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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

लघुव्यंग्य –सेवा

लघुव्यंग्य –सेवा

सूर्य उत्तरायण हो चुका था |गरमी अपने शबाब पर थी |किसी कार्य से अपने मित्र वर्मा के साथ एक शहर को जाना हुआ |हम दोनों पानी की बोतल रखना भूल गए थे |प्यास जोरो से लगी थी |रास्ते में पड़ने वाले एक बस  स्टैंड पर बस रुकी | बस से उतरने के बाद हम दोनों प्यास बुझाने के लिए सीधे होटल की ओर गए |वर्मा जी बैरे से पानी माँगा |
उसने टंकी में रखा कुनकुना –सा पानी भरा गिलास हमारी ओर बढ़ा दिया |दो-चार घूँट पानी पीने के बाद वर्मा जी बेयरे से बोले –‘’ क्यों भाई ठंडा पानी नहीं है क्या ?ये तो कुनकुना रखा है |दस गिलास पी जाएं तो भी प्यास नहीं बुझेगी |’
‘’ कुछ खरीदी साहब तो हम तीन गिलास ठंडे  पानी से आपकी प्यास तर कर देंगे | मुफ्त का पानी पीने वालों के लिए यही सेवा है हमारे होटल में ....| हम किसी  को निराश नहीं करते किसी को |’’
हम दोनों आश्चर्य से उस बेयरे का मुंह ताकते  रह गए |


सुनील कुमार ‘सजल’’