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सोमवार, 25 मई 2015

व्यंग्य –चमत्कार को नमस्कार


व्यंग्य –चमत्कार को नमस्कार

आस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि चमत्कार हो जाए | इंसान तो चमत्कार को नमस्कार करता है | जिसके पास चमत्कार नहीं है उसको क्या नमस्कार | अगर नमस्कार होता भी है तो औपचारिकता वश  या सम्मान वश बड़ों का या यारी चलती रहे | इस प्रक्रिया में कई बार घाल-मेल भी हो जाता है | नजरें फेर ली जाती है |
जब चमत्कार दमकता है,तब श्रद्धालु स्वमेव नमन कि या दंडवत मुद्रा में आ जाता है, इसलिए कुछ होशियार लोगों ने फंदा खोज निकाला | चमत्कार के चक्रव्यूह का, जिसमें आदमी न चाहकर भी जाल में पंछी कि तरह फंस जाता है |
श्रधावश वह फडफडाता नहीं , मौन भाव से स्वीकारता है | दम घुटे तो घुटे | इसमें अहो भाग्य देखता है |
चमत्कार एक ऐसा जाल है , जिसका जादू एक बार चला , फिर लम्बे  काल तक चलता है | आस्तित्वहींन होकर भी अस्तित्ववान लगता है | उन खानदानी राजघराने कि तरह, जिसकी पीढियां बाप-दादों कि बनायी कुब्बत पर तर जाती हैं |
अब वे जादूगर नहीं रहे | अब तो होते हैं तांत्रिक | जो हर काम व् मुरादों कि सम्पन्नता का दवा करते हैं | जो संतानहीन को बच्चा दिलाने से लेकर कैंसर जैसी बिमारी तक को भी ठीक करने कि ताल ठोंकते हैं | फलां अघोरी या तपस्वी का चेला होने से लेकर फलां देवी के परम भक्त तक होते हैं |
इनसे ऊपर होते हैं बाबा यानी तथाकथित संत | चमत्कारों के रजिस्टर्ड उत्पादक \ चमात्कार ही इनकी बाबागिरी का हथियार |  चंद चमत्कारों के दावे के बाद इनकी कीर्ति जैसे झुग्गी इलाके में फैली आग | बड़े-बड़े अविश्वासी भी इनके चरणों में पूरी श्रद्धा से दंडवत मुद्रा में चरण चाटते , आशीर्वाद का चिमटा पीठ पर ठुकवाते , जय-जय कर करते नजर आते हैं |
आज के दौर में तथाकथित संत भगवान से बड़े हैं | भगवान तो मंदिरों में मूर्तिवत व् चित्रों में स्टेचू कि भाँती खड़े सुनते भी हैं किसी की? क्या गारंटी ? आज के अंध श्रद्धालु को तो सबसे पहले सुनाने वाले की गारंटी चाहिए | चमत्कार बाद में पहले सुने | बाबा लोग सबकी सुनते हैं | कल्याण कि भाषा में बोलते हैं | मानो वे पर्वत को भी उठाने की क्षमता रखते हैं |
तथाकथित बाबा दुखियारों पर कंडे की राख यानी भभूत फूंककर कल्याण करते हैं | कहते हैं- ‘ जा रे तेरे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे | अंधे आदमी को क्या चाहिए ? चमत्कारों कि दो आँख | सेवा के हकदार हैं |  भक्त भले भूखा रहे पर बाबा भूखे नहीं रहते | भक्त की थाली पर उनका भी हिस्सा होता है |
ऐसे ही एक भभूति बाबा यानी भभूत फूंककर इलाज करने वाले बाबाजी \ एक अपराधी को आशीर्वाद दिया |’’ जा तेरे सारे कष्ट फूककर उड़ा दिया | ‘’ उस बाबा को कौन समझाता | जिसके लिए उन्होंने भभूत फूंकी वह नंबर वन का अपराधी है |
 उसने मर्डर छुरी  से मूली काटने जैसे किए हैं | उसके पीछे क़ानून व् पुलिस हाथ धोकर पड़ी है और अन्तर्यामी बाबाजी उसे  कष्ट हरने का आशीर्वाद दे रहे हैं |
बाबा अन्तर्यामी हैं, उसके लिए जो न समझ हैं | भोले हैं | अंधविश्वासी हैं | जबकि देश अनेक कंटकों के सामान समस्याओं से ग्रसित है | आंतक,भय बलात्कार,लूटमार घोटाले , लाचारी, बेरोजगारी , महंगाई , बीमारी | न जाने कितने कष्ट |
अन्तर्यामी बाबाओं को यह  सब क्यों नहीं दिखता है | सात्विकता का मुखौटा क्यों तामिष को छिपाता है ? क्यों यहाँ उनके चमत्कार निर्जीव बनकर रह जाते हैं ?
बाबा उन मक्कारों की तरक्की का आशीर्वाद देते हैं | जिनके पास देश की खजाने से लूटी गयी आकूत संपत्ति है | विजयी होने का आशीर्वाद इन्हें मिलता है और राज करने का आशीर्वाद भी | पाखण्ड ही चमत्कार है | जितना बड़ा पाखण्ड वह उतना ही चमत्कारों का प्रकाश , अहसास| इसी पाखण्ड के पीछे पागल आदमी | कर्म से विमुख होकर | कर्महिनता  के दम पर तरक्की का सपना देखता हुआ | दंडवत मुद्रा में चरणों पर | श्रद्धा कि जीभ टिकाये |
                       सुनील कुमार ‘सजल’

सोमवार, 4 मई 2015

लघुव्यंग्य -मुखौटा

लघुव्यंग्य -मुखौटा
'' तुम जिस संत की पूजा करते थे वह तो पुलिस हिरासत में पहुंच गया । वह भी अपनी शिष्या के साथ बलात्कार  आरोप में । ''
''जो हुआ अच्छा हुआ , मैं उसकी शक्ल  नहीं ,उसकी शिक्षा  की पूजा करता हूँ ....जिसने मेरे  जीवन को लायक बना दिया । एक बात और सुनो.... आदमी के चेहरे पर कई मुखौटे   हैं , मगर शिक्षा के नहीं .... ।