लघुव्यंग्य
–सेवा
सूर्य
उत्तरायण हो चुका था |गरमी अपने शबाब पर थी |किसी कार्य से अपने मित्र वर्मा के
साथ एक शहर को जाना हुआ |हम दोनों पानी की बोतल रखना भूल गए थे |प्यास जोरो से लगी
थी |रास्ते में पड़ने वाले एक बस स्टैंड पर
बस रुकी | बस से उतरने के बाद हम दोनों प्यास बुझाने के लिए सीधे होटल की ओर गए
|वर्मा जी बैरे से पानी माँगा |
उसने
टंकी में रखा कुनकुना –सा पानी भरा गिलास हमारी ओर बढ़ा दिया |दो-चार घूँट पानी पीने
के बाद वर्मा जी बेयरे से बोले –‘’ क्यों भाई ठंडा पानी नहीं है क्या ?ये तो
कुनकुना रखा है |दस गिलास पी जाएं तो भी प्यास नहीं बुझेगी |’
‘’ कुछ
खरीदी साहब तो हम तीन गिलास ठंडे पानी से
आपकी प्यास तर कर देंगे | मुफ्त का पानी पीने वालों के लिए यही सेवा है हमारे होटल
में ....| हम किसी को निराश नहीं करते
किसी को |’’
हम दोनों
आश्चर्य से उस बेयरे का मुंह ताकते रह गए
|
सुनील
कुमार ‘सजल’’
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