व्यंग्य –चमत्कार को नमस्कार
आस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि चमत्कार
हो जाए | इंसान तो चमत्कार को नमस्कार करता है | जिसके पास चमत्कार नहीं है उसको
क्या नमस्कार | अगर नमस्कार होता भी है तो औपचारिकता वश या सम्मान वश बड़ों का या यारी चलती रहे | इस
प्रक्रिया में कई बार घाल-मेल भी हो जाता है | नजरें फेर ली जाती है |
जब चमत्कार दमकता है,तब श्रद्धालु स्वमेव नमन
कि या दंडवत मुद्रा में आ जाता है, इसलिए कुछ होशियार लोगों ने फंदा खोज निकाला |
चमत्कार के चक्रव्यूह का, जिसमें आदमी न चाहकर भी जाल में पंछी कि तरह फंस जाता है
|
श्रधावश वह फडफडाता नहीं , मौन भाव से
स्वीकारता है | दम घुटे तो घुटे | इसमें अहो भाग्य देखता है |
चमत्कार एक ऐसा जाल है , जिसका जादू एक बार
चला , फिर लम्बे काल तक चलता है |
आस्तित्वहींन होकर भी अस्तित्ववान लगता है | उन खानदानी राजघराने कि तरह, जिसकी
पीढियां बाप-दादों कि बनायी कुब्बत पर तर जाती हैं |
अब वे जादूगर नहीं रहे | अब तो होते हैं
तांत्रिक | जो हर काम व् मुरादों कि सम्पन्नता का दवा करते हैं | जो संतानहीन को
बच्चा दिलाने से लेकर कैंसर जैसी बिमारी तक को भी ठीक करने कि ताल ठोंकते हैं |
फलां अघोरी या तपस्वी का चेला होने से लेकर फलां देवी के परम भक्त तक होते हैं |
इनसे ऊपर होते हैं बाबा यानी तथाकथित संत |
चमत्कारों के रजिस्टर्ड उत्पादक \ चमात्कार ही इनकी बाबागिरी का हथियार | चंद चमत्कारों के दावे के बाद इनकी कीर्ति जैसे
झुग्गी इलाके में फैली आग | बड़े-बड़े अविश्वासी भी इनके चरणों में पूरी श्रद्धा से
दंडवत मुद्रा में चरण चाटते , आशीर्वाद का चिमटा पीठ पर ठुकवाते , जय-जय कर करते
नजर आते हैं |
आज के दौर में तथाकथित संत भगवान से बड़े हैं
| भगवान तो मंदिरों में मूर्तिवत व् चित्रों में स्टेचू कि भाँती खड़े सुनते भी हैं
किसी की? क्या गारंटी ? आज के अंध श्रद्धालु को तो सबसे पहले सुनाने वाले की
गारंटी चाहिए | चमत्कार बाद में पहले सुने | बाबा लोग सबकी सुनते हैं | कल्याण कि
भाषा में बोलते हैं | मानो वे पर्वत को भी उठाने की क्षमता रखते हैं |
तथाकथित बाबा दुखियारों पर कंडे की राख यानी
भभूत फूंककर कल्याण करते हैं | कहते हैं- ‘ जा रे तेरे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे |
अंधे आदमी को क्या चाहिए ? चमत्कारों कि दो आँख | सेवा के हकदार हैं | भक्त भले भूखा रहे पर बाबा भूखे नहीं रहते |
भक्त की थाली पर उनका भी हिस्सा होता है |
ऐसे ही एक भभूति बाबा यानी भभूत फूंककर इलाज
करने वाले बाबाजी \ एक अपराधी को आशीर्वाद दिया |’’ जा तेरे सारे कष्ट फूककर उड़ा
दिया | ‘’ उस बाबा को कौन समझाता | जिसके लिए उन्होंने भभूत फूंकी वह नंबर वन का
अपराधी है |
उसने
मर्डर छुरी से मूली काटने जैसे किए हैं | उसके पीछे क़ानून व् पुलिस हाथ धोकर पड़ी
है और अन्तर्यामी बाबाजी उसे कष्ट हरने का
आशीर्वाद दे रहे हैं |
बाबा अन्तर्यामी हैं, उसके लिए जो न समझ हैं
| भोले हैं | अंधविश्वासी हैं | जबकि देश अनेक कंटकों के सामान समस्याओं से ग्रसित
है | आंतक,भय बलात्कार,लूटमार घोटाले , लाचारी, बेरोजगारी , महंगाई , बीमारी | न
जाने कितने कष्ट |
अन्तर्यामी बाबाओं को यह सब क्यों नहीं दिखता है |
सात्विकता का मुखौटा क्यों तामिष को छिपाता है ? क्यों यहाँ उनके चमत्कार निर्जीव
बनकर रह जाते हैं ?
बाबा उन मक्कारों की तरक्की का आशीर्वाद देते
हैं | जिनके पास देश की खजाने से लूटी गयी आकूत संपत्ति है | विजयी होने का
आशीर्वाद इन्हें मिलता है और राज करने का आशीर्वाद भी | पाखण्ड ही चमत्कार है |
जितना बड़ा पाखण्ड वह उतना ही चमत्कारों का प्रकाश , अहसास| इसी पाखण्ड के पीछे
पागल आदमी | कर्म से विमुख होकर | कर्महिनता
के दम पर तरक्की का सपना देखता हुआ | दंडवत मुद्रा में चरणों पर | श्रद्धा
कि जीभ टिकाये |
सुनील कुमार ‘सजल’