मंगलवार, 19 मई 2015

लघुकथा – फटी कथरी


लघुकथा – फटी कथरी


कल रात गांव में ठाकुर रामदीन के बंधुआ नौकर समारू की इकलौती बिटिया कल्लो को पडोसी कस्बे के कुछ बदमाश खेत से  उठाकर ले गए
रात भर मां –बाप की आंसू बहाती आँखे व बेचैनी  के बीच जब वह सुबह तक नहीं लौटी तो क्या करें कैसा करें ? की मन: स्थिति से जूझता ठाकुर रामदीन के घर में सर क्झुकाए आंसू बहाता समारू चिंता में कुछ सोच भी नहीं पा रहा था |
ठाकुर रामदीन कह रहे थे –‘’ देख समारू ,मैं पहले ही कह रहा था न किकल्लो को मेरे घर में ही काम में लगा दे पर साला माना नहीं और भेजता रहा दूसरों के घर काम में | हो गई लोगों की नीयत खराब | आज वो अगर मेरे घर होती तो यह दुर्दशा न होती उसकी |
बेचारा समारू क्या कहता | उसे तो ठाकुर साब की नीयत में भी खत नजर आ रहा था | अपने यहाँ काम करने वाली न जाने कितनी बेबस व मजबूर लड़कियों की अस्मत लूट चुके थे |
ठाकुर साब के खोजबीन व सहयोग के आश्वासन के बाद समारू घर लौट आया | इधर देखा तो पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था | जैसे तैसे ठाकुर साब के दी आश्वासन को सुनकर ढाढस बंधा था पर अंदर का उफान लेता सैलाब कहाँ खामोश रहता |वह उसे ताने कसते कह रही थी – ‘’ काश ! मेरी माने होते तो अपनी बिटिया लुटेरों के हाथ लुटाने से बाख जाती | अगर नियत ख़राब होने पर ठाकुर जी उसकी अस्मत से खेल भी लेते तो कौन जानता | इज्जत तो बनी रहती हम गरीबों की और बिटिया के हाथों रकम....| उन बदमाशों का क्या है | ओढ़ बिछाकर कल फेंक जाएंगे अपने द्वार पर फटी कथरी की तरह | कोई काम की नहीं रह जाएगी , न ब्याहने की न मुंह दिखाने की |

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