शंका है | ऐसे लाभ तो तुम्हे पहले भी मिल चुके हैं | पहले ऐसे नहीं दिखे जैसा कि आज दिख रहे हों |’ पत्नी पुन: प्रश्नों व शंकाओं की अँगुलियां नचाती है इस पर पति बेचारे या तो चिडचिडाहट से भर जाते हैं या फिर कौन अपना माथा चटवाये  की सोच पर खामोश हो जाते हैं | उनकी चिडचिडाहट या खामोशी उसे और शंकाओं की भंवर की ओर ले जाती है |
  एक दिन हमारी पत्नी ने हमसे कहा-‘’ तुम्हारा चेहरा घर में घुसने के साथ गुस्से में क्यों दिखाई देता है | शादी के बाद से अब तक तुम्हें खुशनुमा सहारे के शाथ नहीं देखा |’’
 ‘’ तो क्या करूँ .....रावण जैसे ठहाके लगाते हुए घर में प्रवेश करूँ |’’हमारा जवाब था |
  ‘’ ठहाके लगाओ न लगाओ पर मुसकाते हुए तो घर आओ |’’ पत्नी बोली |
   ‘’ मेरी मुस्कराहट भी तो तुम्हारे लिए शक की दीवार है |’’
   ‘’ न ... अब नहीं करूंगी शक?’’ पत्नी ने कहा |
पत्नी के वायदे पर हमने विश्वास किया | पति के नजर में पत्नी भले ही विश्वसनीय होती है | पर पत्नी कि नजर में पति कभी विश्वसनीय नहीं हो सकता |
आखिरकार उसका शक चंद  रोज बाद पुन: जागृत हुआ | उसने एक दिन हमारे सामने शक का बेलन घुमाते हुए कह दिया | ‘’ मैंने आपको इतना भी खुश दिखने को नहीं कहा था कि ख़ुशी की मर्यादा ही टूट जाए |’’
‘’ मतलब ? ‘’ हम चौकें |
 ‘’ पड़ोस में चर्चा बनें हो | आजकल तुम अपनी उम्र से आधी उम्र की लड़कियों से खूब हंस-हंस कर बातें करते हो | नजरें गडाते हो | शायरी इत्यादि भी छेड़ते हो | हमारी छूट से तुममें  पुन: प्रेम कवित्व के गुण अंकुरित होने लगे क्या ?’’  पत्नी तीखे स्वर में बोली |
‘’ अरी पगली ... तुम्ही कहती हो खुश दिखो.. खुश दिखने के लिए हंसी बोलचाल कर लिया तो फिर ...?’’ हम बोले |
‘’ तुम पतिजात में यही बुराई होती है |ज़रा –सी भी राहत स्वरूप आजादी की हरी झंडी मिली नहीं कि अपने चरित्र की औकात भूल जाते हो | कुत्तेगिरी में उतर जाते हो | कुत्ते भी भी वफादार होते हैं | मगर तुम लोग |’’ तेजतर्रार पत्नी का आक्रोश शब्दों में स्पष्ट था |
  एक सीधे सादे पति के नाते मैंने उसे समझाने का प्रयास किया |
  ‘ डार्लिंग, बात ऐसी नहीं है ....|’’
‘’ तो कैसी बात है |’’ पत्नी का स्वर बिजली चमकने जैसा था |
   वैसे ईश्वर यहाँ अन्याय करता है | तेज तर्रार पत्नी के साथ सीधे सादे पति को भिडाता है
| जैसे कि हम | हमने कहा –‘’ दरअसल इन दिनों सहकर्मियों के बीच एस.एम्.एस. चुटकुले खूब कहे जा रहे हैं | वे अक्सर याद आते हैंतो मुस्कुरा लेते हैं |
‘’ चुटकुले सुनते होगें न ... मगर तुम तो शायरी सुनाने में फ़िदा हो | जानती हूँ अच्छे-अच्छे शायरों को जानती हूँ , वे शायर कैसे बने ?’
 अंतत: निर्णय कर हमने अपना रुख बदल दिया | पुरानी औकात में आ गए | तब कहीं जाकर पत्नी को रहत मिली | बोली-‘ आजकल  के मर्दों में वह प्राचीन मर्यादा नहीं रही कि औरत या लड़की इस तरफ से गुजरे तो मुंह उस तरफ फेर लें | अब तो ऐसे घूरकर देखते हैं जैसे सॉस लगाकर चट कर जायेंगे |”मैं चुप रहा |
  मैं ऐसे अनेक लेखकों की किताबें पढ़ चुका हूँ सफल पति बनाने के चक्कर मैं , जो खुद निजी जिंदगी में असफल पति रहे हैं |
  शादी के पूर्व पति जितना आजाद होता है दाम्पत्य जीवन में आते ही उतनी गुलामी से घिर जाता है | गुलामी दाम्पत्य जीवन की पहली सजा है | गुलाम पति ही पत्नी की नजर में शरीफ इंसान होता है | मेरी दोस्त की तरह सहकर्मी लड़की ने विवाह के सम्बन्ध में कहा –‘’ मैं ऐसे लडके से शादी करूँगीं जो नौकरी होने के साथ विकलांग हो |’’
  मैंने कहा –‘’ नौकरी पेशा वाली बात तो पाच रही पर साथ में विकलांगता ....?आजकल की लड़कियां तो सबकुछ ठीक-ठाक होते हुए भी रंग को लेकर लड़कों को अस्वीकृत कर देती हैं | मगर तुम्हारी सोच तो सबसे परे समझ में आती है |’’ मैंने कहा |
   वह बोली –‘’ देखो यार मैं पूरी आजादी से रहना चाहती हूँ विकलांग पति मुझ पर आश्रित रहेगा | वह यहाँ-वहां ऐसी वैसी हरकत करने से भी कतरायेगा | कतरायेगा क्या महिलायें उसे वैसे भी चारा नहीं डालेंगी | और मैं पूरी तरह पति की खैर खबर लेने से निश्चिन्त रहूँगी | वह उलटा मेरा गुलाम बनाकर जीएगा |’’
   उसकी सोच ने मुझे खामोश रहने को मजबूर कर दिया |
                        सुनील कुमार ‘सजल’